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डोईवाला  :

 

आज दिनांक 24 मार्च 2021 को शहीद दुर्गा मल्ल राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय डोईवाला में आयोजित भारतीय साहित्य और परंपराओं में सामाजिक सहष्णुता पर हुए संगोष्ठी में मुख्य वक्ता डॉ सिराज मोहम्मद एमबी कॉलेज हल्द्वानी ने अकबर के सुलह ए कुल की नीति पर प्रकाश डालते हुए शांति सद्भावना और सहिष्णुता के विषय को विस्तार दिया। 




भारत में 62 नए धर्मों का उदय हुआ। हिंदू धर्म ने अनेक संस्कृतियों, धर्मों को स्वीकार किया। पृथ्वी शाह ने कहा था कि अतिथियों को दूसरे के हवाले नहीं करते। कुमाऊं में लोगों ने सभी को स्वीकार किया जो लोग मोहम्मद तुगलक के समय रोहिलखंड से भाग कर कुमाऊं में आ बसे थे। संगोष्ठी के दूसरे सत्र में डॉ देवेंद्र गुप्ता गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय ने भारतीय कला में शिव पर विस्तृत व्याख्यान दिया ।उन्होंने कहा कि भारत देश का मूल तत्व ही सामाजिक क्षमता पर आधारित है  जिससे भारत और भारतीय पहचान से अलग नहीं किया जा सकता।

 भारतीय शास्त्र सभी के कल्याण का आवाहन सहज भाव से करते हैं। अनगिनत आक्रमणों के पश्चात भी भारतीय संस्कृति जीवित और निरंतर है, क्योंकि समग्रता उसके स्वभाव में निहित है ।भारत की स्मृति में भगवान शिव व्यापक देवता है जिनकी उपासना विश्व के सभी प्राणी करते हैं । अपने व्याख्यान में उन्होंने कहा कि चित्रकला, वास्तुकला आदि जो मंदिरों के प्रांगण और दीवारों पर उकेरी और गढ़ी गई है, उनका सूक्ष्म अध्ययन करना आवश्यक है,ताकि कला की अमृत शक्ति को महसूस किया जा सके।उन्होने बृहदेश्वर मंदिर, एरावतेश्वर मंदिर, एलोरा गुफाओं की वास्तुकला को पीपीटी के माध्यम से दिखाया। शिव पार्वती की कथा किस तरह से उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक लोकमानस में व्याप्त है यह इन क्षेत्रों की वास्तु कलाओं में दिखती है।

डॉक्टर ममता ध्यानी ने अपने शोध पत्र में बताया कि प्रेमचन्द् ने अपने साहित्य में अंतिम पंक्ति के लोगों की बात की है।और उन्ही के माध्यम से सामाजिक सौहार्द को दिखाया है ,चाहे वह गोदान,काहोरी,धनिया हो या ईदगाह का हामिद। इसी सत्र में डा० स्मृति कुकशाल ने अपना शोधपत्र Role of Plants in Indian Tradition and Culture.पढ़ा। कु०जसप्रीत कौर ने अपना शोध पत्र Study of Geographical conditions upon social Tolerance. पढ़ा। एसजीआरआर की देवजनि सरकार ने ऑनलाइन माध्यम से अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया इस सत्र की अध्यक्षता डॉ शशि किरण सोलंकी ने किया।

आज के संगोष्ठी के समापन सत्र की अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य डा० डी० सी० नैनवाल ने किया।उन्होंने संगोष्ठी के आयोजकों को साधुवाद दिया व सभी बाहर से आये हुए delegates को घन्यवाद दिया।समापन सत्र में विशिष्ट अतिथि डा० प्रमोद भारतीय भारतीय ने समाज की सहिष्णुता को बताते हुए कहा कि सीता की छवि को दूषित करनेके अनेकों प्रयास हुए पर जन मानस श्नेशांत,सहज बना रहा। संस्कृत के महाकाव्य सहिष्णुता की पराकाष्ठा को दिखाते हैं। युधिष्ठर , कर्ण,वुद्ध से लेकर महात्मागांधी में सहष्णुता परिलक्षित होती है।जिससे सभ्यताएं प्रभावित हुई हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय से आये हुए प्रो० रमेश मेहता ने संगोष्ठी के सफल आयोजन की सराहना की। संगोष्ठी में वेस्ट पेपर प्रजेन्टेशन शहीद दुर्गा मल्ल रा० स्ना०महा० की शोध द्दात्रा जसप्रीत कौर को दिया गया।   

आज की संगोष्ठी में डा० डी० एन० तिवारी,डा० डी०पी० सिंह,डा० संतोष वर्मा,डा० आर० एस० रावत,डा० कंचन सिंह,डा०राखी पंचोला, डा० पूनम पाण्डे,डा० पल्लवी मिश्रा,डा० अफरोज इकवाल,डा० एन०डी० शुक्ला,डा० दीपा शर्मा,डा० नीलू कुमारी,डा० बल्लरी कुकरेती,डा०नूर हसन,डा० स्मृति कुकशाल, डा० रेखा नौटियाल,डा० प्रतिभा बलूनी,डा० ममता ध्यानी ,डा० प्रदीप,डा० प्रमोद कुमार,डा० कुसुम डोबरियाल,डा० अरविन्द सिंह रावत, डा० इमरान खान,डा० शटीश उनियाल,डा० राजेस्वरी,डा० अनिल,डा० रूचि कुलश्रेष्ठ,डा० ऊषारानी नेगी उपस्थित थे।

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