सहज संवाद / डा. रवीन्द्र अरजरिया
जीवन के रागात्मक पक्षों को सजीव करना आसान नहीं होता। बहुआयामी कारकों को आत्मसात करने के लिए संतुलन की महती आवश्यकता होती है। यही वह स्थिति है जिसे आनन्द के पर्याय के रूप में मान्यता प्रदान की गई है। अतृप्त कामनाओं को सांकेतिक खाद्य के माध्यम से संतुष्ट करने को ही शायद रचनात्मकता कहते हैं।
इसी शायद के प्रश्नवाची चिन्ह को सुलझाने का प्रयास कर रहा था कि तभी हमारे कंधे पर पडने वाली अपनत्व भरी धौल ने चौंका दिया। कल्पना लोक से उतरकर तत्काल भूतल पर पहुंच गया। वर्तमान का आभाष हुआ। दिल्ली के जनपथ रोड के बंगला नम्बर 7बी में भौतिक उपस्थिति और सामने मौजूद देश के जानेमाने फिल्म निर्माता राजा बुंदेला का आत्मीयता बिखेरता चेहरा, एक साथ मस्तिष्क को हौले से सहलाने लगा। लम्बे समय बाद मुलाकात होते ही बेताबी ने आकार ले लिया। बांहें फैली और गले मिलने की अनुभूति सजीव हो उठी।
कुशलक्षेम पूछने-बताने के बाद हमने अपने मस्तिष्क में चल रहे प्रश्नवाची चिन्ह को हल करने में उनका सहयोग मांगा। उनके चेहरे पर नाचती मुस्कुराहट ने गम्भीरता का आवरण ओठ लिया। फिल्म निर्माण के दौरान घटित होने वाले विभिन्न दृष्टांतों के उदाहरणों की भूमिका के साथ उन्होंने कहा कि जीवन के रागात्मक पक्षों को जानने के पहले हमें जीवन को ही समझना पडेगा। कारण, कृत्य और कामनाओं का वर्गीकरण करना पडेगा।
जिग्यासाओं से लेकर अपेक्षाओं तक की पृष्ठभूमि खंगालना पडेगी। रागात्मकता को रागों की विविधता के परिपेक्ष में समझना पडेगा। प्रेम, विरह, हास्य, वात्सल्य, शौर्य, करुणा जैसे भावों का आधार खोजना पडेगा। दार्शनिकता भरी भूमिका को बीच में रोकते हुए हमने उनसे साधारण शब्दों में रागात्मकता का विश्लेषण करते हुए अतृप्त कामनाओं की आंशिक पूर्ति के उपायों को विश्लेषित करने के लिए कहा। इच्छाओं की पूर्ति के लिए किये जाने वाले प्रयासों को रागात्मक भोज्य से संतुष्ट करने के उपायों का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि पुरातन काल में कथानकों का रोचक वर्णन जब समय के साथ बदलता हुआ अभिनय की दहलीज पर पहुंचा तो आकर्षण का प्रादुर्भाव हुआ। अतीत की घटनाओं को वर्तमान में गति के साथ प्रस्तुत करने की क्षमता ही संतुष्टि के प्रतिशत का निर्धारण करती है। स्वप्न संसार की तरह ही मस्तिष्क में अतृप्त कामनाओं का भंडार सुरक्षित होता है जो देश, काल और परिस्थितियों के अनुकूल होते ही आकार लेने लगता है। कामनायें तीव्र होकर चरम तक पहुंचना चाहतीं है। सुखद, रचनात्मक और साकारात्मक पक्ष को समाज की स्वीकारोक्ति का पुरस्कार और दुखःद, विध्वंसात्मक और नकारात्मक पक्षों को तिरस्कार का दण्ड मिलता है। इसीलिए कलाकार अपनी प्रतिभा के माध्यम से कामनाओं का प्रत्यक्षीकरण करता है। चित्रकार की कलाकृति, गायक की स्वरलहरी, वादक की गूंज, लेखक का गद्य और साहित्यकार का पद्य, उनकी कामनाओं का सजीव प्रस्तुतिकरण ही तो है। प्रतिभा के माध्यम से साकार होतीं है मर्म में छुपी कामनायें। वास्तविकता को गूढ शब्दों की तूलिका से उकेरने वाले राजा बुंदेला अचानक कहीं खो से गये। अंतरिक्ष में कुछ खोजती उनकी आंखें एक टक कुछ देखे जा रहीं थीं। निश्चित ही हमारे प्रश्न ने उन्हें कहीं दूर अतीत की गहराइयों में पहुंचा दिया था। वे एक सशक्त कलाकार और नवोदित कलाकारों को प्राप्त होने वाला मंच भी हैं। भावरहित मुखमण्डल पर सांसों का तीव्र होता कारोबार स्पष्ट दिख रहा था। तभी कुछ लोगों की आमद हुई। उनका ध्यान भी भंग हुआ और हम भी व्यक्तिगत चिन्तन से बाहर आकर सामाजिकता विविधता में पहुंच गये। उन्होंने इस मध्य कहीं खो जाने के लिए सारी बोला जिस हमने अनकहे वाक्य से स्वीकारा। अभी तक हुए विचार मंथन में हमें अपने प्रश्न के समाधान मिल चुका था। आगन्तुकों ने अपना परिचय देते हुए वालीबुड के इस हस्ताक्षर से उनके साथ सेल्फी लेने की अनुमति मांगने का क्रम शुरू कर दिया। हम एक सोफे पर बैठे उनकी लोकप्रियता और फैन्स की आतुरता को निहारने लगे। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी।
Dr. Ravindra Arjariya
Accredited Journalist
for cont. -
dr.ravindra.arjariya@gmail.com
ravindra.arjariya@gmail.com
