डोईवाला:
स्वामी राम हिमालयन यूनिवर्सिटी (एसआरएचयू) के तहत हिमालयन
हाॅस्पिटल के बाल रोग विभाग में एक महीने की बच्ची जिसका वजन एक किलो चार
सौ ग्राम वजन, का सफल पैरीटोनियल डाइलिसिस किया गया।
हिमालयन
हाॅस्पिटल के बाल रोग विभाग में जौलीग्रांट निवासी पिता रोहित व माता
सुनीता की पुत्री अनीखा को एक सप्ताह पूर्व हिमालयन अस्पताल में लाया गया।
हिमालयन अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डाॅ. अनिल रावत ने बताया कि भर्ती के
समय बच्ची दो दिन से दूध नही पी रही थी, पेशाब भी बहुत कम करने के साथ
जिंदगी की अंतिम सांसे ले रही थी। जिसके तुरंत बाद अनीखा को कार्डिक पलमनरी
रिसैसिटेशन (सीपीआर) दिया गया। बच्ची की शुरूवाती जांच पड़ताल में पाया गया
कि अनीखा डिहाइड्रेशन की समस्या के साथ गुर्दे संबंधित जांचों में दिक्कत
पाई गई। डाॅ. अनिल रावत ने बताया कि गुर्दें संबंधित जांचों में . अनीखा का क्रिटेनियन अधिक पाया गया जबकि सामान्य बच्चे का क्रिटेनियन 1
मिली ग्राम से कम होना चाहिए, जबकि यूरिया की मात्रा 400 मिली ग्राम, जबकि
सामान्य स्तर में 40 से नीचे होना चाहिए व अनीखा का पोटेशियम की मात्रा. सामान्य मात्रा से कई ज्यादा थी। उन्होंने कहा कि शुरूवाती जांचों
को पूरी करने के बाद चिकित्सक इस निर्णय में पहंुचे कि अनीखा रिनल फेलियर
(गुर्दों का काम करना बंद) नामक बीमारी से ग्रसित है। जिसके बाद बच्ची का
पैरीटोनियल डाइलिसिस (पीडी) करने का निर्णय लिया गया। जिसके बाद बच्ची के
क्रिटेनियन, पोटेशियम व यूरिया सामान्य स्तर पर आ गए अनीखा की हालत में अब
सुधार है। डाॅ. अनिल रावत ने बताया कि पैरिटोनियल डाइलिसिस का रिस्क हाई
केस था, क्योंकि बच्ची का वजन कम होने से रिस्क हाई था, इसमें कैथेटर यंत्र
का प्रयोग हुआ है, जिसका साइज काफी छोटा होता है।
क्या है
पैरिटोनियल डाइलिसिस- इसमें रोगी की नाभि के नीचे आॅपरेशन के माध्यम से एक
नलिका लगाई जाती है। इस नलिका के जरिए तरल पीडी फलूइड को पेट में डाला जाता
है, जो कि झिल्ली डाइलाजर का काम करके रक्त में मौजूद विषैले पदार्थों का
बाहर निकालती है। यह तरल पेट में 5 से 6 घंटे तक रखना पड़ता है, इसके बाद
नलिका के माध्यम से पीडी फलूइड को बाहर निकाला जाता है। कम वजन के बच्चे
में पेरिटोनियल छोटे होने का कारण न तो अधिक मात्रा में फलूयूड डाला जा
सकता है, और न कोई सख्त टूयूब डाली जा सकती है इसलिए ये बेहद संवेदनशीन
प्रक्रिया है।
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