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 डोईवाला/देहरादून से

रिपोर्ट और विश्लेषण द्वारा अंजना गुप्ता

आज भारत में पहली बार बायोफ्यूल से विमान उड़ाने का परीक्षण जॉली ग्रांट हवाई अड्डा देहरादून में किया गया है ।

मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने सोमवार को जौलीग्रांट एयरपोर्ट पर जैव ईंधन से उड़ान भरने वाले देश के पहले विमान Spice Jetको फ्लैग ऑफ किया। फ्लैग ऑफ के बाद विमान ने दिल्ली के लिए उड़ान भरी। यह बायोफ्यूल जैट्रोफा के तेल एवं हाइड्रोजन के मिश्रण से बनाया गया है। इसके लिए आईआईपी में प्लांट लगाया गया है। संस्थान में बायोजेट फ्यूल तैयार किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ सेबायोफ्यूल डेवलपमेंट अथॉरिटी के जरिये जैट्रोफा का बीज खरीदा गया है। इससे पूर्व जैव ईंधन से चलने वाले इस Spice Jet का परीक्षण भी किया था। बताया गया कि अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में कमर्शियल विमान पहले से ही जैव ईंधन से उड़ान भर चुके हैं।
जैव ईंधन से उड़ान भरने वाले स्पाइस जेट के फ्लैग ऑफ के अवसर पर महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती रेखा आर्या, आईआईपी के निदेशक श्री अंजन कुमार रे, Spice Jet से श्री जी.पी. गुप्ता, कैप्टन सतीश चन्द्र पाण्डे एवं आईआईपी के वैज्ञानिक उपस्थित थे।

जैव ईंधन के रूप में जेट्रोफा से बनाए गए तेल का इस्तेमाल प्रदूषण रहित ईंधन के रूप में प्रथम बार विमान में किया गया है यह अपने आप में एक इतिहासिक और वैज्ञानिक अनुभव है जो उत्तराखंड की भूमि पर आज प्रारंभ हुआ है 

आइए जटरोफा के बारे में जानते हैं ---***

जेट्रोफा यानी रतनजोत यह पौधा(known as curcas) अफ्रीका उत्तरी अमेरिका और कैरेबियन जैसे क्षेत्रों में उत्पन्न होता है साथ ही यह हमारे देश भारत में भी पाया जाता है।

इसे कैस्टर ऑयल के नाम से भी जाना जाता है रतनजोत यानी जेट्रोफा औषधि के रूप में भी बहुत ही गुणकारी पौधा है। इसका अन्य बीजों से सस्ता पाया जाता है ।और इसके बीजों से 40% ज्यादा तेल प्राप्त किया जाता है । लगभग 5 किलो बीजों से 1 किलो बायोडीजल प्राप्त किया जा सकता है। इसका तेल धुआं रहित होता है अतः प्रदूषण की संभावनाएं संभावनाएं नहीं रहती हैं।

 रतनजोत का पौधा उपजाऊऔर खराब दोनों प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है ।बारिश अधिक या कम वाले स्थानों दोनों में जहां दूसरी फसलें नहीं चलती हो रतनज्योत को उगाया जा सकता है ।

यह 2 वर्ष में फल देता है और एक ही बार लगाने पर 40 वर्ष तक फल प्रदान करता है ।इसकी विशेषता है कि यह तेजी से बढ़ता है और जानवर इसे नहीं खाते हैं ।इस पर कभी कीट भी नहीं लगते हैं ।कोई भी पौधा इसका प्रतिस्पर्धी नहीं है ।आयुर्वेद में भी जेट्रोफा के बहुत से उपयोग बताए गए हैं ।इसके फूल और तने से चर्म रोग कैंसर बवासीर पक्षाघात ड्रॉप्सी कब्ज और पेट दर्द के लिए उपयोग किया जाता है ।इसके अलावा सर्पदंश   साबुन ,जैविक कीटनाशक बनाने में इसका प्रयोग किया जाता है ।

इसकी छाल से डाई और मोम बनाया जा सकता है। इस के बीज से तेल निकलने के बाद बची हुई खोई को जैविक खाद के रूप में प्रयोग किया जा सकता है ।

जेट्रोफा के बीज से निकले तेल को सीधा लालटेन में डालकर भी जलाया जा सकता है या ईंधन के रूप में प्रयोग किया जा सकता है ।यह जलीय संरक्षण के काम में भी आता है ।इसकी पत्तियां घाव भरने का काम करते हैं ।अम्लीय भूमि को उपजाऊ बनाने में इसका अत्यंत महत्व है ।किसान अपने खेतों की चारदीवारी बनाने में इसका प्रयोग कर सकते हैं ।अभी तक ज्यादातर जेट्रोफा के संयंत्र दक्षिणी राज्य में पाए जाते हैं ।

उत्तराखंड के परिवेश में देखें तो यहां भी जैट्रोफा बहुतायत में मिलता है । जैव ईंधन के रूप में प्रयोग करना ,उत्तराखंड राज्य के लिए एक आशा की किरण के समान है। इसके प्रयोग से अवश्य ही राज्य के किसानों और युवाओं को रोजगार मिल सकता है।



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