Halloween party ideas 2015

दुर्भाग्यपूर्ण है सेना के पराक्रम का प्रमाण मांगना


विश्व के सबसे बडे लोकतंत्र में चुनावी बिगुल बजते ही राजनैतिक आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर तेज हो गया है। सत्ताधारी पार्टी पर विपक्ष ने एक जुट होकर हमला बोलना शुरू कर दिया है। राष्ट्र की एकता, अखण्डता और संप्रभुता की कीमत पर भी वोट बटोरने की चालें तेज होने लगीं हैं। गोपनीय दस्तावेजों की मांग, सुरक्षा एजेंसियों की घोषणाओं के बाद भी अविश्वास भरे वक्तव्य और पाकिस्तानी शब्दों को जुबान देने की स्थितियां सामने आने लगीं हैं। सेना का मनोबल तोडने वाले आत्मघाती लोगों के शब्दों से राष्ट्रवादी नागरिकों का सीना छलनी होने लगा है। उदारवादी देश की भावनायें ऐसे लोगों के कृत्यों से किस्तों में कत्ल होने पर विवस हैं। जातिवाद, क्षेत्रवाद और भाषावाद जैसे तूफानों के मध्य राष्ट्रवाद की सुकोमल बयार कहीं खो सी गयी है। मस्तिष्क में चल रहे विचारों को समीक्षात्मक आयाम देने की गरज से सेना के एक जांबाज अधिकारी के रूप में पहचान बनाने वाले कर्नल देवेन्द्र कुमार मिश्रा को फोन लगाया। उत्साह भरे शब्दों से स्वागत करने के बाद उन्होंने तत्काल मिलने की इच्छा व्यक्त की। वे चीन और पाकिस्तान से सटी अत्याधिक संवेदनशील सीमाओं पर तैनात रह चुके हैं। बांगलादेश युद्ध के दौरान कीर्तिमान स्थापित करने वाले कर्नल मिश्रा के सम्मुख निर्धारित समय पर पहुंचते ही उन्होंने गर्मजोशी से अभिवादन करने के साथ ही लम्बे समय से भेंट न होने की शिकायत दर्ज की। कुशलक्षेम पूछने-बताने के बाद हमने उनसे देश के वर्तमान हालातों पर राजनैतिक परिपेक्ष में समीक्षा करने को कहा। चमकते चेहरे पर चिन्ता की लकीरें उभर आयीं। अतीत के अनुभव और वर्तमान स्थितियां आपस में उलझ सी गईं। राजनैतिक दलों की स्वार्थपरिता से भरी मानसिकता को कोसते हुए उन्होंने कहा कि देश के संविधान की शपथ लेने वाली सेना के प्रवक्ता की स्वीकारोक्ति के बाद भी जब सबूतों की बात की जाती है, तो वह शब्द मां भारती के लाडलों के नहीं बल्कि नापाक इरादों के मंसूबे पालने वालों के होते हैं। जिस सेना पर सवा सौ करोड नागरिकों को विश्वास है, उस पर अविश्वास करने वालों को भी अब सबक सिखाने की जरूरत है। हमें सीमापार से कहीं अधिक खतरा भितरघातियों से है। इतना कहकर उन्होंने मौन धारण कर लिया। क्रोध से उनका चेहरा तमतमा रहा था। मुट्ठियां भिंच गई थीं। आंखों में लाल धागे तैरने लगे थे। आखिर देश को समर्पित एक सेना का जवान यह सब कैसे बर्दाश्त करता कि कोई स्वार्थ की बुनियाद पर व्यक्तिगत शीशमहल खडा करे। हालातों के साथ भावनाओं की जंग जारी थी। उन्होंने पानी से भरा गिलास उठाया और एक ही सांस में खाली कर दिया। उनके हाव-भाव पर सपाट सी खामोशी छा गई। कुछ पल यूं ही गुजरे। वे सामान्य हुए तो हमने उनसे सीमावर्ती इलाकों में तैनाती के अनुभवों को सांझा करने का निवेदन किया। मैकनाइज इनफ्रेन्ट्री रेजीमेन्ट के कार्यकाल को याद करते हुए उन्होंने कहा कि कश्मीर के बारमूला क्षेत्र में तैनाती के दौरान वहां के चन्द नागरिकों की विदेशी मानसिकता खुलकर उजागर हुई। वे हमें भारतीय और स्वयं को कश्मीरी मानते हैं। आपके देश में होता होगा, हमारे देश में यह सब नहीं है, जैसे वाक्य अक्सर सुनने को मिलते थे। कुछ लोग दूसरे देश के नागरिक जैसा व्यवहार करते हैं। संवैधानिक समस्या के कारण वहां का अलग कानून है, अलग व्यवस्था है और अलग सिद्धान्त हैं। इसी का फायदा उठाकर पाकिस्तान की नापाक साजिशें अमली जामा पहिन लेतीं हैं। करतारपुर मामले में पडोसी की मानसिकता खुलकर उजागर हुई है। खालिस्तान के जिन्न को फिर से खडा करने का षडयंत्र किया जा रहा है। ऐसे में देश को एक सशक्त सरकार और सशक्त प्रधानमंत्री का आवश्यकता है तभी सीमापर की चुनौतियों का मुंह तोड जबाब दिया जा सकेगा। दुर्भाग्यपूर्ण है सेना के पराक्रम का प्रमाण मांगना। चर्चा चल ही रही थी कि तभी नौकर ने कमरे में प्रवेश करके बदलते मौसम के अनुरूप फलों का रस और स्वल्पाहार की सामग्री सेन्टर टेबिल पर सजाना शुरू कर दी। व्यवधान उत्पन्न हुआ, परन्तु तब तक हमें अपने मस्तिष्क में चल रहे विचारों को स्थापित करने की पर्याप्त सामग्री प्राप्त हो चुकी थी। सो उनके आग्रह पर हम सेन्टर टेबिल पर आ गये। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नये मुद्दे से साथ फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए खुदा हाफिज।



Dr. Ravindra Arjariya
Accredited Journalist
for cont. -
ravindra.arjariya@gmail.com
ravindra.arjariya@yahoo.com
+91 9425146253

एक टिप्पणी भेजें

www.satyawani.com @ All rights reserved

www.satyawani.com @All rights reserved
Blogger द्वारा संचालित.