सबसे पहले तो मीडिया से जुड़े पत्रकारों का विशेष धन्यवाद कि उन्होंने विगत 16 वर्षों में जो रचनात्मक व सकारात्मक सहयोग हिमालय की इस अनूठी परम्परा को देश विदेश में जन-जन तक पहुँचाने का काम किया । बिना मीडिया के सहयोग से इस मुकाम तक पहुंचना बेहद असम्भव था ।
आज खुशी होती है इस बात की कि, अब तमाम एन जी ओ भी रंगोली आंदोलन से प्रेरित होकर मुहिम का हिसा बन गए हैं । पहाड़ों में भी कुछ एक हिस्सों को छोड़कर इस पर्व को मनाने की परमपरा लगभग नब्बे के दशक से समाप्त होने लगी थी । लेकिन आज अब न सिर्फ पहाड़ी समाज बल्कि हर धर्म हर जाति हर क्षेत्र के बच्चे धीरे-धीरे इस पर्व के साथ जुड़ रहे हैं ।उत्तराखंड सहित गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, दिल्ली, व उत्तर प्रदेश में भी मीडिया के मदद से मुझे लोगों को हिमालयी पर्व फूलदेई की खूबसूरती को समझाने में सहयोग मिला । और आगे भी मीडिया से हमेशा की तरह सहयोग अपेक्षा बनी रहेगी । यहां मैं यह स्पष्ट करना चाहूँगा कि "रंगोली आंदोलन एक रचनात्मक मुहिम" यह कोई NGO नहीं है यह व्यक्तिगत विचार था जिसने समाज में एक मुहिम का आकार ले लिया है ।
- शशि भूषण मैठाणी पारस विचारक रंगोली आंदोलन एक रचनात्मक मुहिम,के द्वारा फूलदेई संरक्षण अभियान की शुरुआत हुई सीमांत जनपद चमोली से :
"रंगोली आंदोलन" मुहिम के विचारक व फूलदेई पर्व के संरक्षक शशि भूषण मैठाणी पारस ने बताया कि वर्ष 2004 में सीमांत जनपद चमोली में मैंने अपने गांव मैठाणा, के अलावा गोपेश्वर नगर क्षेत्र व आसपास के गांवों जैसे पपडियांणा, पाडुली, मंडल, सगर, वैरागणा व हळदापानी , सुभाषनगर से इस अनूठे पर्व को पुनर्जीवित करने की कोशिश में अपनी एक मुहिम चलाई, जिसमें कई स्कूलों का साथ मिला ।
शशि भूषण मैठाणी ने बताया कि लंबे समय तक कि गई कोशिशों के बाद भी जब बहुत ज्यादा उत्साह न स्थानीय लोगों ने दिखाया और न ही प्रशासन में या शासन में तो नतीजतन मैंने इस पर्व को प्रदेश के प्रथम द्वार राजभवन व मुख्यमंत्री आवास के अलावा वरिष्ठ अधिकारियों की देहरियों व मीडिया संस्थानों के कार्यालयों में बच्चों की टोली संग मनाने का संकल्प लिया ।
राजभवन व मुख्यमंत्री आवास से नई परम्परा शुरू की
समाजसेवी शशि भूषण मैठाणी ने जानकारी दी कि 10 साल बाद वर्ष 2014 में मेरे इस अभियान को मेरे एक मित्र रमेश पेटवाल ने 21 टोकरियों व 15 किलो फूल उपलब्ध कराने से की । और स्कूलों में मैपल बियर व दून इंटरनेशनल के बच्चों की टोली राजभवन व मुख्यमंत्री आवास पहुंचे । तब शहर में हर एक के लिए यह उत्सव नया था । मीडिया के संस्थानों में बच्चों की अलग-अलग टोली भेजने की परंपरा भी आरम्भ की । मीडिया ने भी बढ़-चढ़कर सहयोग किया । जिसका नतीजा आज यह हुआ कि वर्तमान में 27 स्कूल देहरादून के इस अभियान से जुड़ गए हैं ।
अब देश विदेश तक विस्तार तक चर्चित हो गई फूलदेई
