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नई दिल्ली;

 भाजपा संसदीय दल की बैठक में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर उठी मांग के बीच भाजपा महासचिव राम माधव ने बुधवार को यहां कहा कि राम मंदिर पर सरकार को अध्यादेश लाना चाहिए। माधव ने न्यूज18 इंडिया के कार्यक्रम चौपाल में कहा कि राम मंदिर का मुद्दा उनके किए चुनावी मुद्दा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता का मुद्दा है। लेकिन सवाल यह उठता है कि राम मंदिर का मुद्दा चुनावों के समय ही क्यों उठता है? इस पर उन्होंने कहा, "चुनाव आते ही राम मंदिर का मुद्दा इसलिए उठता है, क्योंकि उसी समय राजनीतिक पार्टियों पर दबाव बनाना आसान होता है।"
उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस ने जानबूझकर यह फैसला अटकाकर रखा है।

 राम मंदिर का मुद्दा महत्वपूर्ण है, लेकिन चुनाव में मुद्दा मोदी जी का किया गया काम ही होगा। मोदी आज भी जनता के बीच उतने ही लोकप्रिय हैं, इसमें शक नहीं है। कांग्रेस हमेशा से राम मंदिर मुद्दे को राजनीति के लिए इस्तेमाल करती आई है। 1989 में राजीव गांधी ने इस राजनीति की शुरुआत की थी। राम मंदिर हमारे लिए राष्ट्रीय अस्मिता और स्वाभिमान का मुद्दा है।कश्मीर से जुड़े एक सवाल पर उन्होंने कहा कि घाटी की राजनीति पर पाकिस्तान का प्रभाव और दबाव हमेशा से रहा है।

हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि पीडीपी के साथ सरकार बनाना गलती नहीं थी।
उन्होंने कहा कि जम्मू एवं कश्मीर को लोकतांत्रिक सरकार ही ठीक से चला सकती है। हम लंबे समय तक उस राज्य को राज्यपाल शासन में नहीं रखना चाहते हैं। कश्मीर में पाकिस्तान सरकार चलाता है' बयान पर माधव ने कहा कि शेख अब्दुल्ला को जवाहरलाल नेहरू ने इसी के चलते गिरफ्तार किया था, और हुर्रियत के रास्ते भी पाकिस्तान ने यही कोशिश की है। उन्होंने आगे कहा, "उमर अब्दुल्ला की सरकार के दौरान भी इसी हस्तक्षेप के चलते कई गिरफ्तारियां हुई थीं। कश्मीर की स्थिति काफी सुधरी है, आतंकवादी का जीवनकाल पहले चार साल होता था, जो अब घटकर सिर्फ छह महीने रह गया है। देश को कांग्रेस मुक्त करने के भाजपा के आह्वान पर पर माधव ने कहा कि आने वाले वक्त में ऐसा जरूर होगा।
माधव ने कहा कि पूर्वोत्तर में कांग्रेस साफ हो गई है और तेलंगाना में महागठबंधन की बुरी हार हुई है।" हालांकि उन्होंने स्वीकार किया "मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में एंटी इनकमबेंसी एक फैक्टर रहा और राजस्थान में हर बार ऐसा ही होता है। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार सिर्फ एक मैथेमैटिकल फैक्टर है। राजीव गांधी का 1984 का चुनाव छोड़ दें तो लोकसभा में किसी भी पार्टी का मत प्रतिशत 30 से ज्यादा नहीं रहता है।

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