सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्रयम्बिके गौरी नारायणी नामोsस्तुते।।
माँ दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। दुर्गा पूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन 'सहस्रार' चक्र में स्थित रहता है।
इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। देवी कालात्रि को व्यापक रूप से माता देवी - काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, मृित्यू, रुद्रानी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है। रौद्री और धुमोरना देवी कालात्री के अन्य कम प्रसिद्ध नामों में हैं |
सहस्रार चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतः माँ कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है। उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य (सिद्धियों और निधियों विशेष रूप से ज्ञान, शक्ति और धन) का वह भागी हो जाता है। उसके समस्त पापों-विघ्नों का नाश हो जाता है और अक्षय पुण्य-लोकों की प्राप्ति होती है।
परंतु कलियुग में देवी की स्तुति का प्रयोग तंत्र मंत्र और दूसरों के विनाश के लिए करते है, जिसका फल क्षणिक तो हो सकता है, परंतु स्थायी नही। सदैव रहने वाली मा की कृपा ऐसे साधकों के सर्वस्व नष्ट कर देती है। क्योंकि मा के सभी स्वरूप का आधार सत्य और सत्कर्म ही है।
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