ऋषिकेश;
उत्तम सिंह
बजरंग मुनि सामाजिक शोध संस्थान का ज्ञान यज्ञ कार्यक्रम ऋषिकेश :रविवार को बजरंग मुनि सामाजिक शोध संस्थान ऋषिकेश के देहरादून रोड स्थित प्रबन्ध कार्यालय में ज्ञान यज्ञ मंथन कार्यक्रम के तहत सयुक्त परिवार विषय पर प्रसिद्ध मौलिक विचारक बजरंग मुनि ने अपने विचार प्रकट किए।
ज्ञान यज्ञ कार्यक्रम का शुभारम्भ हवन यज्ञ कुंड में विश्व शांति हेतु आहुति डालकर किया गया।विचारक बजरंग मुनि ने बताया कि समाज में व्यक्ति एक प्राकृतिक इकाई है और व्यक्ति समूह संगठनात्मक। परिवार एक से अधिक व्यक्तियों को मिलाकर बनता है।
इसलिए परिवार को संगठनात्मक अथवा संस्थागत इकाई माना जा सकता है,प्राकृतिक नहीं। प्रत्येक व्यक्ति को एक प्राकृतिक अधिकार प्राप्त होता है,और वह है उसकी स्वतंत्रता।
प्रत्येक व्यक्ति का एक सामाजिक दायित्व होता है और वह होता है उसका सहजीवन। प्रत्येक व्यक्ति की स्वतंत्रता असीम होती है, उस सीमा तक जब तक किसी अन्य व्यक्ति की सीमा प्रारंभ न हो जाये। प्रत्येक व्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा राज्य का दायित्व होता है तथा व्यक्ति को सहजीवन की ट्रेनिंग देना समाज का दायित्व होता है। परिवार व्यवस्था समाज व्यवस्था की एक पहली इकाई होती है, जो अपनी सीमा में स्वतंत्र होते हुए भी उपर की इकाईयों की पूरक होती है।
उपरोक्त धारणाओं के आधार पर हम कह सकते है कि परिवार व्यवस्था सहजीवन की पहली पाठशाला है और प्रत्येक व्यक्ति को परिवार व्यवस्था के साथ अवश्य ही जुडना चाहिए। किन्तु पिछले कुछ सौ वर्षो से हम देख रहे है कि परिवार व्यवस्था टूट रही है। किसी भी व्यवस्था में यदि रुढिवाद आता है तो उसके दुष्परिणाम भी स्वाभाविक है ।
भारत की परिवार व्यवस्था कई हजार वर्षो से अनेक समस्याओं के बाद भी सफलतापूर्वक चल रही है। यहाॅ तक कि लम्बी गुलामी के बाद भी चलती रही। इसके लिए वह बधाई की पात्र है। किन्तु स्वतंत्रता के बाद परिवार व्यवस्था में विकृतियों का लाभ उठाने के लिए अनेक समूह सक्रिय रहे। इन समूहों में धर्मगुरु, राजनेता, पश्चिमी संस्कृति तथा वामपंथी विचार धारा विशेष रुप से सक्रिय रहे। परम्परागत परिवारों के बुजुर्ग भी किसी तरह के सुधार के विरुद्ध रहे। परिणाम हुआ कि परिवारो में आंतरिक घुटन बढती रही और परिवार व्यवस्था को छिन्न भिन्न करने वालो को इसका लाभ मिला।
हम लोगो ने परिवार का एक सार्वजनिक और कानूनी स्वरुप इस प्रकार बनाया -हमारे देश के संविधान निर्माताओं ने कुछ ऐसी विचित्र कल्पना की कि उन्होने परिवार व्यवस्था में तो लोकतंत्र को शून्य हो जाने दिया और राज्य व्यवस्था में लोकतंत्र की बात करते रहे। परिणाम हुआ कि परिवार व्यवस्था लोकतंत्र के अभाव में टूटती रही और राज्य व्यवस्था निरंतर तानाशाही की तरफ अर्थात पारिवारिक केन्द्रीयकरण की तरफ बढती गई। मेरा सुझाव है कि देश के लोगों को संशोधित परिवार व्यवस्था पर विचार करना चाहिए और अपने-अपने परिवारों में लागू करना चाहिए। इस मौके पर ज्ञान यज्ञ कार्यक्रम का संचालन करते शोध संस्थान से जुड़े डॉ राजे नेगी ने बताया कि संस्थान में प्रत्येक रविवार ज्ञान यज्ञ कार्यक्रम के तहत पूर्व निर्धारित विषय के आधार पर प्रश्नोत्तर एवं चर्चा की जाएगी।इस अवसर पर शोध संस्थान के निदेशक आचार्य पंकज,टीकाराम देवरानी,अंकित नैथानी,उत्तम असवाल,पूर्व राज्यमंत्री उषा रावत,विनोद जुगरान, डीपी रतूड़ी,नरेश वर्मा,रमेश लिंगवाल,राज पाल राणा,गोविंद बल्लभ,अजय आर्य,हरिचरण सिंह,एस एस रोथान,अरविंद तिवारी मौजूद रहे ।
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