Halloween party ideas 2015

पिथौरागढ़ जिले के विकास खण्ड विण के ग्राम जजुराली में प्रगतिशील काश्तकार के रूप में कार्य करने वाली श्रीमती रेखा भण्डारी विगत एक दशक से अन्य पारम्परिक फसलों के साथ ही बड़ी इलाईची की खेती कर रही हैं।
                श्रीमती रेखा भण्डारी जानकारी देती हैं कि प्रारम्भ में अपने उपयोग हेतु कुछ की पौधों से घर के आस-पास वाले जमीन पर ही बड़ी इलाईची की खेती करती थी। परन्तु बड़ी इकाईची के नगदी फसल की महत्ता को देखते हुए उनके द्वारा फसल उत्पादन को बड़े मात्रा में उत्पादित करने के लिए भूमि वृद्धि कर 2 नाली में फसल उत्पादन करने का निर्णय लिया।
इसी बीच इनके द्वारा सन 2009 में गैर सरकारी संस्थानों की तरफ से पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग (कालिंगपिंग) में बड़ी इलाईची विषय पर 5 दिवसीय प्रशिक्षण प्राप्त किया। श्रीमती रेखा भण्डारी बताती हैं कि प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद मुझे इस फसल उत्पादन करने के वैज्ञानिक तरीके, तकनीकी जानकारी मिली व उनके द्वारा बताया गया कि इसकी खेती के लिए नमीयुक्त दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है। तथा इस मिट्टी में प्रचुर मात्रा में नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटास का पाया जाना जरूरी है। प्राथमिक नर्सरी के लिए 6 मीटर लम्बा 1 मीटर चैड़ा व 0ण्15 मीटर ऊचाई की होनी चाहिए। बोआई के पश्चात नमी बनाये रखने के लिए ऊपर से सूखी घास व पत्तियों की मलचिंग देना आवश्यक है। अंकुरण मार्च से प्रारम्भ हो जाता है तथा अप्रैल मई तक होता रहता है। प्रतिदिन 2 बार हल्की सिचाई करनी चाहिए जिससे कि भूमि में नमी बनी रहे। बीज अंकुरण के पश्चात 4 से 6 पत्तियों की पौध तैयार होने पर जुलाई में द्वितीएक नर्सरी में रोपण किया जाता है।द्वितीय नर्सरी 90 सेमी. चैड़ी 15 सेमी. ऊची हो सकती है। नर्सरी में गोबर की खाद मिलाकर क्यारी तैयार कर लेनी चाहिए। पौधों का रोपण जुलाई व अगस्त माह में कर लेना चाहिए। पौधों की ऊचाई 45 से 60 सेमी. होने पर तथा 2 या 3 शाखायें निकल जाने पर उन्हें अगले वर्ष जुलाई में मुख्य खेत में रोपित करना चाहिए। मुख्य खेत में 30 सेमी. लम्बाई, चैड़ाई व गहराई का गढ्ढा बनाकर पौधो को लगाना चाहिये।एक नाली भूमि में लगभग 80 पौधे रोपित किये जाने चाहिए। वृक्षों की छाया बड़ी इलाईची फसल उत्पादन के लिए उपयुक्त रहती है। इसके अलावा अखरोट, सन्तरा, बाॅंझ के नीचे भी इसकी खेती की जा सकती है।
 श्रीमती भण्डारी बताती है कि पोषक तत्व प्रबन्धन हेतु भूमि में कम्पोस्ट खाद या गोबर की खाद मिला लेनी चाहिए। मुख्य क्षेत्र में साल में कम से कम दो बार कम्पोस्ट या गोबर की खाद डाल लेनी चाहिए। समय-समय पर गुडाई व खरपतवार निकालना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त बिमारियों की रोकथाम के लिए रसायनों के प्रयोग से बचना चाहिए क्योंकि इससे उपज की गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ता है। आवश्यक होने पर नीम का काड़ा या गोमूत्र का छिड़काव करना चाहिए।
