देहरादून:
जिम्मेदार कौन --
आपदा प्रभावित मलबे से पटे पड़े साहिया क्षेत्र का एक गांव मैसासा दो साल बाद भी मलबा हटने का इंतजार कर रहा है। उत्तराखंड की दो सरकारें इस गांव से मलबा नहीं हटा पाई हैं। पलायन रोकने के लिए बड़े-बड़े दावे करने वाली सरकारें, इस मलबे के कारण मैसासा गांव से हो रहे पलायन पर दो शब्द तक बोलने को तैयार नहीं हैं।
मैसासा गांव में चारों तरफ इस कदर मलबा बिखरा हुआ है कि यह बिना जेसीबी मशीन का उपयोग किए हटाना संभव नहीं है। ऐसा अधिशासी अधिकारी लोक निर्माण विभाग अस्थायी खंड साहिया का कहना है। जिलाधिकारी देहरादून को लिखे पत्र में उन्होंने गांव में दो साल से अटे पड़े मलबे की हालत बयां की है। गांव तक जेसीबी ले जाने के लिए गांव तक सड़क पहुंचाना जरूरी है। लेकिन गांव तक सड़क नहीं है। गांव के लिए 2013 में ही चार किमी सड़क मंजूर की गई थी। जिसका आंगणन भी दिया गया था। लेकिन आगे की कार्यवाही नहीं हुई। मैसासा में 2016 में मलबा आने के बाद दुबारा गांव तक सड़क बनाने की कवायद शुरू हुई। अधिशासी अभियंता के अनुसार मार्ग में पड़ने वाले पेड़ों की कटाई भी हो चुकी है। नया आगणन भी शासन को स्वीकृति के लिए भेज दिया गया है, लेकिन इससे आगे कोई काम नहीं हुआ।
मैसासा गांव में चारों तरफ इस कदर मलबा बिखरा हुआ है कि यह बिना जेसीबी मशीन का उपयोग किए हटाना संभव नहीं है। ऐसा अधिशासी अधिकारी लोक निर्माण विभाग अस्थायी खंड साहिया का कहना है। जिलाधिकारी देहरादून को लिखे पत्र में उन्होंने गांव में दो साल से अटे पड़े मलबे की हालत बयां की है। गांव तक जेसीबी ले जाने के लिए गांव तक सड़क पहुंचाना जरूरी है। लेकिन गांव तक सड़क नहीं है। गांव के लिए 2013 में ही चार किमी सड़क मंजूर की गई थी। जिसका आंगणन भी दिया गया था। लेकिन आगे की कार्यवाही नहीं हुई। मैसासा में 2016 में मलबा आने के बाद दुबारा गांव तक सड़क बनाने की कवायद शुरू हुई। अधिशासी अभियंता के अनुसार मार्ग में पड़ने वाले पेड़ों की कटाई भी हो चुकी है। नया आगणन भी शासन को स्वीकृति के लिए भेज दिया गया है, लेकिन इससे आगे कोई काम नहीं हुआ।
पिछली सरकार को स्थानीय संगठनों ने कई बार आवदेन दिए हैं। वतर्मान सरकार को भी नवक्रांति स्वराज मोर्चा ने जनवरी में गांव के लिए मंजूर हुई सड़क का निर्माण करने का आग्रह किया, लेकिन इस तरफ अभी तक ध्यान नहीं दिया गया है। गांव चारों तरफ से मलबे से अटा पड़ा है। कई गोशालाएं तथा घर भी मलबे में दब गए हैं, लेकिन इस तरफ देखने वाला कोई नहीं है। ग्रामीणों की समस्याएं न सुने जाने पर जब साहिया तहसील में ग्रामीणों ने प्रदर्शन किया तो उन्हें पुलिस के डंडे पड़े।
मैसासा गांव रहने लायक हालात में नहीं है। इसी मलबे की वजह से लोग एक-एक करके गांव से पलायन करने को मजबूर हैं। सवाल यह उठ रहा है कि पलायन रोकने के लिए बड़े-बड़े दावे करने वाली दो-दो सरकारें दो साल से गांव से मलबा नहीं हटा पाई हैं। इसी वजह से अब गांव से पलायन हो रहा है। वर्तमान सरकार की तरह आप पलायन आयोग बनाओ या फिर पिछली सरकार की तरह 2020 तक रिवर्स पलायन होने के दावे कर लो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। पलायन की इस विभिषिका की जमीनी हकीकत मैसासा गांव है, जहां से पलायन के लिए सिर्फ उत्तराखंड की गूंगी-बहरी सरकारें जिम्मेदार हैं।
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