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 विश्व पर्यावरण दिवस-

पर्यावरण पर जन-जागरूकता की आवश्यकता.......



प्रकृति पर हमारे जीवन की निर्भरता इतनी अधिक है कि पृथ्वी के पर्यावरणीय संसाधनों की रक्षा किए बिना हम लोग जीवित नहीं रह सकते। इसलिए अधिकांश समाज, संस्कृतियां पर्यावरण को ही प्रकृति माँ कहते है, और अधिकांश परपंरागत समाज के लोग इस बात को जानते है कि प्रकृति का सम्मान व रक्षा करना उनकी अपनी जीविका की रक्षा के लिए कितना आवश्यक है। आधुनिक समाज यह मानने लगा कि प्रौद्योगिक नव प्रर्वतनों का बेलगाम उपयोग करके पृथ्वी से अधिकाधिक मात्रा में बैज्ञानिक पद्धतियों के द्वारा आये रोज इस्तेमाल करके संसाधन जुटाने से आसान समाधान निकाला और खोजा जा रहा है।

उतना ही इस पृथ्वी की प्राकृतिक सौंर्दयता की बनावट व पर्यावरण बिगाड़ने के लिए कृत्रिम खादों और कीटनाशक दवाओं का उपयोग करके खाद्य उत्पादन किया जा रहा है। जो हमारी पृथ्वी व पर्यावरण को अधिक नुकसानदायक है। इसके अलावा पालतू पशुओं और फसलों की बेहतर किस्मों का विकास करना, विशालकाय बांधों से खेतों की सिंचाई करना, और अंधाधुध उद्योगों और कारखानों आदि का विकास करना। इन सबके कारण ही तीव्र आर्थिक संवृद्धि के बढ़ते हुए उपयोग के बजह से ही हमारी पृथ्वी व पर्यावरण को सबसे अधिक क्षति पहुंच रही है। जिसका गहरा प्रभाव इस पृथ्वी के  सभी जीव-जन्तुओं के जीवन पर पड़ रहा है।

पर्यावरण दिवस पर वर्तमान नारा पारिस्थितिकी तंत्र को बेहतर करने का है। यह तब ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है, जब कोविड 19 ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। यह पूरी तरह सच है कि कोरोना के बिगड़ते पर्यावरण का कारण ही समझना चाहिए। क्योंकि शायद आज समय यह भी है कि हम इस बड़ी महामारी को अगर प्रकृति के साथ जोड़कर देखने की कोशिश करेंगे तो ही आने वाले समय में इस तरह की घटनाओं से कुछ हद तक रोक पाऐंगे, जो तमाम विषाणु आक्रामक रूप ले चुके है। वो कहीं न कहीं प्रकृति से सीधे छेड़छाड़ और गत दशकों में वन्य जीवों व उनके आवासों पर हमले होने का परिणाम है।


आज हमें अपनी एक सीमा अवश्य लेनी चाहिए, अधिक से अधिक वृक्षारोपण करें, अपने आस-पास के वातावरण को साफ-सुथरा बनाने के लिए पेड़-पौधों को लगाकर हो रहे अंधाधुध जंगलों के दोहन को रोकने से बचायें। आज समय है कि हम प्रभु-प्रकृति-प्रवृति को अलग न करें, वैसै भी हमारे शास्त्रों में हवा, मिट्टी, जंगल, पानी को देवतुल्य माना गया है। किसी भी तरह की हलचल व लाभ के लिए हमें अतंत: पृथ्वी पर ही निर्भर होना है। हमारे व्यवहार और चाल में पृथ्वी के सरक्षण की बड़ी भूमिका होनी चाहिए। हम अपने पारिस्थितिकी तंत्र को समझें और अपनी बदलती प्रवृति पर अंकुश लगाएं। प्रकृति और प्रवृति के प्रति हमारी समझ जितनी बेहतर होगी हम उतना ही अपने जीलन तंत्र को बेहतर कर पाऐंगे।


आज हम ऐसे संकट में है कि जिसका फिलाहाल कोई शत-प्रतिशत  समाधान नहीं है। प्रकृति ने कोरोना जैसे अदृश्य वायरस को हमारे बीच लाकर यह समझाने और सिखाने का प्रायस किया है कि मनुष्य जनित विज्ञान के प्रयत्न कैसे विफल हो सकते है। अगर वो प्रकृति पर केंद्रित नहीं है। प्रकृति हमें बार-बार समझाने की चेतावनी व कोशिश कर रही है कि हमें प्रकृति के संतुलन की तरफ जाना चाहिए। जिस पारिस्थितिकी तंत्र की चिंता आज के युग में अतंर्राष्ट्रीय स्तर का विषय बन चुकी है। उसे मनुष्य ने खतरे में डाला है। इसलिए आज मनुष्य के सामने अपनी जीवन को बचाने के लिए पर्यावरण के बिगड़ते हुए इस विषय की सबसे बड़ी चुनौती है। जिसके लिए इस पृथ्वी पर हर मानव को पर्यावरणीय संतुलन को बिगाड़ने से बचाने के लिए सामूहिक रूप से धरती माँ की रक्षा करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य बनता है।

       लेखक व पत्रकार 

मुकेश सिहं तोमर खुन्ना (बहलाड़)

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