देहरादून:
देवभूमि उत्तराखंड विश्वविद्यालय (DBUU) ने दून विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के सहयोग से अंतरराष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस (International Vulture Awareness Day – IVAD) मनाया। इस अवसर पर आयोजित सत्र में गिद्धों के पारिस्थितिकी तंत्र में महत्व तथा पिछले 30 वर्षों में उनकी चिंताजनक गिरावट पर चर्चा की गई। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के एलाइड साइंसेज विभाग के विद्यार्थियों ने भाग लिया।
अंतरराष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस हर वर्ष सितम्बर के पहले शनिवार को विश्वभर में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य गिद्धों के संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाना है, क्योंकि यह पक्षी आज सबसे अधिक संकटग्रस्त प्रजातियों में शामिल हैं। भारत में गिद्धों की संख्या पिछले तीन दशकों में 90% से अधिक घट चुकी है, जिसका मुख्य कारण डाइक्लोफेनाक नामक पशु-चिकित्सा दवा और अन्य मानवजनित खतरे रहे हैं। गिद्ध प्राकृतिक "सफाईकर्मी" की भूमिका निभाते हैं, जो मृत पशुओं के अवशेषों को खाकर बीमारियों के प्रसार को रोकते हैं।
सत्र के दौरान दून विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने, जो कि डॉ. सुनीत नैथानी के निर्देशन में उत्तराखंड में गिद्धों पर पीएचडी कर रहे हैं, अपने शोध अनुभव साझा किए। उन्होंने गिद्ध संरक्षण के लिए व्यवस्थित निगरानी, समुदाय की भागीदारी और दीर्घकालिक रणनीतियों की आवश्यकता पर जोर दिया।
कार्यक्रम में विद्यार्थियों के साथ एक संवादात्मक सत्र भी हुआ, जिसमें उन्हें जागरूकता अभियान और सतत् जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित किया गया। शिक्षकों ने इस सहयोग का स्वागत करते हुए कहा कि ऐसे आयोजन विद्यार्थियों में पर्यावरणीय जिम्मेदारी की भावना को मजबूत करते हैं।
डॉ. गरिमा तोमर ने अपने संदेश में कहा कि गिद्धों का संरक्षण केवल एक पक्षी प्रजाति को बचाना नहीं है, बल्कि यह पूरे पारिस्थितिक तंत्र और मानव स्वास्थ्य की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। गिद्धों की घटती संख्या को रोकने के लिए विश्वविद्यालयों, संरक्षण संगठनों, सरकारी विभागों और स्थानीय समुदायों का संयुक्त प्रयास अत्यंत आवश्यक है।
इस तरह के आयोजनों के माध्यम से DBUU और दून विश्वविद्यालय यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं कि आने वाली पीढ़ियाँ भी गिद्धों को उनके प्राकृतिक और महत्वपूर्ण पारिस्थितिकीय दायित्व निभाते हुए देख सकें।
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