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डा. रवीन्द्र अरजरिया की कलम से...
संगठन लगायेगी भाजपा की प्रदेश में नैया पार?
छत्तीसगढ का मतदान समाप्त हो गया है। वहां पर सक्रिय की गई संगठन की पूरी टीम को मध्य प्रदेश में भेज दिया गया है। चप्पे-चप्पे पर प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक तैनात कर दिये गये हैं। प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर नियुक्त किये गये लोगों ने मोर्चा सम्हालने की तैयारी कर ली है। पूर्व में जिस क्षेत्र का काम जो  लोग देख चुके हैं, ज्यादातर उन्हीं को  वहा पहुंचाया गया है। उनके साथ में नवागन्तुक कार्यकर्ताओं की फौज भी भेजी गई है ताकि लोगों का ब्रेन वाश करके ऐन-केन-प्रकारेण लक्ष्य भेदन की कला आने वाली पीढी भी सीख सके। खास तौर पर बुंदेलखण्ड की सीटों पर भाजपा का बिगड चुका गणित फिर से फलादेश तक पहुंच कर उत्तीर्णांक दिला सके। यूं तो माई के लाल, अनुसूचित जाति और जनजाति को खुश करने के कानून से प्रताडित वर्गों और प्रदेस के मुख्यमंत्री के अतीत के उद्घोषों से आहतों की संख्या पूरे प्रदेश में कमल को कीचड में मिलाने हेतु सक्र्रिय है परन्तु सपाक्स सहित अनेक ऐसे संगठन की लोकप्रियता धनाभाव में पहले ही कुबेरपतियों की पार्टियों ने समाप्त कर दी है। फिर भी समानता और एक रूपता और समानाधिकार की दुहाई देने वालो आत्मविश्वासी लोग अभी भी अपने सीमित साधनों से राष्ट्र को अवसरवादियों के शिकंजे से मुक्त कराने की मुहिम चला रहे हैं। यह सत्य है कि ऐसे मुट्ठी भर लोगों को भी उनके अतीत की नासमझियो के आधार पर शांत हो जाने के लिए ब्लैक मेल किया जा रहा है। 
भाजपा के असंतुष्ट और बागी लोगों को नियंत्रण में लेने के लिए सरकारी तंत्र का भी खुलकर उपयोग हो रहा है। ऐसे कार्यकर्ताओं के अपराधी प्रवृति से जुडे रिश्तेदारोंं पर इनाम, जिला बदर जैसे कानून प्रभावी होने लगे हैं। खाकी के डंडे से सफेदी की हैकडी का डंका बजाने की नीति भी अनेक स्थानों पर शिकायती पत्रो ंके माध्यम से उजागर हो रही है। सरकारी फोन से लेकर पार्टी के दिग्गजों  के मोबाइल तक  विरोध को कुचलने के लिए युध्द स्तर पर उपयोगी हो रहे हैं। इस चुनाव में मध्य प्रदेश में कुछ स्थानों को यदि अपवाद में छोड दें तो यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि अधिकांश टिकटों का वितरण आम कार्यकर्ता से बहुत दूर किया गया है। सेवा, समर्पण और सिध्दान्तों की दुहाई देने वाले दल की नीतियां-रीतियां भी अन्य राजनैतिक दलों के समान ही अवसरवादी, स्वार्थवादी और व्यक्तिवादी होकर रह गईं है। आदर्श की पराकाष्ठा पर पहुंचे लोगों को हासिये पर पहुंचाने वाले षडयंत्रकारियों के एक गिरोह ने कब पार्टी का अपहरण कर लिया, किसी को पता ही नहीं चला। अब मध्यप्रदेश के चुनावों में सफलता हासिल करने के लिये जी, यानी सम्मानजनक जी यानी नाम के पीछे वाला जी, की टीम पूरे दल-बल के साथ उतार दी गई है। वे भोजन, स्वल्पाहार, मेल-मुलाकात जैसे बहानों से आपके घर के अन्दर दस्तक देकर आत्मीयता के प्रदर्शन के साथ अपना लक्ष्य साध की कोशिश करने लगे हैं। कुल मिलाकर यहां  यह कहना समाचीन होगा कि प्रेम, जंग और चुनाव में सब जायज है।


Dr. Ravindra Arjariya
Accredited Journalist
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ravindra.arjariya@gmail.com

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