ravindra.arjariya@yahoo.com
+91 9425146253
प्रतिभा के माध्यम से साकार होतीं है मर्म में छुपी कामनायें
जीवन के रागात्मक पक्षों को सजीव करना आसान नहीं होता। बहुआयामी कारकों को आत्मसात करने के लिए संतुलन की महती आवश्यकता होती है। यही वह स्थिति है जिसे आनन्द के पर्याय के रूप में मान्यता प्रदान की गई है। अतृप्त कामनाओं को सांकेतिक खाद्य के माध्यम से संतुष्ट करने को ही शायद रचनात्मकता कहते हैं।
इसी शायद के प्रश्नवाची चिन्ह को सुलझाने का प्रयास कर रहा था कि तभी हमारे कंधे पर पडने वाली अपनत्व भरी धौल ने चौंका दिया। कल्पना लोक से उतरकर तत्काल भूतल पर पहुंच गया। वर्तमान का आभाष हुआ। दिल्ली के जनपथ रोड के बंगला नम्बर 7बी में भौतिक उपस्थिति और सामने मौजूद देश के जानेमाने फिल्म निर्माता राजा बुंदेला का आत्मीयता बिखेरता चेहरा, एक साथ मस्तिष्क को हौले से सहलाने लगा। लम्बे समय बाद मुलाकात होते ही बेताबी ने आकार ले लिया। बांहें फैली और गले मिलने की अनुभूति सजीव हो उठी।
कुशलक्षेम पूछने-बताने के बाद हमने अपने मस्तिष्क में चल रहे प्रश्नवाची चिन्ह को हल करने में उनका सहयोग मांगा। उनके चेहरे पर नाचती मुस्कुराहट ने गम्भीरता का आवरण ओठ लिया। फिल्म निर्माण के दौरान घटित होने वाले विभिन्न दृष्टांतों के उदाहरणों की भूमिका के साथ उन्होंने कहा कि जीवन के रागात्मक पक्षों को जानने के पहले हमें जीवन को ही समझना पडेगा। कारण, कृत्य और कामनाओं का वर्गीकरण करना पडेगा।
जिग्यासाओं से लेकर अपेक्षाओं तक की पृष्ठभूमि खंगालना पडेगी। रागात्मकता को रागों की विविधता के परिपेक्ष में समझना पडेगा। प्रेम, विरह, हास्य, वात्सल्य, शौर्य, करुणा जैसे भावों का आधार खोजना पडेगा। दार्शनिकता भरी भूमिका को बीच में रोकते हुए हमने उनसे साधारण शब्दों में रागात्मकता का विश्लेषण करते हुए अतृप्त कामनाओं की आंशिक पूर्ति के उपायों को विश्लेषित करने के लिए कहा। इच्छाओं की पूर्ति के लिए किये जाने वाले प्रयासों को रागात्मक भोज्य से संतुष्ट करने के उपायों का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि पुरातन काल में कथानकों का रोचक वर्णन जब समय के साथ बदलता हुआ अभिनय की दहलीज पर पहुंचा तो आकर्षण का प्रादुर्भाव हुआ। अतीत की घटनाओं को वर्तमान में गति के साथ प्रस्तुत करने की क्षमता ही संतुष्टि के प्रतिशत का निर्धारण करती है। स्वप्न संसार की तरह ही मस्तिष्क में अतृप्त कामनाओं का भंडार सुरक्षित होता है जो देश, काल और परिस्थितियों के अनुकूल होते ही आकार लेने लगता है। कामनायें तीव्र होकर चरम तक पहुंचना चाहतीं है। सुखद, रचनात्मक और साकारात्मक पक्ष को समाज की स्वीकारोक्ति का पुरस्कार और दुखःद, विध्वंसात्मक और नकारात्मक पक्षों को तिरस्कार का दण्ड मिलता है। इसीलिए कलाकार अपनी प्रतिभा के माध्यम से कामनाओं का प्रत्यक्षीकरण करता है। चित्रकार की कलाकृति, गायक की स्वरलहरी, वादक की गूंज, लेखक का गद्य और साहित्यकार का पद्य, उनकी कामनाओं का सजीव प्रस्तुतिकरण ही तो है। प्रतिभा के माध्यम से साकार होतीं है मर्म में छुपी कामनायें। वास्तविकता को गूढ शब्दों की तूलिका से उकेरने वाले राजा बुंदेला अचानक कहीं खो से गये। अंतरिक्ष में कुछ खोजती उनकी आंखें एक टक कुछ देखे जा रहीं थीं। निश्चित ही हमारे प्रश्न ने उन्हें कहीं दूर अतीत की गहराइयों में पहुंचा दिया था। वे एक सशक्त कलाकार और नवोदित कलाकारों को प्राप्त होने वाला मंच भी हैं। भावरहित मुखमण्डल पर सांसों का तीव्र होता कारोबार स्पष्ट दिख रहा था। तभी कुछ लोगों की आमद हुई। उनका ध्यान भी भंग हुआ और हम भी व्यक्तिगत चिन्तन से बाहर आकर सामाजिकता विविधता में पहुंच गये। उन्होंने इस मध्य कहीं खो जाने के लिए सारी बोला जिस हमने अनकहे वाक्य से स्वीकारा। अभी तक हुए विचार मंथन में हमें अपने प्रश्न के समाधान मिल चुका था। आगन्तुकों ने अपना परिचय देते हुए वालीबुड के इस हस्ताक्षर से उनके साथ सेल्फी लेने की अनुमति मांगने का क्रम शुरू कर दिया। हम एक सोफे पर बैठे उनकी लोकप्रियता और फैन्स की आतुरता को निहारने लगे। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी।
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