रुद्रप्रयाग :
लोक सभा चुनावों की उलटी गिनती शुरू हो गई है। नेताओं के दावे-वादे और जुमलों की बाढ़ आ रही है। लेकिन इन सब से इतर क्या वाकई में हमारे गांव विकास की मुख्य धारा से जुड़ पाये हैं। या फिर स्थिति और भी विकट हो चली है। सरकारी ही तंत्र की लापरवाह किस तरह ग्रामीणों भारी पड़ रही है।
देखिए रिपोर्ट-
गुड्डी देवी, और शिव प्रसाद पंत, भ्यूंता गांव का कहना है कि ग्रामीणों को सुविधा देने के एवज में सरकारों ने गांवों में पटवारी चैकियों, पंचायत भवनों, ग्राम विकास अधिकारी कार्यालयों की स्थापना कर लाखों-करोड़ों रूपये तो खर्च कर रहे हैं, लेकिन सरकारी तंत्र की लापरवाही के कारण ,आज ये सरकारी भवन गांवों में पूरी तरह खण्डहरों में तब्दील हो गए हैं। स्थिति यह है कि राजस्व उपनिरीक्षक शहरों में किराये के भवनों पर मौज उड़ा रहे हैं तो ग्रामीण इन से संबंधित कार्यों के लिए दर-दर भटक रहे हैं।
रूद्रप्रयाग जनपद में राजस्व उपनिरीक्षकों के स्वीकृत 52 पदों के सापेक्ष 32 पदों पर तैनाती है, लेकिन गांवों जो पटवारी चैकिया बनी हैं कोई भी राजव उपनिरीक्षक इन में नहीं रहते हैं।
जबकि शहरों के नजदीक वाली चैकियां बिल्कुल गुलजार नजर आ रही हैं। यही स्थिति ग्राम विकास अधिकारीयों के भी हैं। गांवों में लाखों रूपये खर्च कर कार्यालयों की स्थापना तो जरूर कर रखी है लेकिन गांवों कोई अधिकारी बैठने को तैयार नहीं हैं। जबकि खण्डहर होते इन भवनों के एवज में भी बड़ा गोल माल है। सरकारी कार्यालयों के खण्डहरों में तब्दील हो जाने के बाद पुनः नये भवन के लिए बजट स्वीकृत किया जाता है और फिर भवन बनाकर बर्बाद करने के लिए छोड़ दिया जाता है।
कहने को भले ही आपने यह अक्सर सुना होगा कि भारत गांवों में बसता है, लेकिन पहाड़ के इन दीन-हीन गांवों की तस्वीर आजादी के 70 बरस बाद भी नहीं बदली है। हाँ कुछ चंद राजनीतिक लोगों ने इन गांवों के नाम पर जरूर अपनी तिजौरियां भरी हैं।लेकिन जिन सरकारों के भरोसे इन गांवों की तस्वीर सुधारने का दम भरा जा रहा था उसी के भ्रष्ट तंत्र की बेरूखी और हमारे जनप्रतिनिधियों की घोर उदासीनता इन गांवों को ही खण्डहरों में होने पर मजबूर कर दिया है।
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