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अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश के खिलाफ धरना प्रदर्शन करने वालों के द्वारा लगाए जा रहे तमाम आरोपों को एम्स प्रशासन ने सिरे से खारिज कर दिया है। एम्स प्रशासन ने आंदोलनरत लोगों द्वारा की जा रही अनर्गल मांगों को भी तथ्यहीन व गलत करार दिया है।


संस्थान के विरुद्ध जारी आंदोलन के मद्देनजर एम्स प्रशासन द्वारा बताया गया कि हटाए गए आउटसोर्स कर्मचारी एम्स संस्थान से सिर्फ उत्तराखंड के लोगों को हटाए जाने की बात कह रहे हैं, जबकि ऐसा नहीं हैं। इनमें कई लोग गैर उत्तराखंड से भी हैं, जिनमें मुजफ्फरनगर के ललित कुमार,बिजनौर की
पूनम सैनी,मुरादाबाद के सोनू, ,सहारनपुर की मनीषा आदि शामिल हैं।
एम्स केंद्रीय संस्थान है,इस लिहाज से इसमें 70 प्रतिशत आरक्षण उत्तराखंड मूल के लोगों के लिए नहीं हो सकता, लिहाजा इसके लिए पॉलिसी केंद्र सरकार ही बना सकती हैं। एम्स प्रशासन का तर्क है कि संस्थान में वर्तमान में कार्यरत कर्मचारियों में लोकल कर्मचारी 70 प्रतिशत से अधिक हैं। उन्होंने बताया कि एम्स प्रशासन किसी भी अनैतिक दबाव में आकर मनमुताबिक भर्ती नहीं कर सकता, वजह भर्ती रिक्रूटमेंट रूल में दी गई भर्ती निर्धारित सीटों से अधिक नहीं हो सकती हैं। बताया गया कि हटाए गए अस्थायी कर्मियों को वापस लेने की मांग को लेकर सोमवार को जो बुजुर्ग व्यक्ति संस्थान की छत पर चढ़े हैं, वह एम्स में अपनी बेटियों की नियुक्ति की मांग कर रहे हैं।  जबकि इनकी दोनों बेटियां एम्स, ऋषिकेश की परमानेंट नर्सिंग पदों की परीक्षा में हर बार बैठी हैं मगर, कभी परीक्षा उत्तीर्ण नहीं कर पायीं।
एम्स प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि जितनी सीटों पर परमानेंट अभ्यर्थी ज्वाइन करेंगे, उतनी सीटों पर आउटसोर्स व्यक्तियों को हटाया जाएगा,यह बात प्राइवेट कंपनी से टेंडर शर्तों में स्पष्ट होती हैं और अस्थायी नियुक्ति के समय संबंधित व्यक्ति को कम्पनी इस बाबत स्पष्टतौर पर बताती हैं साथ ही हस्ताक्षर भी कराती हैं। इतना ही नहीं यह बात ज्वाइनिंग लैटर में भी होती हैं। एम्स प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि जो लोग नर्सिंग व अटेंडेंट्स पदों से हटाए गए हैं वह पूर्णरूप से प्राइवेट कम्पनी के अस्थायी कर्मचारी थे।

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