सरकार की कार्यशैली के अनुरूप तंत्र को ढालने की कवायद
सहज संवाद / डा. रवीन्द्र अरजरिया
मध्यप्रदेश में नई सरकार का गठन हुआ। कांग्रेसी तेवर देखने को मिले। ‘वंदेमातरम्’ का मुद्दा विपक्ष के हाथ लगा। सरकार के मुखिया ने समय रहते यू-टर्न लेकर भूल सुधार करने में कोताही नहीं बरती। भाजपा के शासनकाल में इस आयोजन पर 51 हजार के टैंट और 1.86 करोड के खर्चे का आंकडा प्रस्तुत करके कांग्रेस ने अपना दामन बचाने की कोशिश की। मुद्दे को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाने लगा। गर्मागर्म बहस ने परिणामविहीन शब्दों की जंग छेड दी। चौपालों से लेकर चैनलों तक में तर्क-वितर्क का बाजार गर्म रहा। पार्टी के प्रति विश्वसनीयता स्थापित करने की मंशा से व्यक्तिगत तकरारें तक अस्तित्व में आने लगी। प्रदेश के बाहर देश के दूर दराज के इलाकों में भी मध्यप्रदेश का ‘वंदेमातरम्’ उछलकर खडा हो गया। विचारों का प्रवाह चल ही रहा था कि सामने से आते हुए कांग्रेस के तेज तर्राट विधायक आलोक चतुर्वेदी दिखे। इसके पहले कि हम उन्हें संबोधित करते, उन्होंने ही आत्मीय भरे अंदाज में आवाज लगा दी। अभिवादन की औपचारिकताओं के आदान-प्रदान के बाद हमने देश में चल रही बहस पर उनका दृष्टिकोण जाना चाहा तो उन्होंने अपनी व्यस्तता दर्शाते हुए शाम को लम्बी मुलाकात का अनुरोध किया। हमने सहमति व्यक्ति कर अपने गन्तव्य का रुख किया। रास्ते में हमें उनके साथ तीन दिन पहले गुजारा वक्त याद आ गया। जब हम उनके विधानसभा क्षेत्र में व्यक्तिगत प्रवास पर थे। छतरपुर के जिला चिकित्सालय को नवनिर्मित भवन में स्थान्तरित करने में उन्होंने जिस कार्यशैली को अपनाया, वह वर्तमान विधायकों के लिये भी प्रेरणादायक बन सकती है। उत्तरप्रदेश के महोबा सहित पन्ना, टीकमगढ जिलों के मरीजों का एक मात्र सहारा बना छतरपुर जिला चिकित्सालय अपने पुराने भवन के टूटने और नये भवन के निर्माणाधीन के कारण लम्बे समय से अव्यवस्था का शिकार बना हुआ था। विशेषज्ञों, चिकित्सकों का लम्बी फेरिस्त होने, अत्याधुनिक उपकरणों की मौजूदगी, नर्सिंग स्टाफ सहित कर्मचारियों की भरमार के बाद भी मरीजों को अव्यवस्था के कारण भारी परेशानी का सामना करना पड रहा था। नयी सरकार के गठन में छतरपुर की भागीदारी न होने का बाद भी लोगों का विश्वास छतरपुर के सदर विधायक आलोक चतुर्वेदी पर केन्द्रित है। समस्यायें उन तक पहुंचायी गयी। उन्होंने तत्काल स्वास्थ विभाग की आपातकालीन बैठक आहूत की। जिम्मेवार अधिकारियों से समस्याओं के सैद्धान्तिक और व्यवहारिक पक्ष जाने। विद्युत का अभाव, भवन निर्माण के ठेकेदार की लापरवाही, संसाधनों की कमी जैसे अनेक सैद्धान्तिक कारक सामने आये। सभी कारकों से जुडे अधिकारियों को उसी समय बैठक में बुलाया गया। समस्याओं का व्यवहारिक हल निकालने के सामूहिक प्रयास किया गये। यह अलग बात है कि मुख्यमंत्री से सदर विधायक की निकटता के कारण अधिकारियों में उनका खासा दबदबा है। कुल मिलाकर दो दिन के अंदर ही समस्याओं का न केवल वैकल्पिक समाधान कर लिया गया बल्कि नवनिर्मित भवन में चिकित्सकों से लेकर पूरा स्टाफ समय-विभाजन-चक्र के अनुरूप बवर्दी मौजूद हो गया। अस्पताल में अवैध रूप से पार्किंग वसूलने वाले भी उडन छू हो गये। व्यवस्थायें पटरी पर आने लगीं। तभी हमारी कार के ड्राइवर ने झटके से गाडी रोकी। गन्तव्य सामने था। हम अपनी मंजिल पर पहुंच गये थे, सो गाडी से निकल कर आवश्यक कार्य निपटाया। पूर्व निर्धारण के अनुसार शाम को हम और आलोक चतुर्वेदी, जिन्हें स्थानीय लोग उम्र के हिसाब से ‘पज्जन भइया’ या ‘पज्जन चाचा’ का प्यार भरा संबोधन देते हैं, आमने-सामने थे। ‘वंदेमातरम्’ पर मुख्यमंत्री का फरमान और फिर परिस्थितियों के प्रतिकूल होते ही उस पर यू-टर्न, यही था विषय जो उनके लिए व्यवहारिक चुनौती बन गया। पार्टी लाइन पर उन्होंने चलना शुरू कर दिया। आंकडों की बाजीगरी, शब्दों की पुनरावृत्ति और भाजपा को कोसने का क्रम प्रारम्भ होते ही हमने उन्हें बीच में ही रोक दिया। पूर्व में हो चुकी बातों पर समय बर्वाद न करने की सलाह के साथ इस के मर्म का उल्लेख करने की बात कही। उन्होंने कहा कि वास्तविकता यह है कि हम प्रदेश के एक-एक पैसे को बर्वादी से रोकना चाहते हैं, विकास के लिए एक बडी राशि चुटाना चाहते है, समाज के अंतिम छोर पर बैठे व्यक्ति का दर्द दूर करना चाहते हैं। इसी सब के कारण प्रदेश के मुखिया ने मितव्ययीता का परिचय देते हुए 1.86 करोड रुपये बचाने की मंशा से यह निर्णय लिया था।‘वंदेमातरम्’ को नये स्वरूप में प्रस्तुत करने हेतु मंथन चल ही रहा था कि विपक्ष ने हायतौबा मचाना शुरू कर दी। ईमानदाराना बात तो यह है कि सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को भी अब मानवीय आधार पर सहयोगात्मक रवैया अपनाना होगा, जिसका वर्तमान में नितांत अभाव महसूस हो रहा है। सरकार की कार्यशैली के अनुरूप तंत्र को ढलना पडेगा। इसके लिए कुछ कठोर निर्णयों की आवश्यकता हुई, तो वह भी लिये जायेंगे। चर्चा तो लम्बी रही परन्तु रेखांकित किये जाने योग्य शब्द ही यहां आकार ले सके। इस बार बस इतना ही, अगले सप्ताह एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए खुदा हाफिज।
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