सर्व
सिद्धियों की दाता "माँ सिद्धिदात्री" देवी दुर्गा का नौवां स्वरुप हैं। नवमी के दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा और कन्या पूजन के साथ ही
नवरात्रों का समापन होता है।
सिद्धिदात्रि का स्वरुप
हिन्दू
धर्म के पुराणों में बताया गया है कि देवी सिद्धिदात्री के चार हाथ है
जिनमें वह शंख, गदा, कमल का फूल तथा चक्र धारण करे रहती हैं। यह कमल पर
विराजमान रहती हैं। इनके गले में सफेद फूलों की माला तथा माथे पर तेज रहता
है। इनका वाहन सिंह है। देवीपुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में देवी की
शक्तियों और महिमाओं का बखान किया गया है।
सिद्धियों की स्वामिनी हैं सिद्धिदात्री
पुराणों
के अनुसार देवी सिद्धिदात्री के पास अणिमा, महिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य,
गरिमा, लघिमा, ईशित्व और वशित्व यह आठ सिद्धियां हैं। देवी पुराण के
मुताबिक सिद्धिदात्री की उपासना करने का बाद ही शिव जी ने सिद्धियों की
प्राप्ति की थी।
शिव जी का
आधा शरीर नर और आधा शरीर नारी का इन्हीं की कृपा से प्राप्त हुआ था। इसलिए
शिव जी विश्व में अर्द्धनारीश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुए थे। माना जाता है
कि देवी सिद्धिदात्री की आराधना करने से लौकिक व परलौकिक शक्तियों की
प्राप्ति होती है।
माँ सिद्धिदात्री का मंत्र :
सिद्धगन्धर्वयक्षाघैरसुरैरमरैरपि।सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
पूजा
में उपयोगी खाद्य साम्रगी:नवमी तिथि को भगवती को धान का लावा अर्पित करके
ब्राह्मण को दे देना चाहिए। इस दिन देवी को अवश्य भोग लगाना
चाहिए।विशेष:समस्त सिद्धियों की प्राति के लिए मां सिद्धिदात्री की पूजा विशेष मानी जाती है।
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