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जहा एक और केंद्र व उत्तराखण्ड सरकार चारधामो को जोड़ने के लिए आलवेदर जैसे महत्वकांक्षी योजना को धरातल पर उतार रही है ।वही आज भी रुद्रप्रयाग गौरीकुंड राष्टीय राजमार्ग पर बनी वर्षो पुरानी सुरंग यातायात के लिए मौत का सबब बनती जा रही है ।लेकिन राष्टीय राजमार्ग के द्वारा जीर्ण क्षीण हो रही सुरंग का स्थायी हल नही निकाला जा रहा है ।जिससे टर्नल पर लगी ईट भी धीरे धीरे निचे गिरनी शुरू हो गयी है ।
. ऋषिकेश से केदारनाथ घाटी को जोड़ने के लिए सन् 1967 के दशक में मंदाकनी की पहाड़ी को काट कर 65 मीटर लम्बी व 10 मीटर ऊँची सुरंग का निर्माण यातायात के लिए किया गया ।लेकिन 5 दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद सुरंग जगह-जगह से क्षतिग्रस्त होती जा रही है।लेकिन राष्टीय राजमार्ग के द्वारा इसके स्थायी टीट्मेंट की व्यवस्था नही की जा रही है जिससे आये दिन सुरंग से गुजरने वाले वाहनों के साथ साथ पैदल चलने वाले राहगीरों को भी जोखिम उठाना पड़ता हैं। भले ही क्षतिग्रस्त सुरंग की खबर दिखाने पर अधिशासी अभियन्ता द्वारा तकनीकी जाँच के लिए टिहरी हाइड्रो डिप्लोमेन्ट कारपोरेशन के डीजीएम को सुरंग का निरीक्षण करवाया गया। जिसमे सुरंग का स्थायी समाधान निकाला जा सके। लेकिन विभागीय कछवा गति का कार्य कब तक सुरंग समाधान निकलेगी यह तो समय ही बताएगा।
राजेन्द्र नोटियाल और सुरेन्द्र रावत स्थानीय समाजिक कार्यकर्ता का कहना है कि जहाँ एक और रुद्रप्रयाग से केदारघाटी को जोड़ने वाली सुरंग जीर्णक्षीण हो रखी है वही अलकनन्दा नदी पर बना बेलनी पुल भी अपनी लाइफ की उलटी गिनती गिन रहा है ।70 वर्षो पुराने पुल की मरोमत का निर्माण करने के बजाय विभाग केवल साइन बोल्ड लगा कर अपनी कार्यो की इतिश्री कर रहा है ।ऐसे में प्रतिदिन चल रहे हजारो वाहन का भार कब तक पुल उठा पायेगा इसका जबाब अधिकारियो के पास भी नही है जबकि मीडिया भी सुरंग व जर्जर पुल की स्थिति को कई बार सुर्खिया बन चूका है।लेकिन शासन प्रशासन का कोई भी ध्यान इस और नही है ।
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.वर्षो पुराने पुल व सुरंग का यदि शासन व प्रशासन ने कोई सज्ञान नही लिया तो केदारघाटी व तल्लानागपूर की आवाजाही तो बन्द हो जायेगी लेकिन देश विदेश से आने वाले हजारो श्रदालुओ को भी परेशानियो का सामना करना पड़ेगा।ऐसे में इस बार की लोक सभा चुनाव में प्रत्याशियों के सामने जनता का सुरंग व जर्जर पुल का मुद्दा भी सामने होगा।
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