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डोईवाला:




शहीद दुर्गा मल्ल राजकीय स्नातकोत्तर  महाविद्यालय, डोईवाला के इतिहास विभाग द्वारा  "भारतीय साहित्य और परंपराओं में सामाजिक सहिष्णुता विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया है।इस विषय पर स्वागत भाषण महाविद्यालय के  प्राचार्य प्रोफेसर डीसी नैनवाल द्वारा किया गया। उन्होंने उद्घाटन सत्र में सम्मिलित हुए अतिथियों प्रो० डी० पी० सकलानी एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर गढ़वाल ,डॉक्टर रमेश मेहता, दिल्ली यूनिवर्सिटी,डॉक्टर कमर आलम,अलीगढ़ विश्वविद्यालय,प्रोफेसर अलीम अशरफ खान ,दिल्ली यूनिवर्सिटी, डॉक्टर सुरेश मंगाई हिंदी विभागाध्यक्ष गवर्नमेंट पीजी कॉलेज उत्तरकाशी, डॉ सिराज भारती, एमबीपीजी कॉलेज हल्द्वानी का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि हम आदिकाल से जानते हैं कि जो ऋषि-मुनियों से परंपराएं चली आ रही हैं वह सहष्णुता से आगे बढ़ते हुए समाज का गठन हुआ है। सहुष्णता सिद्धांत ही नहीं व्यवहार से भी परिलक्षित होती है।हमारा संविधान भी सहिष्णुता व अहिंसा को परिलक्षित करता है। इस अवसर पर मुख्य अतिथि गढ़वाल विश्वविद्यालय से  इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डीपी सकलानी ने कहा कि ऋग्वेद से ही कल्याणकारी विचारों की बात कही गई ,वेद हमें सिखाते हैं कि हमें प्रकृति के साथ कैसे सामंजस्य स्थापित करना है। प्रकृति के जितने भी तत्व है उनके तपस्या में मनीषी रहे। हमें ऋषि मुनियों की परंपरा विश्व के कल्याण के विषय में सोचना चाहिए ।स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी जन नायक बने, परंतु उनके आराध्य राम थे और वह रामराज्य की कल्पना करते थे। रामायण को भी हम कल्पना नहीं मान सकते अनेक प्रमाण खुदाई द्वारा प्राप्त हो रहे हैं। हमारी अनेकों संपदा को नष्ट किया गया अनेकों लोग यहां आए ,आक्रमण किए परंतु भारतीय समाज सामंजस्य करके आगे बढ़ता रहा। हम अनेकों लोगों को सामंजस्य कर रहे हैं ।आज की संगोष्ठी की नोट  स्पीकर प्रोफेसर रमेश मेहता (दिल्लीविश्वविद्यालय) ने कहा कि  सहिष्णु शब्द तीन तत्वों से बना है जिसका अर्थ है सहन करने की व्यापकता। उन्होंने मलिक मोहम्मद जायसी का उदाहरण देते हुए कहा कि मनुष्य जब प्रेम में होता है तो वहां दिव्य हो जाता है। कबीर दास ने कहा हिंदू की हिंदू वाही देखी तुर्क की तुर्कवाही, दोनों राह नहीं पाई ।सोलहवीं शताब्दी में सफलता का ही पाठ चलता रहा।17 वीं शताब्दी में नूर मोहम्मद ने इस विषय पर कहा कि अंग्रेजों ने गुरुकुल परंपरा व प्राचीन परंपराओं को समाप्त किया। वर्तमान समय में शासकों को अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए ।कर्तव्य के साथ व्यक्ति में विवेक का होना आवश्यक है, असहिष्णु व्यक्ति के पास विवेक हीनता व दिशा हीनता होती है। मनुष्य होना सहिष्णुता की पहचान है,यदि समाज में असहिष्णुता है तो हमारा समाज बीमार हो रहा है। डॉक्टर दीपक पांडे ने कहा कि वेदों पुराणों व ग्रंथों के प्रत्येक पृष्ठ पर सहुष्णुता देखने को मिलती है। सहुष्णुता हमारी परंपराओं में है। डॉक्टर अलीम अशरफ खान,दिल्ली विश्वविद्यालय से उपस्थित रहे उन्होंने सहिष्णुता पर अपने विचार रखते हुए कहा कि भारतीय साहित्य में सहिष्णुता  में  फारसी ने सभी समाज व घटनाओं को एक श्रृंखला में पिरोया है। उनका कहना है कि इतिहास वेदों ने अंग्रेजों के अनुसार भारतीय समाज को तोड़ने में कुचक्र को अपनाया।यदि दाराशिकोह जीवित रहता, वह शासक होता तो मध्यकाल में सहिष्णुता का इतिहास अलग होता। इस अवसर पर शहीद दुर्गा मल्ल राजकीय महाविद्यालय डोईवाला से डॉक्टर डीएन तिवारी,डॉ डीपी सिंह, डॉक्टर एनडी शुक्ला, डॉक्टर संतोष वर्मा, डॉक्टर आर एस रावत, डॉक्टर कंचन सिंह, डॉक्टर नीलू कुमारी, डॉ राखी पंचोला,डॉक्टर पूनम पांडे,डॉ एसके कुड़ियाल,डॉक्टर अंजली वर्मा, डॉक्टर अफरोज इकबाल,डा० नूर हसन,डा० राजपाल रावत, डा० आर० एम०पटेल, डॉक्टर पल्लवी मिश्रा, डॉक्टर बत्लरी कुकरेती, डॉ आशा रोंगाली, एनएसएस व एनसीसी के कैडेट व महाविद्यालय के छात्र छात्राएं उपस्थित थी। विभिन्न कालेजों से भी सेमिनार में ऑफलाइन ऑनलाइन प्राध्यापक जुड़े हुए थे जिनमें डॉक्टर शाहिद सिद्दीकी रुद्रपुर ,डॉक्टर प्रमोद सिंह अगरोड़ा , डॉक्टर बालकराम अगरोड़ा  ,डॉक्टर पूनम रानी राइसी , डॉक्टर प्रमोद कुकरेती रामपुर कॉलेज,  डॉक्टर इमरान अली गोपेश्वर,  डॉक्टर खालिद, हरिद्वार , मोहम्मद अब्दुल अलीम ,हरिद्वार,  डॉक्टर संजीव टिहरी,  डॉक्टर ममता अगस्तमुनि,  डॉक्टर विनीता, डॉक्टर निशा पाल डॉक्टर हरीश राम ,डा० प्रमोद सिंह अगरोड़ा,अंजली सेमवाल, एसजीआरआर देहरादून, डॉ अंजू भट्ट एवं डॉ रूबी तबस्सुम राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय ऋषिकेश, डॉक्टर दया प्रसाद उत्तरकाशी से सम्मिलित हुए।संगोष्ठी के संयोजक डा० नूर हसन ने बताया कि कल 24 मार्च को संगोष्ठी का समापन होगा।

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