हरिद्वार/ कनखल :
अंजना गुप्ता
इसके अतिरिक्त अगस्त्य, कश्यप ,अत्रि, वासुदेव, दधीचि, भगवान व्यास, भारद्वाज, गौतम, पृथु, पाराशर, गर्ग ,भार्गव, संबंधों तथा अन्य मुनि दक्ष के यज्ञ में परिवार सहित उपस्थित हुए।
यज्ञ में हज़ारों ऋषि आहुति देते थे और हज़ारों देव ऋषि मंत्र उच्चारण करते थे । भगवान शिव को नीचा दिखाने के उद्देश्य से दक्ष ने आमंत्रित नहीं किया। यहां तक की कपाला की पत्नी कहते हुए, अपनी पुत्री सती को भी नहीं बुलाया। पिता के ना बुलाने पर भी सती अपने पति की आज्ञा लेकर, कनखल में उस स्थान पर पहुंची। जहां यज्ञ हो रहा था । अपने पति भोलेनाथ का भाग वहां ना पाकर ,उसका मन अत्यंत दुखी हुआ। पिता के द्वारा प्रताड़ित किए जाने से लज्जित हुई। चाहते हुए भी वह अपने पति के पास वापस नहीं गई तथा समस्त विषयों के समक्ष योगाग्नि से स्वयं को भस्म कर लिया।
इस दुख के कारण सती के साथ आए शिवजी के 70000 गणों में से 20000 कारण स्वयं नष्ट हो गए सती का समाचार पाकर भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपनी जटा पर्वत पर दे मारी । जिससे शक्तिशाली वीरभद्र की उत्पत्ति हुई । जटा के दूसरे भाग से महाकाली उत्पन्न हुई । भगवान भोले का आदेश पाकर दोनों ने दक्ष के यज्ञ स्थल पर विध्वंस करना आरंभ कर दिया। वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट डाला।
बाद में विष्णु जी एवं अन्य देवताओं के आग्रह पर महादेव ने दक्ष को पुनर्जीवित किया, परंतु उसके धड़ पर बकरे का सिर लगा दिया ।
शंकर भगवान की कृपा से दक्ष प्रजापति ने विधिपूर्वक उस यज्ञ के कार्य को संपन्न किया। दक्षेश्वरमहादेव मंदिर वही क्षेत्र है जहाँ भगवन शंकर ने अपनी कृपा राजा दक्ष पर की थी. समीप ही गंगा नदी का प्रवाह मंदिर की पवित्रता में चार छान लगा देता है. यह वही दक्ष यज्ञ का स्थल है, जो आज दक्ष मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।
वर्ष भर श्रद्धालुओं से आच्छादित रहनेवाला दक्ष मंदिर श्रावण माह में कांवड़ियों का विशेष प्रिय स्थल है. यहाँ भगवान् शिव को जलाभिषेक करने से विध्वंसक प्रवर्तियों से छुटकारा मिलता है। शिवरात्रि के पावन पर्व पर पंचाक्षर मंत्र के द्वारा विधि सहित पूजन कर श्रद्धालु मुक्ति की कामना करते हैं
दक्ष मंदिर के समीप ही कनखल में सती कुंड कनखल नामक स्थान पर एक बहुत बड़ा यज्ञ स्थल भी है, जो आज भी पौराणिक यज्ञ स्थल का चिन्ह माना जाता है।
अंजना गुप्ता
श्री महाशिवपुराण के 27 वें अध्याय में कनखल स्थित दक्ष मंदिर का स्पष्ट उल्लेख मिलता है।
इसी अध्याय में दक्ष यज्ञ भाग में ब्रह्मा जी ने सती के पिता दक्ष को शिव के द्वारा दंड मिलने के बारे में बताते हुए कहा है कि कनखल नामक तीर्थ में प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया ।इस यज्ञ में भ्रगु आदि तपस्वियों को ऋत्वज बनाया गया।इसके अतिरिक्त अगस्त्य, कश्यप ,अत्रि, वासुदेव, दधीचि, भगवान व्यास, भारद्वाज, गौतम, पृथु, पाराशर, गर्ग ,भार्गव, संबंधों तथा अन्य मुनि दक्ष के यज्ञ में परिवार सहित उपस्थित हुए।
यज्ञ में हज़ारों ऋषि आहुति देते थे और हज़ारों देव ऋषि मंत्र उच्चारण करते थे । भगवान शिव को नीचा दिखाने के उद्देश्य से दक्ष ने आमंत्रित नहीं किया। यहां तक की कपाला की पत्नी कहते हुए, अपनी पुत्री सती को भी नहीं बुलाया। पिता के ना बुलाने पर भी सती अपने पति की आज्ञा लेकर, कनखल में उस स्थान पर पहुंची। जहां यज्ञ हो रहा था । अपने पति भोलेनाथ का भाग वहां ना पाकर ,उसका मन अत्यंत दुखी हुआ। पिता के द्वारा प्रताड़ित किए जाने से लज्जित हुई। चाहते हुए भी वह अपने पति के पास वापस नहीं गई तथा समस्त विषयों के समक्ष योगाग्नि से स्वयं को भस्म कर लिया।
इस दुख के कारण सती के साथ आए शिवजी के 70000 गणों में से 20000 कारण स्वयं नष्ट हो गए सती का समाचार पाकर भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपनी जटा पर्वत पर दे मारी । जिससे शक्तिशाली वीरभद्र की उत्पत्ति हुई । जटा के दूसरे भाग से महाकाली उत्पन्न हुई । भगवान भोले का आदेश पाकर दोनों ने दक्ष के यज्ञ स्थल पर विध्वंस करना आरंभ कर दिया। वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट डाला।
बाद में विष्णु जी एवं अन्य देवताओं के आग्रह पर महादेव ने दक्ष को पुनर्जीवित किया, परंतु उसके धड़ पर बकरे का सिर लगा दिया ।
शंकर भगवान की कृपा से दक्ष प्रजापति ने विधिपूर्वक उस यज्ञ के कार्य को संपन्न किया। दक्षेश्वरमहादेव मंदिर वही क्षेत्र है जहाँ भगवन शंकर ने अपनी कृपा राजा दक्ष पर की थी. समीप ही गंगा नदी का प्रवाह मंदिर की पवित्रता में चार छान लगा देता है. यह वही दक्ष यज्ञ का स्थल है, जो आज दक्ष मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।
वर्ष भर श्रद्धालुओं से आच्छादित रहनेवाला दक्ष मंदिर श्रावण माह में कांवड़ियों का विशेष प्रिय स्थल है. यहाँ भगवान् शिव को जलाभिषेक करने से विध्वंसक प्रवर्तियों से छुटकारा मिलता है। शिवरात्रि के पावन पर्व पर पंचाक्षर मंत्र के द्वारा विधि सहित पूजन कर श्रद्धालु मुक्ति की कामना करते हैं
दक्ष मंदिर के समीप ही कनखल में सती कुंड कनखल नामक स्थान पर एक बहुत बड़ा यज्ञ स्थल भी है, जो आज भी पौराणिक यज्ञ स्थल का चिन्ह माना जाता है।
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