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सहज संवाद / डा. रवीन्द्र अरजरिया


इंसाफ की बुलंदी पर पहुंचकर हुआ है अयोध्या मसले का फैसला

समाज को खेमों में बांटकर निजी स्वार्थों की पूर्ति में लगे लोगों की दुनिया में कमी नहीं है। कभी जीवन शैली के नाम पर तो कभी मान्यताओं का बहाना लेकर, कभी लालच को हथियार बनाकर तो कभी धार्मिक उन्माद फैलाकर अहम् की पूर्ति के उदाहरणों से इतिहास भरा पडा है। व्यक्ति को व्यक्ति न समझकर उसे अपने सुख का साधन मानने वालों ने देश में आस्था पर आक्रमण करने की पहल की। भाईचारे को तार-तार करने वाले उपायों को गतिशील किया। राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद जैसे मुद्दों को हवा दी। धर्म पर खतरा, जैसे नारे बुलंद किये गये। सरकार बनाने का ललक लेकर चुनावी मैदान में कूदी पार्टियों ने लोगों को खेमों में बांटने का काम किया। मंचों से कभी एक पक्ष को संतुष्ट करने की बात कही गई, तो कभी दूसरे को भय दिखाने वाले शब्दों की जुगाली हुई। लम्बे समय तक चुनावी मुद्दा रहने वाली स्थिति आज साफ हो गई। सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दे दिया। आम आवाम ने निर्णय की मुक्तकंठ से सराहना की। विदेशों में भी हमारी न्यायप्रियता और पारदर्शितता का डंका बज उठा। चारों ओर हर्ष की लहर देखने को मिलने लगी। ऐसे में एक व्यक्ति के संतुष्ट न होने की बात कही। उसे इस असंतुष्टि वालेे राग की कटु आलोचना की जाने लगी। वस्तुस्थिति पर मानसिक समीक्षा चल ही रही थी कि तभी फोन की घंटी बज उठी। फोन पर दूसरी ओर से जो आवाज आई, उसने हमें रोमांचित कर दिया। दूसरी ओर से इस्लाम के जानकार जनाब मुहम्मद जमालउद्दीन हशमती साहब, जो पेश इमाम रह चुके है, ने दुआ-सलाम के बाद हमारे हालचाल पूछे। खैरियत जानने-बताने के बाद हमने उन्हें आज के ही मुद्दे पर टटोलना शुरू कर दिया। देश की गंगा-जमुनी संस्कृति का हवाला देते हुये उन्होंने कहा कि हर मुकदमे में एक की जीत और दूसरे की हार होती है। यह पहला मुकदमा है जिसमें दौनों पक्ष जीते हैं। इंसानियत जीती है। भाईचारे की मिशाल जीती है। यह फैसला काबिले एतराम है और हम इसे तस्लीम करते हैं। जहां तक हमारी सोच नहीं जा सकती थी, जज साहिबानों ने उस ऊंचाई से पूरे मामले को जाना, समझा और फिर फैसला सुनाया। हमने उनको बताया कि एक पक्ष के वकील साहेब संतुष्ट न होने की बात कह रहे हैं। उन्होंने एक गहरी सांस लेते हुए कहा कि कोई संतुष्ट नहीं है, यह उसकी समझ है, यह उसकी परेशानी है। एक व्यक्ति की समझ को पूरी कौम पर नहीं थोपा जा सकता। मुल्क का हर मुसलमान संविधान की इज्जत करता है। इंसाफ की बुलंदी पर पहुंचकर हुआ है अयोध्या मसले का फैसला। खास बात तो यह है कि यह फैसला भी ऐसे वक्त आया है जब अगले रोज ही पैगम्बर-ए-इस्लाम का खास जलसा है। पैगम्बर-ए-इस्लाम ने फरमाया है कि मुल्क की मोहब्बत तुम्हारे ईमान का हिस्सा है, यानी मुल्क की मोहब्बत को दूसरे मायने में देखें तो संविधान की मोहब्बत है और उसी से जुडी है अदालतों से मुहब्बत और उनकी इज्जत। कुल मिलाकर आज देश का ही नहीं पूरी दुनिया का हर इंसाफ पसन्द मुसलमान खुश है, हर न्यायप्रिय हिन्दू खुश है और खुश है हर कौम। इंसानियत आज खुशी का जश्न माना रही है। उसे इज्जत मिली है और जबरजस्ती का मसला बनाकर रोटी सेंकने वालों के मंसूबों पर पानी फिरा है। हमने उनकी बात को बीच में ही काटते हुए कहा तब फिर संतुष्टि न होने, आगे की सोचने जैसी बातें क्यों की जा रहीं है। उन्होंने गम्भीर स्वर में कहा कि मसला जब हल हो चुका है तो फिर अब उन्हें पूछने वाला कौन रहेगा, यानी उन्हें अब भी अपनी दुकान खोले रखना है और उसे चलाने की जुगत भी करनी है। ऐसे लोगों की बातों को ज्यादा अहमियत नहीं दी जाना चाहिये। तभी फोन पर कालवेटिंग का संकेत मिलने लगा। हमें भी तब तक अपनी मानसिक समीक्षा को दिशा देने हेतु पर्याप्त सामग्री मिल चुकी थी। सो इस मुद्दे पर निकट भविष्य में विस्तार से चर्चा करने के आश्वासन के साथ उनसे इजाजत मांगी। उनके शब्दों से लग रहा था कि दिल की गहराइयों में छुपी सोच को कहकर वे भी संतुष्ट हो चुके थे। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी। जयहिंद।

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