राम वनवास लीला में दशरथ–केकई के मार्मिक संवादों ने बाँध दिया समा
देहरादून:
अठूरवाला सांस्कृतिक मंच द्वारा आयोजित प्रथम भव्य रामलीला के अंतर्गत रविवार की रात्रि का मंचन दर्शकों के लिए अत्यंत भावनात्मक और अविस्मरणीय बन गया। जब मंच पर दशरथ–केकई संवाद प्रस्तुत किया गया, तो पूरा पंडाल भावनाओं से भीग उठा।
राजा दशरथ के रूप में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित वरिष्ठ रंगकर्मी डॉ. राकेश भट्ट और केकई की भूमिका में डॉ. ममता कुंवर ने अपनी असाधारण अभिनय क्षमता और संवाद अदायगी से दृश्य को इतना जीवंत बना दिया कि दर्शक स्वयं को अयोध्या के राजमहल में महसूस करने लगे।
दशरथ के करुण विलाप और केकई के भीतर के द्वंद्व को डॉ. राकेश भट्ट और डॉ. ममता कुंवर ने जिस आत्मीयता, भावभंगिमा और संवेदना के साथ मंच पर व्यक्त किया, वह दृश्य हर किसी के हृदय में उतर गया। डॉ. ममता कुंवर द्वारा केकई के चरित्र को केवल कठोर या स्वार्थी नहीं, बल्कि अपने वचन, पुत्र और राजधर्म के बीच झूलती एक स्त्री के रूप में जिस संवेदनशीलता से उकेरा गया, वह प्रस्तुति की आत्मा बन गया।
वहीं डॉ. राकेश भट्ट ने राजा दशरथ की वेदना, पुत्र-वियोग का दुःख और एक पिता के टूटते मनोबल को अपने सशक्त अभिनय से इतने प्रभावी ढंग से दर्शाया कि दर्शकों की आँखें नम हो गईं। मंच पर उस क्षण पूरा वातावरण मौन हो गया, और फिर गूंज उठी तालियाँ।
समिति के अध्यक्ष पुरुषोत्तम डोभाल ने कहा कि “डॉ. राकेश भट्ट और डॉ. ममता कुंवर ने अभिनय का जो स्तर प्रस्तुत किया, उसने इस रामलीला को नई ऊँचाइयाँ दी हैं। यह केवल अभिनय नहीं, बल्कि संस्कृति के पुनर्जागरण का भावपूर्ण माध्यम बन गया।”
महासचिव करतार नेगी ने बताया कि लीला का मंचन प्रतिदिन रात्रि 8 बजे से हो रहा है और 3 नवम्बर को रामराज्याभिषेक के साथ इसका भव्य समापन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि “अठूरवाला की धरती इस बार साक्षी बनी है उस कला और भक्ति की, जो लोगों के हृदयों को एक सूत्र में बाँध देती है।”
दर्शकों ने मंचन के बाद अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि दशरथ–केकई प्रसंग में आज भी मानवीय रिश्तों की गहराई, वचन की मर्यादा और भावनाओं का संघर्ष उतना ही प्रासंगिक है जितना त्रेता युग में था।
राम वनवास लीला के इस मंचन ने यह सिद्ध कर दिया कि जब कलाकार भाव से अभिनय करते हैं, तो मंच केवल रंगमंच नहीं रहता, वह एक जीवित तीर्थ बन जाता है।
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