बुरांश बर्बादी की कगार पर
रुद्रप्रयाग:
भूपेंद्र भण्डारी
औषधीय गुणों से भरपूर पहाड़ों पर खिलने वाला बहुमूल्य बुराश इन दिनों बर्बादी के कगार पर खड़ा है। पहाड़ों के ऊंचाई वाले इलाकों में बुराश की इस वर्ष बम्पर पैदावार हो रखी है। एक तरफ कोराना तो दूसरी तरफ विपणन की व्यवस्था न होने से इन दिनों बुराँश पेड़ों पर ही व्यापक पैमाने पर बर्बाद हो रहा है।
एक रिपोर्ट --
मध्य हिमालयी क्षेत्रों में होने वाले बुराँश के फूल सभी को अपनी ओर आकृषित करता है। बुराँश दिखने में ही सुन्दर नहीं होता बल्कि इसमें कई लाभकारी आयुवेर्दिक औषधियां भी विद्यमान हैं। इसलिए ही प्राचीन काल से ही आयुर्वेद में बुराश को महत्वपूर्ण स्थान दिया है। खास तौर पर हृदय रोग को समाप्त करने में यह अत्यंत लाभदायक होता है। बुरांश का जूस पहाड़ों के साथ ही देश के कोने-कोन तक बड़ी मात्रा में डिमांड रहती है। लेकिन इन दिनों पहाड़ों के ऊँचाई वाले क्षेत्रों इसकी बंम्बर पैदावार बिना किसी उपयोग के बर्बादी के कगार पर है।
पर्वतीय राज्य उत्तराखण्ड के ऊँचाई वाले क्षेत्रों में हर वर्ष मार्च से मई तक बुराँश बम्पर पैदावार होती है। रूद्रप्रयाग जनपद के चोपता, खंडपतियां, कनकचैंरी, जखोली, चिरबटिया और उखीमठ के जंगलों में बुराँश प्रचुर मात्रा में खिला हुआ है। लेकिन राज्य गठन के 19 वर्ष बीत जाने के बाद भी अब तक इसके विपणन और इसे रोजगार से जोड़ने के लिए कोई ठोस नीति नहीं बन पाई पाई है। यहां तक वन विभाग द्वारा बुराँश के चुगान पर भी प्रतिबंध लगाया गया है। हालांकि बीते सालों में ग्रामीण स्तर पर कुछ कुटीर उद्योगों के माध्यम से बुराँश का जूस बनाकर इसके उपयोग की पहल जरूर की जा रही थी। लेकिन इस वर्ष कोरोना महामारी के चलते चारों तरफ हो रखे लाकडाउन से बुराँश पेड़ों पर ही सड़ रहा है।
इन दिनों कोरोना वायरस के कारण पहाड़ से पलायन कर चुके युवा बड़ी संख्या में अपने गाँवों की ओर लौटे हैं। ऐसे में उन्हें न केवल रोजगार की आवश्यकता है बल्कि सरकारें भी चाहती हैं कि जो युवा पहाड़ लौटे हैं वे यहीं रहकर स्वरोजगार करें। ऐसे में राज्य सरकार को चाहिए कि वे इन युवाओं को यहां रोकने के लिए यहां की प्राकृतिक वन सम्पदा से रोजगार सृजन की दिशा में ठोस और कारगर नीति-नियमन बनाकर पलायन पर अँकुश लगाये और यहां की बुराँश जैसी औषधीय सम्पदा का उपयोग कर रोजगार के द्वार खोले।
रुद्रप्रयाग:
भूपेंद्र भण्डारी
औषधीय गुणों से भरपूर पहाड़ों पर खिलने वाला बहुमूल्य बुराश इन दिनों बर्बादी के कगार पर खड़ा है। पहाड़ों के ऊंचाई वाले इलाकों में बुराश की इस वर्ष बम्पर पैदावार हो रखी है। एक तरफ कोराना तो दूसरी तरफ विपणन की व्यवस्था न होने से इन दिनों बुराँश पेड़ों पर ही व्यापक पैमाने पर बर्बाद हो रहा है।
एक रिपोर्ट --
मध्य हिमालयी क्षेत्रों में होने वाले बुराँश के फूल सभी को अपनी ओर आकृषित करता है। बुराँश दिखने में ही सुन्दर नहीं होता बल्कि इसमें कई लाभकारी आयुवेर्दिक औषधियां भी विद्यमान हैं। इसलिए ही प्राचीन काल से ही आयुर्वेद में बुराश को महत्वपूर्ण स्थान दिया है। खास तौर पर हृदय रोग को समाप्त करने में यह अत्यंत लाभदायक होता है। बुरांश का जूस पहाड़ों के साथ ही देश के कोने-कोन तक बड़ी मात्रा में डिमांड रहती है। लेकिन इन दिनों पहाड़ों के ऊँचाई वाले क्षेत्रों इसकी बंम्बर पैदावार बिना किसी उपयोग के बर्बादी के कगार पर है।
पर्वतीय राज्य उत्तराखण्ड के ऊँचाई वाले क्षेत्रों में हर वर्ष मार्च से मई तक बुराँश बम्पर पैदावार होती है। रूद्रप्रयाग जनपद के चोपता, खंडपतियां, कनकचैंरी, जखोली, चिरबटिया और उखीमठ के जंगलों में बुराँश प्रचुर मात्रा में खिला हुआ है। लेकिन राज्य गठन के 19 वर्ष बीत जाने के बाद भी अब तक इसके विपणन और इसे रोजगार से जोड़ने के लिए कोई ठोस नीति नहीं बन पाई पाई है। यहां तक वन विभाग द्वारा बुराँश के चुगान पर भी प्रतिबंध लगाया गया है। हालांकि बीते सालों में ग्रामीण स्तर पर कुछ कुटीर उद्योगों के माध्यम से बुराँश का जूस बनाकर इसके उपयोग की पहल जरूर की जा रही थी। लेकिन इस वर्ष कोरोना महामारी के चलते चारों तरफ हो रखे लाकडाउन से बुराँश पेड़ों पर ही सड़ रहा है।
इन दिनों कोरोना वायरस के कारण पहाड़ से पलायन कर चुके युवा बड़ी संख्या में अपने गाँवों की ओर लौटे हैं। ऐसे में उन्हें न केवल रोजगार की आवश्यकता है बल्कि सरकारें भी चाहती हैं कि जो युवा पहाड़ लौटे हैं वे यहीं रहकर स्वरोजगार करें। ऐसे में राज्य सरकार को चाहिए कि वे इन युवाओं को यहां रोकने के लिए यहां की प्राकृतिक वन सम्पदा से रोजगार सृजन की दिशा में ठोस और कारगर नीति-नियमन बनाकर पलायन पर अँकुश लगाये और यहां की बुराँश जैसी औषधीय सम्पदा का उपयोग कर रोजगार के द्वार खोले।
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