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       मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेशवासियों को वाल्मीकि जयंती की शुभकामनाएं दी है। मुख्यमंत्री ने वाल्मीकि जयंती पर संदेश में कहा कि रामायण जैसे महान कालजयी ग्रंथ की रचना कर उन्होंने  एक आदर्श समाज का चित्रण प्रस्तुत कर समाज को सत्य, कर्त्तव्यनिष्ठा एवं सन्मार्ग पर चलने का भी मार्ग दिखाया।
      मुख्यमंत्री ने कहा कि महर्षि वाल्मीकि द्वारा दी गई समरसता, सद्भाव तथा मानवता जैसे नैतिक मूल्यों की शिक्षा आज पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है। हम सभी को महर्षि वाल्मीकि के महान दृष्टिकोण एवं उनके द्वारा दी गई शिक्षा को अपने व्यवहार में अपनाने का संकल्प लेना होगा। यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धा व सम्मान की अभिव्यक्ति होगी।

वाल्मीकि, संस्कृत रामायण के प्रसिद्ध रचयिता हैं जो आदिकवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने संस्कृत मे रामायण की रचना की।महर्षि वाल्मीकि मूलतः निषाद थे, उनके द्वारा रची रामायण वाल्मीकि रामायण कहलाई। रामायण एक महाकाव्य है जो कि राम के जीवन के माध्यम से हमें जीवन के सत्य व कर्तव्य से, परिचित करवाता है।

वाल्मीकि ने संस्कृत के प्रथम महाकाव्य की रचना की थी जो रामायण के नाम से प्रसिद्ध है। प्रथम संस्कृत महाकाव्य की रचना करने के कारण वाल्मीकि आदिकवि कहलाये।

 रामायण में भगवान वाल्मीकि ने 24000 श्लोकों में श्रीराम उपाख्यान ‘रामायण’ लिखी। ऐसा वर्णन है कि- एक बार वाल्मीकि क्रौंच पक्षी के एक जोड़े को निहार रहे थे।

 वह जोड़ा प्रेमालाप में लीन था, तभी उन्होंने देखा कि बहेलिये ने प्रेम-मग्न क्रौंच (सारस) पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया। इस पर मादा पक्षी विलाप करने लगी। उसके विलाप को सुनकर वाल्मीकि की करुणा जाग उठी और द्रवित अवस्था में उनके मुख से स्वतः ही यह श्लोक फूट पड़ा।

    मा निषाद प्रतिष्ठां त्वंगमः शाश्वतीः समाः।
    यत्क्रौंचमिथुनादेकं वधीः काममोहितम्॥

    (अर्थ : हे दुष्ट, तुमने प्रेम मे मग्न क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पायेगी और तुझे भी वियोग झेलना पड़ेगा।)

उसके बाद उन्होंने प्रसिद्ध महाकाव्य "रामायण" (जिसे "वाल्मीकि रामायण" के नाम से भी जाना जाता है) की रचना की और "आदिकवि वाल्मीकि" के नाम से अमर हो गये।

अपने महाकाव्य "रामायण" में उन्होंने अनेक घटनाओं के समय सूर्य, चंद्र तथा अन्य नक्षत्र की स्थितियों का वर्णन किया है। इससे ज्ञात होता है कि वे ज्योतिष विद्या एवं खगोल विद्या के भी प्रकाण्ड ज्ञानी थे।

अपने वनवास काल के दौरान भगवान"श्रीराम" वाल्मीकि के आश्रम में भी गये थे।

भगवान वाल्मीकि को "श्रीराम" के जीवन में घटित प्रत्येक घटना का पूर्ण ज्ञान था। सतयुग, त्रेता और द्वापर तीनों कालों में वाल्मीकि का उल्लेख मिलता है इसलिए भगवान वाल्मीकि को सृष्टिकर्ता भी कहते है, रामचरितमानस के अनुसार जब श्रीराम वाल्मीकि आश्रम आए थे तो आदिकवि वाल्मीकि के चरणों में दण्डवत प्रणाम करने के लिए वे जमीन पर डंडे की भांति लेट गए थे और उनके मुख से निकला था

 "तुम त्रिकालदर्शी मुनिनाथा, विस्व बदर जिमि तुमरे हाथा।"

अर्थात आप तीनों लोकों को जानने वाले स्वयं प्रभु हैं। ये संसार आपके हाथ में एक बैर के समान प्रतीत होता है।

महाभारत काल में भी वाल्मीकि का वर्णन मिलता है। जब पांडव कौरवों से युद्ध जीत जाते हैं तो द्रौपदी यज्ञ रखती है, जिसके सफल होने के लिये शंख का बजना जरूरी था परन्तु कृष्ण सहित सभी द्वारा प्रयास करने पर भी पर यज्ञ सफल नहीं होता तो कृष्ण के कहने पर सभी वाल्मीकि से प्रार्थना करते हैं। जब वाल्मीकि वहां प्रकट होते हैं तो शंख खुद बज उठता है और द्रौपदी का यज्ञ सम्पूर्ण हो जाता है। इस घटना को कबीर ने भी स्पष्ट किया है "सुपच रूप धार सतगुरु आए। पांडों के यज्ञ में शंख बजाए।"

 

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