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लखनऊ;
उत्तराखंड की धरती पर जन्मे  उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री प्रदेश की चीनी मिलो को बचाने के लिए जहां  प्रयत्नशील है वहीं उत्तराखंड  के मुखिया उनसे मुंह फेरे बैठे है   इसका उदाहरण आपको देखने को मिल सकता है।

कल ही   मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा सहकारी चीनी मिलों को आर्थिक रूप से सुदृढ करने हेतु उप उत्पादों पर भी बल दिये जाने के निर्देषों के क्रम में गन्ना मंत्री सुरेश राणा ने सहकारी चीनी मिलों की डिस्टलरियों में कम्पोस्ट पर आधारित ''जीरो लिक्विड डिस्चार्ज'' संयत्र स्थापना किये जाने हेतु निर्देश पारित किये।
जिससे प्रदूषण नियंत्रण के साथ-साथ उच्च गुणवत्ता पूर्ण कार्बनिक खाद का उत्पादन भी होगा तथा जिसके प्रयोग से मृदा स्वास्थ्य में सुधार होगा और मृदा के जैविक कार्बन में वृद्धि होगी। इस प्रकार एक ओर जहां किसानों को उच्च गुणवत्तापूर्ण खाद सस्ते दरों  पर प्राप्त होगी वहीं भूमिगत जल का भी संरक्षण होगा। प्रदेश के प्रमुख सचिव, चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास संजय आर. भूसरेड्डी ने बताया कि सहकारी क्षेत्र की चीनी मिल स्नेहरोड (बिजनौर) में ४० के.एल.पी.डी. और सठियांव (आजमगढ) में ३० के.एल.पी.डी. क्षमता की दो नई डिस्टिलरियों की स्थापना प्रदेश सरकार द्वारा कराई जा चुकी है।
इसके अतिरिक्त प्रदेश की सहकारी चीनी मिलों की छह डिस्टिलरियों में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के दिशा-निर्देशों के क्रम में जीरो लिक्विड डिस्चार्ज संयत्र की स्थापना करायी जा सके जिससे इनमें भी एथेनाल उत्पादन प्रारम्भ हो सके।
डिस्टिलरियों के संचालित होने से प्रदेश में एथेनाल उत्पादन में वृद्धि होगी जिससे एक ओर चीनी मिलों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी और उनके पास पर्याप्त धन उपलब्ध होने पर वे किसानों के गन्ना मूल्य का भुगतान सुगमता से कर सकेगी वही दूसरी ओर अतिरिक्त रोजगार का सृजन भी होगा।
श्री भूसरेड्डी ने यह भी बताया कि चीनी मिलों को उर्जा संकुल में बदलने से चीनी मिलें अतिरिक्त रोजगार के सृजन के साथ-साथ प्रदेश को स्वच्छ उर्जा भी उपलब्ध करायेंगी।

इन सबके उलट उत्तराखंड में 02 सहकारी चीनी मिल बन्द की जा चुकी है और को बंद करने की पूरी तैयारी की जा रही है। मुख्यमंत्री के स्वयं के विधानसभा क्षेत्र  डोईवाला चीनी मिल को भी घाटे में दिखाते हुए बन्द करने पर उतारू है।
उसके लिए सरकार ने एथेनॉल प्लांट लगाने की बात की थी परंतु  प्लांट लगाने तो दूर उन्होंने तो पुराना वेतन लागू करने , भत्ते काटने  को ही ऐसा उपाय मां लिया जिससे मिल का घाटा पूरा हो।
यहां तक कि पीछे सत्र 2017 के रिटेनिंग भत्ते  भी उन्होंने जारी नही किये है, ऐसा मिल प्रबंधन का कहना है।
किसानों को गन्ने जा रकबा बढ़ाने के लिए प्रेरित करना तो दूर मिलों को बंद करने की बातें कर सरकार क्या संदेश देना चाह रही है, किसी को समझ नही आ रहा है।

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