महर्षि वाल्मीकि जयंती पर विशेष--
रामायण की रचना करने वाले नायक बाल्मीकि जी की जयंती पर उन्हें शत शत नमन...
नमन उनकी दृढ इच्छाशक्ति को जो उन्होंने डाकू का चोला उतार फेंकने में लगाई, जो उन्होंने राम के नाम जपने में लगाई , वो उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम के ध्यान में मगन होने में लगाई.
रत्नाकर डाकू से लेकर बाल्मीकि ऋषि तक की पहचान बनाने की परिकल्पना तो उन्होंने शायद नहीं की थी. परन्तु डाकू बनकर अपना जीवन यापन करनेवाले बाल्मीकि के जीवन में अचानक परिवर्तन कैसे आया , ये भी एक दिलचस्प कथा है---
रत्नाकर डाकू तो केवल एक ऐसा डाकू था जो राहगीरों को डरा धमकाकर मुद्रा और स्वर्ण आभूषण छीन लेता था. ताकि उसके परिवार का भरण पोषण हो सके. इस जीवन में उसने शायद किसी पर भी करुणा नहीं दिखाई थी. परन्तु नियति को कुछ और मंजूर था. इसी लिए वह हुआ
जिसकी कल्पना स्वयं रत्नाकर डाकू ने नहीं की होगी. वैमनस्य और डराने, लूटने की जिंदगी से ऊबकर एक दिन गहरे पानी में उतर आया कि अपने जीवन को कैसे संभाल लूँ अथवा इहलीला समाप्त कर दू.
आँखे बंद कर जब पुनः खोली तो पाया, उसके समक्ष एक क्रोंच पक्षी का जोड़ा प्रणयरत था.
इतना कुछ आभास कर पता रत्नाकर , एक तीर आकर उस जोड़े को बींध गया . आहत वश करुण हृदय से रत्नाकर कह उठा मरा-मरा मरा ।
मरा शब्द का उल्टा अर्थ "राम राम राम "महृषि बाल्मीकि के जीवन का पर्याय बन गया और वह ज्ञान प्राप्त कर रामायण महाकाव्य के रचियता बने.
भारतदेश के अंतर्मन में बसे, राम के चरित्र का अद्धभुत उल्लेख प्रथम, बार संस्कृत महाकाव्य के रूप में करने वाले बाल्मीकि जी से, अगणित कवियों ने शिक्षा ली. वाल्मीकि जी नक्षत्र और ज्योतिष विज्ञान के भी ज्ञाता थे.
राम अपने वनवास के दौरान वाल्मीकि महृषि जी से मिलने उनके आश्रम भी गए. बाल्मीकि "राम" के समकालीन थे तथा उनके जीवन में घटित प्रत्येक घटनाओं का पूर्णरूपेण ज्ञान बाल्मीकि ऋषि को था। उन्हें "राम" का चरित्र को इतना महान समझा कि उनके चरित्र को आधार मान कर अपने महाकाव्य "रामायण" की रचना की।
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥'
अरे बहेलिये, तूने काम में रत क्रौंच पक्षी को मारा है। तू कभी सम्मान नहीं पायेगा
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