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 भक्तों ने कहा गंगा के बारे में अपने पूर्वजों से सुनते थे आज साक्षात दर्शन हुये, जीवन धन्य हो गया

ऋषिकेश;

 परमार्थ निकेतन में माँ गंगा के पावन तट पर श्रीमद् भागवत कथा का शुभारम्भ हुआ। दिव्य कथा का शुभारम्भ परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज, गुरूकुल छारोड़ी अहमदाबाद से पधारे स्वामी माधवप्रियदास जी महाराज, स्वामी राम जी, श्री बालकृष्ण स्वामी जी, श्री श्याम जी भगत तथा अनेक संतों दीप प्रज्वलित कर किया।
कथा श्रवण करने हेतु गुजरात से हजारों की संख्या में भक्तगण पधारे। इन भक्तों में 70 प्रतिशत ऐसे श्रद्धालु है जिन्होने माँ गंगा के दर्शन पहली बार किये। भक्तों ने कहा कि गंगा के बारे में अपने पूर्वजों से सुनते थे आज साक्षात दर्शन हुये, जीवन धन्य हो गया अब लगता है यही गंगा के तट पर बस जाये यह स्थान वास्तव में स्वर्ग तुल्य है।
परमार्थ निकेतन गंगा माँ के पावन तट पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने सभी पूज्य संतों एवं श्रद्धालुओं का अभिनन्दन किया।
कथा के मंच से स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि श्रीमद् भागवत कथा में दो लोगों ने आर्षवाणी और आकाशवाणी सुनी, प्रथम राजा परिक्षित को जब ऋषि का श्राप हुआ तो उन्होने आर्षवाणी सुनी और कंस ने आकाशवाणी सुनी। आर्षवाणी में ऋषि का श्राप मिला की सात दिनों में सांप डसेगा और मौत हो जायेगी और उधर दूसरी ओर कंस ने आकाशवाणी सुनी कि देवकी के आठवे गर्भ से तेरी मृत्यु होगी । उन्होने कहा कि आकाशवाणी सुनकर एक सत्ता की ओर चल पड़ा और निश्चय किया कि कौन है मेरा काल जो मुझे मारेगा मैं उसे ही मार दूंगा फिर कंस ने जाल फैलाया; योजना बनायी परन्तु सारी योजनायें धरी की धरी रह गयी, भगवान कृष्ण प्रकट् हुये और कंस का अंत किया। दूसरी ओर राजा परिक्षित ने राजा होते हुये भी सत्ता का नहीं बल्कि सत्य का साथ लिया और सत्य की शरण में गये। कंस और परिक्षित दोनों राजा थे परन्तु एक पर कुसंग का असर था और राजा परिक्षित पर सत्संग का असर था। जिसने सत्य का सहारा न लेकर सत्ता का सहारा लिया वह खुद भी नष्ट हुआ और पूरे वंश को भी नष्ट किया। राजा परिक्षित ने सत्य का सहारा लिया कथा के पथ पर पूज्य संतों की शरण में जाकर कथा श्रवण का मोक्ष को प्राप्त किया। राजा परिक्षित ने गंगा के तट पर साधना की और कंस ने यमुना के तट पर अहंकार दिखाया। परिक्षित ने स्वंय के परिकार का रास्ता चुना और कंस ने आकाशवाणी के तिरस्कार का रास्ता चुना जिससे परिक्षित तो अमर हो गया और कंस सदा-सदा के लिये मिट गया अर्थात संतों का सत्संग जीवन में कितना असर डालता है कि जब-जब जीवन में संघर्ष होते है समस्यायें सामने आती है; शाप जैसा अभिशाप सामने आया उसमें भी जो साधना है, अन्तस का जो ज्ञान है और भगवान का आश्रय सदा ही व्यक्ति को उन सभी परिस्थितियों से बचा लेता है यही राजा परिक्षित के साथ हुआ इसलिये हम रोज सांयकाल बैठकर अपने ही दिल की अदालत में, अपने ही बारे में सुने, देखे और निर्णय करे तथा अपने दिल की अदालत से सर्टिफिकेट ले। इससे स्वंय की अदालत से स्वंय के लिये लिया गया निर्णय बहुत दूर तक अपनी यात्रा को भीतर की भी और बाहर की भी यात्रा को सफल करेगा।

यजमान परिवार के सदस्य श्री भिक्खु भाई, घनश्याम भाई, बहादूर सिंह जी और अन्य सदस्यों ने पूज्य संतों का स्वागत और अभिनन्दन किया।

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