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रुद्रप्रयाग :  
 
भूपेन्द्र भण्डारी 
 
वैसे तो हिमालय क्षेत्रों में अंनगिनत जङी बूटियों का भण्डार है, लेकिन कारगर और स्पष्ट नीति न बनने से इनकी पहचान विलुप्त होती जा रही है। ऐसा ही एक पहाड़ के गांवों में कंडाली के नाम से विख्यात बिच्छू घास है जिसकी उपयोगिता की बातें भले ही सरकारें जब-तब करती रही हो लेकिन धरातल पर अमलीजामा न पहनाये जाने से बिच्छू घास का अस्तित्व ही अब संकट में आ गया है।

 जंगली पौधा बिच्छू घास को छूने से ही करंट जैसा अनुभव होता है, लेकिन यह पौधा औषधीय गुणों से भरपूर है कई बीमारियों के साथ ही शरीर को तंदरूस्त रखने में भी वरदान साबित होता है। उत्तराखंड के हिमालयी इलाको में पाये जाने वाले इस पौधे का तना-पत्ती से लेकर जड़ तक हर हाल में काम आता है। पहाड़ों में कंडाली के नाम से विख्यात इस घास को पहले सब्जी बनाने से लेकर घरेलु औषधीयोें के रूप में प्रयोग में लाया जाता था, लेकिन एंटीबायोटिक दवाईयों के इस दौर में इस घास की उपयोगिता बिल्कुल शून्य हो चुकी। भले ही पूर्व में तत्कालिक कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री रहे हरीश रावत ने भांग और कंडाली (बिच्छू घास) की खेती को बढ़ावा देने के अनको घोषणायें तो की हैं लेकिन परिणाम विफर ही साबित रहा। जबकि वर्तमान मुख्यमंत्री में कई बार इसकी उपयोगिता को लेकर कई योजनायें शुरू करने की बातें कह चुके हैं धरातल पर अब तक ये योजनायें नहीं
उतर पाई हैं।

 दरअसल बिच्छू घास एक प्रकार की बारहमासी जंगली जड़ी-बूटी है, जिसे अक्‍सर खरपतवार या बेकार पौधा समझा जाता है। लेकिन अपने गुणों के कारण यह विभिन्‍न प्रकार के अध्‍ययनों का विषय बन चुका है। यह मुख्‍य रूप से हमारे लिए एंटीऑक्‍सीडेंट का काम करता है। इस पौधे के उपयोगी हिस्‍सों में इसके पत्‍ते, जड़ और तना होते हैं। बिच्छू घास अथवा स्थानीय भाषा में कंडाली कहें जाने वले इस घास से बुखार आने, शरीर में कमजोरी होने, पित्त दोष, गठिया, शरीर के किसी हिस्से में मोच, जकड़न और मलेरिया जैसे बीमारी को दूर भागने में उपयोग करते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी साग-सब्जी भी बनायी जाती है. इसकी तासीर गर्म होती है और यदि हम स्वाद की बात करे तो पालक के साग की तरह ही स्वादिष्ट भी होती है  इसमें  आइरन, कैल्सियम और मैगनीज प्रचुर मात्रा में होता है.  माना जाता है कि बिच्छू घास में काफी आयरन होता है. जिसे हर्बल डिश कहते हैं। कृषि से जुड़े अधिकारी भी इसे कृषि के क्षेत्र में क्रान्तिकारी बदलाव लाने में उपयोगी मानते हैं।

 कंडाली बिच्छू घास जैसी ही न जाने कितनी ही जड़ी-बूटियों के भण्डार से पहाड़ भरा पड़ा हैं लेकिन स्पष्ट और कारगर नीति न बनने के कारण ये औषधीय पौधे अब अपने अस्तित्व को ही खो रहे हैं। ऐसे में जरूर है सरकार जुल्मलेबाजियों से इतर इस ओर गम्भीरता से ध्यान दे ताकि यह न केवल किसानों के लिए फायदेमंद हो बल्कि इसका वजूद भी जिंदा रह सके।

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