नरेंद्र नगर;
वाचस्पति रयाल
श्री रामलीला कमेटी के तत्वावधान में पालिका के रामलीला मैदान में प्रभु श्री राम की लीला के मंचन के पंचम दिन लीला के दृश्यों में "दशरथ- सुमंत व कौशल्या" "दशरथ मरण, रानियों का विलाप" "कैकई -भरत" "कौशल्या -भरत" "मंथरा- शत्रुघ्न" "राम- भरत संवाद के दृश्य प्रमुख थे
। प्रभु राम की आज्ञा का पालन करते हुए सुमंत व्यथित मन से अयोध्यापुरी को लौट पड़ते हैं, जैसे ही वह अयोध्या के नजदीक पहुंचने लगते हैं तो व्यथित मन से कह उठते हैं "अवध में क्या मुख ले जाऊं, कहूं क्या पूछे जब राजा"
इधर पुत्र से बिछड़ने के गम में राजा दशरथ अपने प्राण त्याग देते हैं। पिता की मृत्यु की खबर सुनते ही भरत- शत्रुघ्न अपने ननिहाल से अयोध्या पहुंचते हैं, अयोध्या का सुनसान माहौल देखकर वह सुमंत से श्री राम के राज्याभिषेक के बारे में पूछते हैं। सुमंत भरत जी को श्री राम के वनवास की खबर सुनाते हैं तो भरत दुःखी होकर अपना राज्य छोड़ कर अपने भाई राम से मिलने वन की ओर चल पड़ते हैं, सारा कुटुंब उनके पीछे -पीछे चल पड़ता है।
इससे पूर्व के दृश्यों में भरत कैकई पर और शत्रुघ्न मंथरा पर क्रोधित होकर उन्हें बुरा भला कहते हैं।
वन में श्रीराम से मिलकर भारत उनके चरणों में गिर पड़ता है और वापस अयोध्या चलने की विनती करने लगता है मगर श्री राम रघुकुल रीति और वचन का सिद्धांत को बड़े सौम्य और शांत भाव से बताते हुए अपने भाई भरत को अयोध्या लौटने ,वहां की प्रजा का दुख बांटने और राज चलाने को कहते हैं।
भरत राम की खड़ाऊ लेकर अयोध्या को वापस लौटते हैं।
लीला के कलाकारों में हितेश जोशी, गौरव रावत, धन सिंह गुसाईं ,पवन कुमार ड्यूडी, महेश गुसाईं, द्वारिका प्रसाद जोशी, हिमांशु रयाल,शैलेंद्र नौटियाल, पारस, अर्जुन सेमल्टी,संजय रतूड़ी, धूम सिंह नेगी ,नरपाल सिंह भंडारी ,विनोद गंगोटी,मनोज भंडारी ,सुरेंद्र थपलियाल आदि थे।
लीला के अध्यक्ष सूरत सिंह थपलियाल, पूर्व पालिका अध्यक्ष राजेंद्र सिंह राणा, पूर्व सभासद जयपाल सिंह नेगी, सभासद बसंती नेगी, मनवीर सिंह नेगी, आशा टम्टा, मोर सिंह रावत लीला के अंतिम दृश्य तक पांडाल में लीला का श्रवण करते रहे।
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