सहज
संवाद/डा.रवीन्द्र अरजरिया
कागजी आंकडों से
कहीं दूर होती है धरातली स्थिति
देश में लावरिस
पशुओं की भीड सडकों से लेकर वीराने तक देखने को मिल रही है। श्वेत क्रांति से हरित
करके कागजी आंकडे चरम सीमा पर स्थापित सफलतायें दर्शाते हैं। उपलब्धियों के
मानचित्र को देख-देखकर खुश होने से यथार्थ बदल नहीं सकता। सत्य को सत्य के रूप में
स्वीकारने वालों की संख्या अंगुलियों पर गिनने योग्य होती है। ऐसे में नियमों,
कानूनों और शासनादेशों का परिणामात्मक अनुपालन, शायद ही कहीं शतप्रतिशत होती हो।
अनेक राज्यों में गौशालाओं की स्थापनाओं से लेकर गौवंश के संरक्षण तक के लक्ष्य
निर्धारित किये गये है। प्रगति आख्याओं में विभागीय कर्तव्यनिष्ठा पूरी तरह
चरितार्थ होती दिखती है जब कि व्यवहारिक स्थितियां कुछ हट कर ही हैं। राष्ट्रीय
राजमार्गों से लेकर अन्य व्यस्ततम सडकों पर झुंड लगाकर खडे-बैठे जानवर हर आने-जाने
वाले वाहनों के लिये मुसीबत का कारण बने हुए हैं। खेती की फसलों को नुकसान
पहुंचाने, राहगीरों को घायल करने, वाहनों को दुर्घटनाग्रस्त करने जैसी अनेक
स्थितियों के लिए यही पशु उत्तरदायी होते है। आश्चर्य तो तब होता है जब उत्तरदायी
अधिकारियों के कार्यालय तथा आवास के सामने लावारिस पशुओं की जमात खडी रहती है। लालबत्ती
की गाडियों तक को अवरुद्ध करने वाले जानवरों की उपस्थिति को नजरंदाज करने वाले
जिम्मेवार लोग जब दूसरों के सामने लावारिस पशुओं को बडे बजट से संचालित होने वाली
गौशालाओं में पहुचाने की बात करते हैं, तब निश्चय ही हाथी के दातों की कहावत
चरितार्थ होते देर नहीं लगती। विचारों का प्रवाह चल ही रहा था कि तभी हमारी टेबिल
के दूसरी ओर की चेयर पर बैठते जा रहे व्यक्ति ने हमें ऊंचे स्वर में गुड आफ्टर नून
बोलकर चौंका दिया। चेतना वापिस लौटी। हमारे ठीक सामने गठीले वदन वाले रौवीले
व्यक्ति के रूप में पुराने परिचित ऋषिराज जी बैठे थे। यह महाशय शोध अधिकारी के रूप
में अपनी उल्लेखनीय सेवायें देने तथा बेवाक टिप्पणी के लिए जाने जाते है। अभिवादन
के आदान प्रदान के बाद कुछ अन्य परिचित लोगों के बारे में चर्चायें चल निकलीं।
उनसे निजात पाकर हमने उन्हें लावारिस पशुओं, गौशालाओं और शासन की नीतियों को
रेखांकित करते हुए समीक्षा करने के लिए कहा। शासन की नीतियों को अधिकारियों की सोच
का परिणाम निरूपित करते हुए उन्होंने कहा कि विभागीय मंत्री अपनी सोच को सचिवालय
के पास भेजता है। अधिकारियों को जो उचित लगता है, उसे अपने सांचे में ढालकर लम्बे
चौडे बजट के साथ प्रस्तुत कर देता है। प्रस्तुत परियोजना से संबंधित शासकीय
औपचारिकतायें पूरी करने के बाद उसे देश - प्रदेश में लागू किया जाता है। कार्यपालिका
से जुडे जो अधिकारी जिला सम्हाले होते है, वहीं देर सबेर मुख्यालय में सचिव का
कार्यभार ग्रहण करते है। कुल मिलाकर गौवंश, गौशाला और सफलताओं के कीर्तिमानों को
स्वयं की पीठ थपथपाने का ही कारण बनाया जा रहा है। यह सब वास्तविकता तो कोसों दूर
है। जिले में कराये जाने वाले कार्यों की समीक्षा करने वाले भी उन्हीं के ही भाई-बंधु
होते हैं, फिर चाहे वे प्रदेश मुख्यालय से आये हों या देश की राजधानी से। गौशालाओं
की स्थापना की कीर्तिमान और लावारिस पशुओं की सडकों पर भीड, यहीं है हंसने और गाल
फुलाने की पहेली का समाधान। कागजी आंकडों से कहीं दूर होती है धरातली स्थिति। हमने
उनकी इस समीक्षात्मक व्याख्या को बीच में ही रोकते हुए कहा कि सडकों पर यमराज की
तरह मौजूद इन लावारिस पशुओं को निरंतर नजरंदाज करते हुए गौशालों की उपलब्धियों का
बखान करना, क्या प्रदर्शित करता है। उनके गोल से चेहरे पर मुस्कुराहट नाच उठी।
हौले से बोले कि कुछ खास नहीं। बस यही कि हम तो देश को अपनी मर्जी से चलायेंगे।
परिवार और स्वयं के लिए वैभव का अम्बार लगायेगे। हम भी नजरंदाज कर रहे है, तुमसे
भी नजरंदाज करवायेंगे। माल खाया है और खिलायेंगे। उनके इस शायराना अंदाज ने सब कुछ
बयान कर दिया। एक बडे अधिकारी की यह स्वीकरोक्ति वास्तव में उनकी स्पष्टवादिता को
ही प्रदर्शित कर रही थी। हमने उन्हें टोकते हुए कहा कि आप को पता है कि आप क्या कह
रहे हैं। उन्होंने जोरदार ठहाका लगाते हुए कहा कि हम बेहोश नहीं हैं बल्कि बेहोश
लोगों को होश में लाने की दवा बांट रहे हैं। आप चाहे तो छाप सकते हैं। हम उनके
जज्बे को सलाम किये बिना नहीं रह सके। उन जैसे अधिकारी कम ही होते हैं जो सत्य को
सत्य और झूठ को झूठ कहने का साहस रखते हों। तब तक उन्होंने वेटर को इशारे से
बुलाया और कुछ खाने के लिए आर्डर देने लगे। आज का इण्डियन काफी हाउस आना हमें
सार्थक लगने लगा। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नये मुद्दे के साथ फिर
मुलाकात होगी। जयहिंद।
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