सौरमंडल
सौरमंडल के सभी नौ ग्रहों का हमारे जीवन पर प्रभाव देखा जा सकता है। जन्म के समय मौजूद ग्रहों की स्थिति और नक्षत्रों के आधार पर हमारी कुंडली का निर्माण होता है और फिर यही ग्रह अपने-अपने स्वभाव अनुरूप हमारे जीवन को चलाते हैं।
शरीर के विभिन्न अंग
ज्योतिषीय भाषा में यह कहा जाता है कि इन ग्रहों का प्रतिनिधित्व हमारे जीवन के साथ-साथ हमारे शरीर के विभिन्न अंगों पर भी होता है।
ग्रह
आज हम आपको बताएंगे कि कौन सा ग्रह आपके शरीर के किस अंग का प्रतिनिधित्व कर अपना प्रभाव दर्शाता है---
सूर्य ग्रह
शुरुआत करते हैं शरीर के सबसे ऊपरी भाग मस्तिष्क से। भारत के पौराणिक ऋषियों ने भी मस्तक के बीचो बीच भगवान सूर्य का स्थान माना है। ज्योतिष विद्या के अनुसार भी मस्तिष्क पर सूर्य देव का अधिकार होता है। चिंतन और मनन, इन सभी का आधार सूर्य ग्रह को माना गया है।
चंद्रमा
सूर्य ग्रह से एक अंगुली नीचे चंद्रमा का स्थान माना गया है। चंद्रमा का नाता भावुकता और चंचलता से है, साथ ही मनुष्य की कल्पना शक्ति भी चंद्रमा के द्वारा ही संचालित होती है।
कल्पना और चिंतन
विज्ञान के साथ-साथ ज्योतिष भी यही कहता है कि चंद्रमा को अपनी रोशनी के लिए सूर्य पर ही निर्भर रहना पड़ता है, इसलिए चंद्रमा हमेशा सूर्य के साये में ही रहता है। जब सूर्य का तेज रोशनी बनकर चंद्रमा पर पड़ता है तभी व्यक्ति के विचार, उसकी कल्पना और चिंतन में सुधार आता है।
मंगल ग्रह
गरुड़ पुराण के अनुसार नेत्रों में मंगल ग्रह का निवास माना गया है। मंगल ग्रह शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है और यह रक्त का संचालक माना गया है।
हमारा शरीर कितना मजबूत और कितना कमजोर है इसका अंदाजा नेत्रों से ही लगता है। इसलिए नेत्रों को ही मंगल ग्रह का स्थान माना गया है।
बुध ग्रह
बुध ग्रह को हृदय में स्थापित ग्रह माना गया है। बुध बौद्धिकता और वाणी का कारक ग्रह माना गया है। जब भी किसी व्यक्ति का व्यवहार, स्वभाव और वाचन शक्ति का पता लगाना हो तो अरबी ज्योतिष विद्या, रमल के अंतर्गत बुध ग्रह की स्थिति को ही देखा जाता है।
शुक्र ग्रह
कामवासना और इच्छाशक्ति, इसका प्रतिनिधित्व शुक्र ग्रह द्वारा ही किया जाता है। पुरुषों की कुंडली में शुक्र ग्रह को वीर्य का कारक भी माना गया है। इस वजह से यह कहा जाता है कि मानव सृष्टि का विकास शुक्र द्वारा ही संभव है।
शनि
शनि का स्थान नाभि में माना गया है। रमल शास्त्र के अनुसार किसी व्यक्ति के चिंतन की गहराई का आंकलन करने के लिए उसकी कुंडली में शनि की मजबूती देखी जाती है।
रमल शास्त्र
रमल शास्त्र के अनुसार अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि और बृहस्पति, एक ही भाव में मौजूद हों तो ऐसा व्यक्ति वेदों, पुराणों और शास्त्रों का ज्ञाता होता है।
राहु
राहु का स्थान मानव मुख में माना गया है। राहु जिस भाव में बैठा होता है उसी के अनुसार फल देता है। इसके साथ अगर मंगल का तेज मिल जाए तो ऐसा व्यक्ति क्रोधी तो होता है साथ ही उसकी वाणी में वीरता होती है।
राहु के साथ बुध
राहु के साथ अगर बुध की शक्ति मौजूद हो तो संबंधित जातक मधुर वाणी बोलता है, वहीं बृहस्पति की शक्ति हो तो वह अत्यंत ज्ञानवर्धक और शास्त्रों से जुड़ी बातें बोलेगा। अगर राहु के साथ शुक्र की शक्ति मिल जाए तो व्यक्ति बहुत रोमांटिक बातें करता है।
केतु
केतु का स्थान कंठ से लेकर हृदय तक होता है। केतु ग्रह का संबंध गुप्त और रहस्यमयी कार्यों से भी होता है।
रक्त प्रवाह
यूं तो ये सभी ग्रह अलग-अलग स्थान पर निवास करते हैं लेकिन रक्त के प्रवाह के कारण, एक-दूसरे पर इनका प्रभाव देखा जा सकता है। इनकी स्थिति और निवास जानने के बाद निश्चित तौर पर जातक शारीरिक अंगों के रूप में अपने ग्रहों को समझ पाएंगे
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