फसल कटाई हेतु तृतीय वर्ष से फल आने पर फलयुक्त शाखा को जमीन से 45 सेमी. ऊपर से काटना चाहिए तथा फलों को अलग से निकालकर छाया में सुखा लेना चाहिए। 1 नाली भूमि में लगभग 25 से 30 किग्रा. का उत्पादन हो जाता है।
               श्रीमती भण्डारी बताती है कि इन सभी तकनीकी ज्ञान को जानकर उनके द्वारा  बड़ी इलाईची खेती का कार्य करना प्रारम्भ किया और उन्हें इससे बहुत सकारात्मक परिणाम मिले। विपणन हेतु स्थानीय बाजार पिथौरागढ़ बाजार में सम्पर्क किया तथा प्रति किलो. औसत मूल्य रू. 1300.00 की दर से प्राप्त किये। इसी सफलता को देखते हुए गाॅंव के अन्य लोगों ने भी बड़ी इलाईची फसल का उत्पादन करने लगे हैं। जिसके माध्यम से आज गाॅंव में लगभग 50 प्रतिशत परिवारों ने बड़ी इलाईची की खेती शुरू कर दी है।
एक फसल चक्र में 2 नाली भूमि में 55 किग्रा.  तक बड़ी इलाईची का उत्पाइन कर लिया जाता है। जिससे लगभग रू. 60 हजार  का शुद्ध लाभ मिल जाता है। श्रीमती रेखा भण्डारी बताती हैं कि इस फसल में बहुत कम निवेश की आवश्यकता होती है। तथा कुछ जैविक खादों के उपयोग में ही निवेश होता है। तथा दुसरा फायदा यह है कि अधिकतर जंगली जानवर व बन्दर भी इस फसल को नुकसान नहीं पहॅुचाते हैं।
वर्श 2014.15 में एकीकृत आजीविका सहयोग परियोजना द्वारा जजुराली गाॅव में समूह गठित कर क्षेत्र में गुरंग घाटी सहकारिता का भी गठन किया गया। जिसके माध्यम से आज जजुराली गाॅंव के साथ ही क्षेत्र के अन्य गाॅंवों में भी बड़ी इलाईची फसल को ऊगाया जा रहा है। जिसका विपणन हम परियोजना द्वारा गठित सहकारिता के माध्यम से कर रहे हैं। वित्तीय वर्ष 2016.17 में सहकारिता के माध्यम से 1 कुन्टल बड़ी इलाईची का विपणन रू. 1500ध्. किग्रा. की दर पर विक्रय किया गया।
                   इसके अतिरिक्त एकीकृत आजीविका सहयोग परियोजना के अन्तर्गत श्रीमती रेखा भण्डारी द्वारा ग्राम कानड़ी, बलतड़ी के 40 समूह सदस्यों को भी प्रशिक्षण दिया व कृषि विज्ञान केन्द्र, गैना के लिए 4500 पौध बड़ी इलाईची नर्सरी पौध का भी विक्रय किया।
श्रीमती रेखा भण्डारी के बेहतरीन किसान कार्यो को देखते हुए उन्हें जिला प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर कई पुस्कार मिल चुके हैं। इस क्रम में जनवरी 2013 में जनपद स्तर पर किसान भूषण, 9 सितम्बर 2013 को गुजरात राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के हाथों से श्रेष्ठ किसान पुस्कार के अतिरिक्त 2016 में मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड के द्वारा विशिष्ट किसान पुरूस्कार से नवाजा जा चुका है।
                 भविष्य हेतु बड़ी इलाईची फसल योजना के बारे में श्रीमती रेखा भण्डारी बताती हैं कि समूह के माध्यम से गाॅंव में खाली पड़ी जमीन पर उचित सिचाई आदि की व्यवस्था कर बड़ी इलाईची फसलों को विस्तारित करना चाहती हैं। 

एक टिप्पणी भेजें

www.satyawani.com @ All rights reserved

www.satyawani.com @All rights reserved
Blogger द्वारा संचालित.