उत्तरकाशी:
(चिरंजीव सेमवाल)
मानव जीवन के मूल में भक्ति का होना आवश्यक है ,कई पीड़ियों तक सुख रूपी ईमारत सुस्थिर रहे मैं और मेरा कर्तव्य क्या है ,इसके बोध को ज्ञान कहते है , संासारिक आकर्षण व तेरे मेरे झगड़े से दूर रहकर जीवन बिताना भक्ति है ,वेदव्यास जी ने मानव जीवन के मूल में भक्ति रखी जिसका संबन्ध वर्तमान से है ,हर वर्तमान को सुधारने पर व्यक्ति का भविष्य सुधरता है, सनातन धर्म में श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण करने मात्र से जन्म जन्मान्तर के पाप समाप्त हो जाते है । यह बात प्रखण्ड मंे सबसे बड़ी ग्राम सभा पौन्टी में आयोजित सात दिवसीय दिव्य एंव भव्य श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में बाल व्यास देवी स्वाती ने पंचम दिन कही । उन्होने कहा कि श्रीमद्भागवत कालजयी दपर्ण यह लोक परलोक सौन्दर्य को सुधारने वाला व मनुष्य को अपनी पहचान कराने वाला गं्रथ जिसके प्रतिपाद्य देवता वेणुधर हैं , व्यक्ति का स्वर मधुर हो तो पूर्णता जीवन में आती है । भागवत में 18000 श्लोक आठ और एक नौ पूर्णांक है का मतलब पूर्ण ब्रहम से मेल कराने वाला ग्रन्थ है । देवी स्वाती ने कृष्ण भगवान की बाल लीला का वर्णन करते हुए बताया कि बिना भाव के भक्ति सम्भव नही । भाव होने से भगवान खुद भक्त को समर्पित हो जाते है, जीलव को भगवान के साथ किसी किसी रिश्ते से जुड़ना पड़ता है , चाहे भगवान को वह अपना पिता स्वीकार करें मित्र या फिर प्रियतम् । प्रसंगों में देवीजी ने कंश मामा द्ववारा भेजी गयी पूतना ,सकटाशुर, वकाशुर आदि राक्षसों के वध की कथा सुनाई और यमला अर्जुन नाम के दो शापित वृक्षों को भगवान की बाल लीला द्वारा मुक्त कराने की कथा का ज्ञान दिया । कथा में भगवान की लीला में माखन चोरी का प्रसंग बताया की कैसे भगवान ने माखन के साथ गोपियों का मन चुराया और गोपियांे के चीर हरण कर के उन्हे पवित्र जल स्रोत में न स्नान करने की शिक्षा दी ।व्यास पीठ से बाल व्यास देवी ने भगवान की 7 वर्ष की उम्र में की गयी गोवर्धन लीला का श्रवण कराया की कैसे भगवान ने इन्द्रदेव का घमण्ड चूर किया और इष्ट श्रद्वा का पाठ पौन्टी के ग्रामीणों को पढ़ाया , भगवान ने गिरीराज पवर्त उठाकर इन्द्र द्वारा की गयी मूशलाधार बारीश से ग्रामीण भी धन्य हो उठे । कथा के मध्य में गाये गये भजनों पर भक्तों ने झुम झुम कर नृत्य किया और मनोहर झांकियों के द्वारा कथा का दर्शन पान कराया गया । इस मौके पर आचार्य महिमानन्द तिवारी , विनोद , कैलाश थपलियाल, ममलेश डिमरी, गिरीश डिमरी, आनन्द मणी , बुद्वीराम बहुगुणा, यज्ञ समिति अध्यक्ष गुलाब सिंह रावत, जगवीर भण्डारी , राघवानन्द बहुगुणा, मनीवर भण्डारी, तेजेन्द्र सिंह , नत्थी सिंह , विनोद बहुगुणा, हरदेव सिंह राणा, कुलानन्द बहुगुणा, मन्दिर समिति अध्यक्ष यशवन्त सिंह रावत , पूरण सिंह भण्डारी, लखपत सिंह , राम प्रसाद , रामेश्वर प्रसाद बहुगुणा, प्रमोद प्रसाद , भगत सिंह राणा, सहित सैकड़ों श्रद्वालु कथा सुनने पहुचंे हुए थे।
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