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 रूद्रप्रयाग :
 भूपेन्द्र भण्डारी


 रूद्रप्रयाग के दूरस्थ क्षेत्र घंघासू बांगर के दर्जनों गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं की बाट जोह रहा है। सरकारें अंतिम छोर के व्यक्ति तक विकास किरण पहुँचाने के लाख ढोल क्यों न पीटे लेकिन धरातल पर स्थिति क्या है, समझिए--

तस्वीरें देखकर ये तो समझ आ रहा होगा कि जीवन और मौत के बीच किस तरह से ये लोग संघर्ष कर रहे हैं। बरसात के समय उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों में तो आपने अक्सर ऐसे स्थिति देखी होगी लेकिन यकीन मानिए ये हालात आजकल के हैं। रूद्रप्रयाग जनपद के दूरस्थ क्षेत्र घंघासू बांगर के दर्जनों गांवों के ग्रामीण आज भी इन्हीं विकट पारिस्थितियों का सामना करने के लिए मजबूर हैं।

आजादी के बाद पहले सड़क सुविधा के अभाव में परेशान थे लेकिन 16 साल पूर्व लोक निर्माण विभाग रूद्रप्रयाग द्वारा करीब 12 किमी छेनागाड़-बगसीर मोटर सड़क का निर्माण तो किया गया, मगर इस सड़क के दो किमी  पर बहने वाली नदी पर स्थाई पुल का निर्माण आज तक नहीं हो पाया, जिस कारण ग्रामीण जान जोखिम में डालकर हर रेाज सफर करते हैं। बरसात के समय जब नदी का जल स्तर उफान पर रहता है तो यह क्षेत्र पूरी तरह से देश दुनियां से कट जाता है।

आलम यह है कि लोक निर्माण विभाग ने 42 लाख की लागत से छः साल पूर्व इस पुल निर्माण का कार्य तो आरम्भ किया है मगर 6 वर्षों में पूरा बजट खर्च करने के बाद दोनों छोरा पर पुल के पिलर खड़े करने के अलावा कुछ भी नहीं कर पाये। अब अधिकारियों का कहना है कि पुल का डिजाइन बदलने के कारण अतिरिक्त धन की स्वीकृति जिला योजना से मिली है लेकिन दो बार टेंडर लगाने के बाद भी कोई ठेकेदार कार्य करने को तैयार नहीं है।

घंघासू बांगर के बगसीर, डांगी, भुनालगांव, उच्छोला, मथ्यगांव, खोड़ सहित दर्जन भर गांव पुल निर्माण के लिए विभागों के कई चक्कर काट चुके हैं लेकिन कोई सुनने के लिए तैयार नहीं है। भले ही  सरकारें और नेता मंत्री अंतिम छोर पर विकास की किरण पहुंचाने की बात हर मंच से करते हो लेकिन यह तस्वीर सरकारों के दावों की कलई खोलती हुई नजर आ रही है।

उत्तराखण्ड राज्य के मूल में सड़क स्वास्थ्य जैसे बुनियादी सुविधायें हर गांव तक पहुंचाने तक पहुंचाने जैसे सवाल 19 साल बाद भी अगर गौंण नजर आ रहे हैं और ग्रामीण वहीं पहाड़ जैसी मुश्किल भरी जिंदगी जी रहे हैं तो इस अवधि की विकासगांथा को समझा जा सकता है।

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