Halloween party ideas 2015

                    

                                                                                                                                                                                     उत्तराखंड में स्वाइन फ्लू की दस्तक से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश प्रशासन अलर्ट हो गया है। निदेशक एम्स पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत के निर्देश पर विभिन्न विभागों के चिकित्सकों की बैठक में स्वाइन फ्लू के मद्देनजर आठ बिंदुओं पर महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। इस अवसर पर जनरल मेडिसिन विभाग की ओर से फैकल्टी व चिकित्सकों के लिए विशेष व्याख्यान का आयोजन भी किया गया। बताया गया कि बृहस्पतिवार को नर्सिंग व अन्य गैर चिकित्सकीय स्टाफ की जागरुकता के लिए व्याख्यान का आयोजन किया जाएगा।                                                                                  संस्थान के चिकित्सा अधीक्षक डा. ब्रह्मप्रकाश की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में स्वाइन फ्लू के मद्देनजर आपात बैठक हुई,जिसमें एहतियातन बिभिन्न ​बिंदुओं पर चर्चा की गई। बैठक में बताया गया कि संस्थान के मेडिसिन विभाग में स्वाइन फ्लू के मद्देनजर छह बिस्तर वाला आइसोलेशन रूम उपलब्ध है, साथ ही एन- 95 मास्क की व्यवस्था है। जबकि अन्य विभागों इमरजेंसी, ईएनटी, पुल मेडिसिन आदि विभागों के लिए 25000 मास्क की आवश्यकता है। फार्मेसी विभाग ने एंटी वाइरल दवा टामीफ्लू की जरुरत बताई है। जबकि कम्यूनिटी मेडिसिन विभाग का कहना है कि इस तरह के रोगी के अस्पताल में भर्ती होने पर विभाग रोग प्रतिरोधक दवा उपलब्ध कराने में सक्षम है। निर्णय लिया गया कि इस बीमारी से आमजन को जागरूक करने को मेडिसिन एजुकेशन विभाग अभियान चलाएगा,जिसके समन्वयक डा.प्रसन पंडा होंगे। बैठक में यह भी चर्चा हुई कि इस तरह के किसी भी रोगी के ब्लड टेस्ट की रिपोर्टिंग जल्दी उपलब्ध होगी। इस दौरान एमएस ने चिकित्सकों के साथ अस्पताल का निरीक्षण किया व संबंधित व्यवस्थाओं का जायजा लिया। एम्स निदेशक पद्मश्री प्रो. रवि कांत ने बताया कि संस्थान में इस बीमारी के लिए पर्याप्त दवा, उपचार व इससे जुड़ी आवश्यक जांच की सुविधा उपलब्ध है। निदेशक प्रो.रवि कांत ने बताया कि इस बीमारी की रोकथाम के लिए टीकाकरण की सुविधा भी उपलब्ध है,मगर यह टीकाकरण प्रत्येक व्यक्ति को हरसाल अक्टूबर-नवंबर माह में कराना चाहिए,जिससे जनवरी-फरवरी माह में स्वाइन फ्लू बीमारी के दुष्प्रभाव से बचा जा सके।                                                                                                                                                                                                                                                               इस अवसर पर आयोजित व्याख्यान में कार्यक्रम संयोजक डा. प्रसन कुमार पंडा ने चिकित्सकों को इन्फ्यूएंजा वाइरस के बारे में जागरुक किया। उन्होंने बताया कि यही वाइरस एच1 एन1 (स्वाइन फ्लू) का कारक बनता है। इस दौरान उन्होंने इस बीमारी की पहचान के लक्षण बताए। उन्होंने बताया कि तेज बुखार, शरीर में दर्द, खांसी व गले में दर्द की शिकायत जैसे लक्षण स्वाइन फ्लू की आशंका हो सकती है। उन्होंने बताया कि यह बीमारी शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित कर सकती है। खासकर यह बीमारी ऐसे व्यक्ति को तेजी से संक्रमित करती है जो पहले से बीमार हो, इसमें किडनी में खराबी, मोटापा, हृदयरोग, फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों से ग्रसित लोग अथवा 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोग शामिल हो सकते हैं। लिहाजा ऐसे लोगों को इस बीमारी से अधिक सचेत रहने की आवश्यकता है। ऐसे में उन्हें बीमारी के इस तरह के लक्षण पाए जाने पर तत्काल विशेषज्ञ चिकित्सक के पास जाकर जांच व उपचार लेना चाहिए। उन्होंने बताया ​कि यह बीमारी सामान्य वाइरल जैसी ही है मगर इस बीमारी के प्रति लापरवाही जानलेवा साबित हो सकती है। डा. पीके पंडा ने इस बीमारी से बचाव के तौर तरीकों के बाबत बताया कि पीड़ित व्यक्ति से तीन फिट की दूरी बनानी चाहिए, साथ ही थ्रीलेयर सर्जिकल मास्क व एन-95 मास्क पहनना चाहिए। बैठक में डीन एकेडमिक प्रोफेसर मनोज गुप्ता, डा. जया चतुर्वेदी, डा. नीलम, डा. सारून,डा. सुनीता मित्तल, डा. किम मेमन, डा. सौरभ वार्ष्णेय, डा. बलराम जीओमर, डा. संतोष कुमार, डा. गिरीश सिंधवानी, डा. गौरव चिकारा, डा. भारतभूषण भारद्वाज ,डा.अनुभा अग्रवाल आदि मौजूद थे।                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                        1-बीमारी के समय शरीर को पूरा रेस्ट दें। 2- सामान्य स्थिति में हररोज पीने वाले पानी की मात्रा को दोगुना बढ़ा दें। 3-बुखार होने पर पारासिटामल टेबलेट दिन में  चार से पांच बार लें। तीन दिन दवा लेने पर आराम नहीं मिले तो तत्काल चिकित्सक से संपर्क करें।

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