उत्तम सिंह
।इस मौके पर जहां बच्चो ने अपने पिता को उपहार भेंट किए तो कोई पिता के साथ फिल्म देखने गए तो कुछ बच्चे घूमने निकल गए।कुछ युवाओं ने तो आज अपने पिता के सम्मान के लिए खास भोज (लंच एवं डिनर) का भी प्रबन्धन किया है।सोशल मीडिया के जरिए भी आज घर से दूर रहने वाले स्टूडेंट्स,नौकरीपेशा वाले व्यक्तियों द्वारा अपने पिता को मेसेज एवं ग्रीटिंग कार्ड के माध्यम से शुभकामनाएं भेजी गई।तो वहीं ज्यादातर लोगो ने सोशल साइड पर अपने पिता के साथ अपनी फोटो अपलोड एवं शेयर कर फादर्स दे सेलिब्रेट किया। शहरों के साथ साथ अब ग्रामीण क्षेत्रो में भी फादर्स डे की बड़ी धूम धाम रही।ऋषिकेश के समाज सेवी डॉ राजे नेगी ने बताया कि पितृ दिवस का यह दिन पिता के सम्मान में मनाया जाने वाला एक पर्व है और माता के सम्मान हेतु मनाये जाने वाले मदर्स डे(मातृ-दिवस) का पूरक भी। जिसमें पितृत्व (फादरहुड), पितृत्व-बंधन तथा समाज में पिताओं के प्रभाव को समारोह पूर्वक मनाया जाता है। यह जून के तीसरे रविवार को मनाया जाता है। यह माता के सम्मान हेतु मनाये जाने वाले मदर्स डे(मातृ-दिवस) का पूरक है। डॉ नेगी ने कहा कि पितृ दिवस की शुरुवात बीसवीं सदी के प्रारंभ में पिताधर्म तथा पुरुषों द्वारा परवरिश का सम्मान करने के लिये मातृ-दिवस के पूरक उत्सव के रूप में हुई थी। यह हमारे पूर्वजों की स्मृति और उनके सम्मान में भी मनाया जाता है। आम धारणा के विपरीत, वास्तव में फादर्स डे सबसे पहले पश्चिम वर्जीनिया के फेयरमोंट में 5 जुलाई 1908 को मनाया गया था। कई महीने पहले 6 दिसम्बर 1907 को मोनोंगाह, पश्चिम वर्जीनिया में एक खान दुर्घटना में मारे गए 210 पिताओं के सम्मान में इस विशेष दिवस का आयोजन श्रीमती ग्रेस गोल्डन क्लेटन ने किया था। डॉ नेगी के अनुसार दुनिया में सबसे बड़ा स्थान मां काे दिया जाता है, लेकिन एक बच्चे को बड़ा और सभ्य बनाने में उसके पिता का योगदान कम करके नहीं आंका जा सकता. बच्चे को जब कोई खरोंच लग जाती है तो जितना दर्द एक मां महसूस करती है, वही दर्द एक पिता भी महसूस करते हैं. यह अलग बात है कि बेटे को चोट लगने पर मां पुचकार देती है, चोट लगी जगह पर फूंक की ठंडक देती है, वहीं पिता अपने बेटे की चोट पर व्यथित तो होता है लेकिन उसे बेटे के सामने मजबूत बने रहना है. ताकि बेटा उसे देख कर सीखे, 'टफ' बनकर जिंदगी की तकलीफों का सामना करने में सक्षम हो।
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