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रूद्रप्रयाग;

भूपेंद्र भण्डारी

कृषि  क्षेत्र में जैविक जनपद घोषित हो चुके  रुद्रप्रयाग में काश्तकारों की दिक्कतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। जैविक जिला घोषित होने के कारण यहां रासायनिक खादें तो बन्द हो चुकी हैं मगर अभी तक जैविक खादें भी यहां नहीं मिल पा रही हैं। ऐसे में काश्तकारों को भारी नुकशान उठाना पड रहा है उनके सामने ही उनकी पैदावार बरबाद हो रही है और दवा छिडकाव के नाम पर उन्हें बाजारों या फिर सरकारी विभागों से कुछ भी मदद नहीं मिल पा रही है। 

पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में रुद्रप्रयाग जनपद को पूरी तरह से जैविक जनपद घोषित किया गया था जिसको लेकर यहां जैविक उत्पाद परिषद का मण्डलीय कार्यालय भी स्थापित किया गया था। मगर कुछ समय बाद ही यहां से कार्यालय को स्थानांतरित कर दिया गया और यहां पर संचालित सभी गतिविधियों को समाप्त कर दिया गया।
अनुसुया प्रसाद मलासी का कहना है कि काश्तकार अब परेशान हो गये हैं उन्हें अपने उत्पादों को बचाने के लिए ना तो जैविक खादें व कीटनाशक मिल पा रहे हैं और ना ही रासायनिक उर्वरक। जिसके चलते काश्तकारों को भारी नुकसान उठाना पड रहा है। 

जिले के उद्यान अधिकारी योगेन्द्र चैधरी ने गिंवाला गांव स्थित अमरुद, आम, कठहल, व नींबू समेत कई बगीचों का निरीक्षण कर स्वीकारा कि पैदावार वास्तव में खराब हो रही है और उनके पास इसके रोकथाम के लिए कोई भी खाद नहीं है। जैविक जनपद होने के कारण कास्तकारों को रासायनिक उत्पादों की सलाह नहीं दी जा सकती है और जैविक उत्पाद अभी बाजारों में  नहीं है। ऐसे में कोशिश की जा रही है कि जितना हो सके कास्तकारों को तकनीकी जानकारियां ही विभाग दे रहा है। 

प्रदेश सरकार ने भले ही आनन-फानन में रुद्रप्रयाग को जैविक जनपद तो घोषित कर दिया मगर जिले में अभी तक भी जैविक खादें व कीटनाशक नहीं भिजवाए ऐसे में साफ कहा जा सकता है कि सरकार अपने नम्बर बढ़ाने के लिए घोषणाएं तो कर देती हैं मगर उसका बडा खामियाजा कास्तकारों को भुगतना पडता है और यही खामियाजा रुद्रप्रयाग के कास्तकार भुगत रहे हैं।  

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