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इस धरती पर बड़े बड़े शूरवीर आये, जिन्होंने मृत्यु तक को वश में करके रखा, ऐसे धुरंधर भी आये, महाबली आये, अतुलित बलशाली आये, श्रीराम, श्रीकृष्ण आये, पर गए,
उसी तरह उत्तराखंड राज्य में बड़े बड़े लोकप्रिय मुख्यमंत्री आये, ऐसे भी मुख्यमंत्री आये, जो गाहे-बगाहे फोन करके प्रधानमंत्री तक को निर्देशित करते थे, ऐसा विराट व्यक्तित्व वाले आये, संघ के धुरंधर आये,
अब आगे बात करते है --
एक समय की बात है एक नवगठित राज्य में शासक हुआ, बहुत ही लोकप्रिय, उसके दरबार मे जो जाए, खाली हाथ न आये, दूसरे राज्यो से भी दान मांगने याचक आते थे, बहुत बड़े बड़े विकास कार्य हुआ,
फिर हुआ चुनाव, और वो शासक दोबारा उस राज्य का शासक नही  बन सका,
फिर एक दूसरे शासक आये, कड़क छवि, लोकप्रिय, कठोर अनुशासन, उनके समय भी राज्य आगे बढ़ा, तभी केंद्र के चुनाव आये, और उस शासक के पांचों उम्मीदवार हार गए,
फिर उस शासक का विरोध हुआ, और उस शासक को गद्दी से हटा दिया गया,
फिर दूसरे शासक आये, प्रजा का दिल जीतने वाले, लोकप्रिय, जनता से घुलने मिलने वाले, उन्होंने राज्य में हर जगह अच्छी उपस्थिति दर्ज कराई, तभी बीच मे ही इनको भी गद्दी से हटा दिया गया,
फिर उनको गद्दी दे दी गई जो इनसे पहले थे, ईन्होंने जनता के कामकाज के लिये पूरे प्रयास किये, जनहित कार्यो के लिये ततपर रहे, इनकी लोकप्रियता बढ़ती गई, चुनाव हुए, और यह खुद भी हारे, और इनकी पार्टी भी,
फिर दूसरी पार्टी सत्ता में आई, अच्छा शासन चलाया, सब मंत्रियों को, सरकारी तंत्र को भरोसे में लिया, और जनता के खूब कार्य किये, परंतु उनको भी कुछ कुछ वर्ष बाद गद्दी से हटा दिया, इस बार कारण बनी कुदरत, कुदरत ने प्रलय मचाई, और ये शासक अच्छे इंतजामात नही कर पाए, और विरोध हुआ, जिससे गद्दी से हटा दिए गए,
इसके बाद गद्दी उस शासक के हाथों में दी गई, जो ग्रास रुट का नेता माना जाता था, जो जनता के दिल मे बसता था, गद्दी हाथ मे आते ही उन्होंने वो हर कार्य कराए, जिससे आम जन को लाभ मिले, प्रजा सुखी हो, इन्होंने 24 घण्टे जनता के लिये अपनी उपलब्धता बना कर रखी, बहुत जनहित के कार्य कराए,
फिर चुनाब हुए, ये 2 स्थानों से खुद तो हारे ही इनकी पार्टी भी बुरी तरह हार गई,
इसके बाद इस राज्य की गद्दी जिनको सौपी गई, 15 माह हो गये है, उनके बारे में क्या रहा,,,, अभी समय के गर्भ में है परंतु वर्तमान शासक के नवरत्न कह रहे है कि हमारे शासक भी बहुत लोकप्रिय है, जनता के बीच लोकप्रिय है, राज्य नौकरशाही के हवाले करने को शायद यह लोकप्रियता मान रहे है,
इस पर जनता से प्रतिकिया आई : आप उपरोक्त शासको में से किस शासक के समकक्ष लोकप्रिय है?
तो यह आम सवाल गूंज उठा कि राज्य स्थापना के बाद आसीन होने वाले लोकप्रिय शासको में से आप किस शासक के समान लोकप्रिय है?
और जब इतने लोकप्रिय शासक जनहित के इतने कार्य करने के बाद पूरे कार्यकाल तक पूरा नही कर पाए, सिवाय एक के, तो आप कब तक ?  इसलिये जैसा कि कुदरत का नियम है , जीवन क्षण भंगुर है, उसी तरह इस राज्य में भी शासक का पद मुट्ठी में भरी रेत के समान है, कब फिसल जाए?
तैनात शासक से यही विनती की जा सकती है कि आपके राज्य में क्या आप अपने स्वयं के कार्यो से संतुष्ट है?  आम जन तो नही, आम मीडिया जन तो नही? साधु संत तो नही---
"जो शासक खुद न बदला, वो बदल दिया गया" ; यह है कुदरत का निजाम
साभार हिमालय यूके

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