शशि भूषण मैठाणी ने बताया कि गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान व दिल्ली के अलावा विदेशों में हिमालय के इस खूबसूरत पर्व को मनाने के लिए कहीं मैंने कहीं स्वयं लोगों ने भी मुझसे संपर्क कर अभियान में शामिल होने की इच्छा जताई । वर्ष 2015 में महाराष्ट्र के नागपुर में भारत पटेल व वर्ष 2017 में गुजरात में किरीट भाई मेहता के सहयोग पर्यावरण संरक्षण से जुड़े खूबसूरत पर्व फूलदेई को मनाने की शुरुआत की गई । जिसके बाद वहां भी बच्चों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना आरम्भ किया ।
इस वर्ष से महाराष्ट्र राजभवन में मराठी समाज के बच्चों द्वारा भी फूलदेई मनाने की परम्परा शुरू होगी :
इस वर्ष 2020 मार्च माह के 14 तारीख से महाराष्ट्र के राज्यपाल महोदय के सहयोग से "रंगोली आंदोलन " से जुड़े मराठी समाज के लोगों व बच्चों द्वारा राजभवन मुम्बई में सुबह 9 बजे राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की मौजूदगी में महाराष्ट्र राजभवन की देहरी पर पुष्प वर्षा की जाएगी । मुम्बई में समाजसेवी हितेश ओझा एवं आर. श्वेताल गीतांजलि के कोर्डिनेशन में बच्चों की टोली राजभवन पहुंचेगी जहां बच्चों हिमालयी परम्परानुसार वहां के राज्यपाल उपहार भी भेंट करेंगे ।
मिशन अभी पूरा नहीं हुआ, आगे और जिम्मेदारी पूर्वक देश व विदेशों तक हिमालय व पर्यावरण के सम्मान हेतु लोगों को जोड़ना है :
रंगोली आंदोलन के प्रणेता व फूलदेई पर्व के संरक्षक शशि भूषण मैठाणी ने बताया कि अभी मिशन पूरा नहीं हुआ है । उन्होंने कहा मेरा संकल्प है कि एक न एक दिन इस खूबसूरत बालपर्व को राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय स्तर पर जन-जन के लिए स्वीकार्य बनाना । क्योंकि मेरा मानना है कि एक यही पर्व है कि जो एक ऋतु के आगमन व दूसरी ऋतु की विदाई पर प्रकृति व पर्यावरण के सम्मान में प्राकृतिक रूप से मनाया जाता है । खास बात यह है कि यह धरती मुकुट हिमालय से आरंभ है । इस पर्व को पर्यावरण के सम्मान के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए । हिमालय का सम्मान का मतलब है पूरी धरा का सम्मान ।
इस बार से होगी नई शुरुआत उत्तराखंड में मुख्यमंत्री व महाराष्ट्र में राज्यपाल करेंगे नई मुहिम का शुभारंभ :
शशि भूषण मैठाणी पारस ने बताया कि इस बार से अब एक नई शुरुआत की जा रही । अब फूलदेई पर्व पर प्रत्येक वर्ष बच्चे घर घर जाकर लोगों से पुष्प वृक्ष व फल वृक्षों के रोपण कार्यक्रम को भी आगे बढ़ाएंगे । और इसकी शुरुआत उत्तराखंड में मुख्यमंत्री आवास में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत द्वारा बच्चों संग अमलताश, गुलमोहर, आड़ू आदि के पौधों के रोपण के साथ फूलदेई पर्व पर होगी ।
वहीं महाराष्ट्र राजभवन मुम्बई में मराठी समाज के बच्चों संग राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी भी पौधों के रोपण की परम्परा का शुभारंभ करेंगे ।
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