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                                                                                                                                                                                  अ​खिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश में वर्ल्ड एंटीमाइक्रोबेल एवरनैस वीक विधिवत शुरू हो गया। जिसके तहत लोगों को विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से एंटीबायोटिक के दुरुपयोग से होने वाले शारीरिक नुकसान को लेकर जागरुक किया जाएगा। सप्ताहव्यापी कार्यक्रम में एम्स के विभिन्न विभागों के फैकल्टी, चिकित्सक, नर्सिंग ऑफिसर्स व कर्मचारी प्रतिभाग कर रहे हैं।                                 

गौरतलब है कि दुनिया में एंटीबायोटिक दवाओं के बढ़ते दुरुपयोग के मद्देनजर इसकी रोकथाम के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से वर्ष 2015 से नवंबर माह में वर्ल्ड एंटीमाइक्रोबेल एवरनैस प्रोग्राम का आयोजन किया जाता है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइलेशन ने इसी साल से इसे (18 से 24 नवंबर) वीक के तौर पर मनाने का निर्णय लिया है।                                                                                                               

जिसके अंतर्गत एम्स ऋषिकेश में बुधवार को निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत जी ने एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग को रोकने के लिए सप्ताहव्यापी जनजागरुकता पर आधारित ऑनलाइन  प्रोग्राम का विधिवत शुभारंभ किया। इस अवसर पर संस्थान के निदेशक एवं सीईओ प्रो. रवि कांत जी ने बताया कि एंटीबायोटिक दवाओं के उचित उपयोग को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि बिना किसी वैज्ञानिक आधार के इनका अत्यधिक उपयोग / दुरुपयोग हानिकारक परिणाम दे सकता है।                                                                                            निदेशक एम्स पद्मश्री प्रो. रवि कांत जी ने कहा कि स्वास्थ्यकर्मियों को संक्रमण की प्रगति को कम करने के लिए अस्पताल में की जाने वाली सभी प्रक्रियाओं के दौरान यूनिवर्सल प्रिकॉशन का पालन करना चाहिए। उन्होंने इस जनजागरुकता कार्यक्रम के आयोजन के लिए सामान्य चिकित्सा विभाग के डॉ. पीके पांडा, डीन कॉलेज ऑफ नर्सिंग प्रोफेसर सुरेश कुमार शर्मा व उनकी टीम को बधाई दी ।

अस्पताल में क्वालिटी इंप्रूवमेंट के विषय को लेकर डीन  (हॉस्पिटल अफेयर्स) ब्रिगेडियर प्रो. यूबी मिश्रा ने “इंटीग्रेटेड एंटीमाइक्रोबियल्स स्टीवार्डशिप” पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि एंटीबायोटिक स्टीवर्डशिप प्रोग्राम, डायग्नोस्टिक स्टीवर्डशिप प्रोग्राम, इनफेक्शन प्रीवेंशन एंड कंट्रोल प्रोग्राम इसके मुख्य तत्व हैं। उन्होंने जोर दिया कि सभी मेडिकल संस्थानों को इस प्रोग्राम को सुचारू रूप से चलाने के लिए इन तत्वों पर काम करना चाहिए ताकि यह सकारात्मक रूप से काम कर सके और संक्रमण को रोकने में बड़ी सफलता बना सके I


डीन नर्सिंग प्रो. सुरेश कुमार शर्मा ने “एंटी माइक्रोबियल्स स्टीवार्डशिप प्रैक्टिसेज ” पर सभी नर्सेज को संदेश दिया कि वर्ष 2020 को नर्स और मिडवाइव्स का वर्ष घोषित किया गया है और सीडीसी ने स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में नर्सों के महत्व पर भी जोर दिया है। एंटी माइक्रोबियल स्टीवर्डशिप प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए नर्सें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं क्योंकि नर्सिंग ऑफिसर्स रोगी की देखभाल में अधिकतम समय बिताते हैं। उन्होंने सभी नर्सों से शपथ लेने का अनुरोध किया कि हम निश्चितरूप से बिना चिकित्सक के परामर्श से दी गई एंटीमाइक्रोबॉयल दवाओं के उपयोग को हतोत्साहित करेंगे और हमेशा सही खुराक, सही माध्यम और सही अवधि तक देंगे I कार्यक्रम आयोजक व सामान्य चिकित्सा विभाग के

डॉ. पीके पांडा ने “वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) ”द्वारा दी गई इस साल की थीम “यूनाइटेड टू प्रिजर्व एंटीमाइक्रोबियल्स”पर प्रकाश डालते हुए कहा कि " एंटी-माइक्रोबियल” को संरक्षित करने के लिए संयुक्त " चिकित्सक, फार्मासिस्ट और रोगी से सहयोगात्मक प्रयास आवश्यक हैं। साथ ही उन्होंने सभी चिकित्सकों को संदेश दिया कि उन्हें अनावश्यक प्रिसक्रिप्शन और बिना किसी संवैधानिक वैज्ञानिक सबूत के दवाई प्रिसक्राइब नहीं करनी चाहिए I

क्लिनिकल फार्माकॉलेजिस्ट प्रोफेसर शैलेंद्र शंकर हाण्डू ने एंटी माइक्रोबियल्स क्या है और इसे कब नहीं लेना चाहिए इस विषय पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि एंटी माइक्रोबियल्स संक्रमण से लड़ने के लिए हमारे हथियार हैं, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि इन दवाओं के सही उपयोग नहीं होने से यह प्रतिरोध का कारण बन गया है I उन्होंने 

प्रतिरोध का मुख्य कारण लोगों में जनजागरुकता के अभाव को बताया और साथ ही कहा कि लोग खुद से बिना किसी परामर्श के दवाई का सेवन कर रहे हैं और अगर यह प्रक्रिया इसी प्रकार चलती रही तो वह दिन दूर नहीं, जब किसी भी संक्रमण को रोकने के लिए हमारे चिकित्सकों के पास कोई विकल्प नहीं बचेगा I लिहाजा सभी को किसी भी संक्रमण के उपचार के लिए योग्य स्वास्थ्य पेशेवरों द्वारा दी गई दवाइयों का ही सेवन करना चाहिएI


क्लिनिकल माइक्रोबायोलॉजिस्ट प्रोफेसर प्रतिमा गुप्ता ने एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (जीवाणुनाशक प्रतिरोध) को लेकर सभी को जागरुक करते हुए बताया कि यह एक वैश्विक चिंता का विषय बन चुका है। जिसका मुख्य कारण यह है कि दवाई का या तो बहुत ज्यादा या बहुत कम इस्तेमाल किया जाता है। जो हमारे शरीर में बैक्टीरिया को प्रतिरोधक बना देते हैं I लिहाजा लोगों को इसके सही इस्तेमाल पर जागरुक करते हुए उन्होंने बताया कि वर्षों पुरानी “मैजिक बुलेट”का मैजिक बरकरार रहने दें और एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस की रोकथाम में सभी आगे आएं I                                                                                                                                                                                                  इस अवसर पर कार्यक्रम आयोजक डॉ. पीके पांडा, डीन नर्सिंग प्रोफेसर सुरेश कुमार शर्मा, कॉलेज ऑफ नर्सिंग के असिस्टेंट प्रोफेसर  मनीष शर्मा, डॉ. राखी मिश्रा, नर्सिंग ट्यूटर मिस प्रिया शर्मा, मिस हेमलता आदि मौजूद थे।

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