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*उत्तराखंड समेत हिमालयी बर्फबारी वाले क्षेत्रों में 1 अक्टूबर, 2026 से शुरू होगी जातीय जनगणना*


*- जनगणना केवल आँकड़ों का संग्रह नहीं, बल्कि विकास की बुनियादी योजना का होती है आधार: त्रिवेन्द्र*


नई दिल्ली:


MP Trivendra Singh Rawat


हरिद्वार लोकसभा से सांसद एवं उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत द्वारा संसद में जनगणना-2027 को लेकर प्रश्न पूछा, जिसके लिखित उत्तर में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री श्री नित्यानंद राय ने जनगणना-2027 से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी साझा की है। उन्होंने बताया कि भारत सरकार ने जनगणना-2027 को दो चरणों में आयोजित करने का निर्णय लिया है और इसके लिए राजपत्र अधिसूचना 16 जून, 2025 को जारी कर दी गई है।


जनगणना दो चरणों में आयोजित होगी

*1. पहला चरण – मकान सूचीकरण और मकानों की गणना:*

इसमें प्रत्येक परिवार की आवासीय स्थिति, संपत्ति और बुनियादी सुविधाओं से संबंधित जानकारी एकत्र की जाएगी।

*2. दूसरा चरण – जनगणना:*

इस चरण में प्रत्येक व्यक्ति की जनसांख्यिकीय, सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक तथा अन्य महत्वपूर्ण जानकारी ली जाएगी। विशेष रूप से, इस जनगणना में जाति आधारित गणना भी की जाएगी।


श्री नित्यानंद राय ने बताया कि सामान्य क्षेत्रों के लिए संदर्भ तिथि 1 मार्च, 2027 की मध्यरात्रि (00:00 बजे) होगी।और हिमालयी बर्फबारी वाले क्षेत्रों (जैसे लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के असमय बर्फीले क्षेत्र) के लिए यह तिथि 1 अक्टूबर, 2026 की मध्यरात्रि (00:00 बजे) निर्धारित की गई है।


मंत्री जी ने बताया कि जनगणना-2027 के लिए वित्तीय परिव्यय को अंतिम रूप दिया जा रहा है, और इसकी जानकारी समय पर साझा की जाएगी।


श्री नित्यानंद राय ने यह स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को अद्यतन करने का कोई निर्णय फिलहाल नहीं लिया गया है।सरकार द्वारा केवल जनगणना कराने की अधिसूचना जारी की गई है। मकान सूचीकरण एवं मकानों की गणना की संचालन तिथियां उचित समय पर अधिसूचित की जाएंगी।


सांसद त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि जनगणना केवल आँकड़ों का संग्रह नहीं, बल्कि विकास की बुनियादी योजना का आधार होती है। सरकार द्वारा जाति आधारित आंकड़ों को शामिल करने और दो चरणों में जनगणना करने का निर्णय स्वागत योग्य है। इससे योजनाओं को और अधिक लक्षित रूप में क्रियान्वित किया जा सकेगा। यह जनगणना डिजिटल तकनीक और डेटा पारदर्शिता की दिशा में एक अहम कदम साबित होगी, जिससे ‘विकसित भारत 2047’ के विज़न को गति मिलेगी।



संसद में आज पशुपालन को स्वरोजगार का साधन बनाने से सम्बंधित प्रश्न पूछेंगे गए जिसके लिखित उत्तर में मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री प्रो. एस.पी. सिंह बघेल ने बताया कि केंद्र सरकार उत्तराखंड सहित देशभर में पशुपालन को स्वरोजगार का मजबूत साधन बनाने हेतु बहुआयामी योजनाओं का क्रियान्वयन कर रही है।


मंत्री जी ने बताया कि सरकार द्वारा राष्ट्रीय गोकुल मिशन, राष्ट्रीय पशुधन मिशन, राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम तथा पशुपालन अवसंरचना विकास निधि जैसी योजनाओं के माध्यम से दुग्ध उत्पादन, नस्ल सुधार, पशु स्वास्थ्य, डेयरी प्रसंस्करण और स्वरोजगार के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया जा रहा है।


उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत हरिद्वार जिले में अब तक 1.56 लाख से अधिक कृत्रिम गर्भाधान कराए गए हैं। मैत्री योजना के अंतर्गत राज्य में 817 तकनीशियन प्रशिक्षित किए गए हैं जो ग्रामीण स्तर पर प्रजनन व प्राथमिक उपचार सेवाएं दे रहे हैं। हरिद्वार में एक उन्नत नस्ल वृद्धि फार्म स्वीकृत किया गया है। राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम के तहत उत्तराखंड में 7504.26 लाख रु. की लागत से दुग्ध अवसंरचना को मजबूती दी जा रही है, जिसमें हरिद्वार को भी सम्मिलित किया गया है।


उन्होंने बताया कि नाबार्ड की ग्रामीण अवसंरचना विकास निधि (RIDF) योजना के तहत नैनीताल में 1.50 लाख लीटर/दिन क्षमता वाला आधुनिक डेयरी संयंत्र और चंपावत में संयंत्र क्षमता विस्तार हेतु परियोजनाएँ स्वीकृत की गई हैं। पशुपालन अवसंरचना विकास निधि के अंतर्गत राज्य में 9.60 करोड़ रुपये लागत की 2 परियोजनाएं स्वीकृत की गई हैं।


इसके अलावा मंत्री जी ने बताया कि पशुधन स्वास्थ्य एवं रोग नियंत्रण कार्यक्रम (LHDCP) के अंतर्गत उत्तराखंड में खुरपका-मुँहपका, ब्रुसेलोसिस, पीपीआर और लम्पी स्किन डिज़ीज़ के खिलाफ कुल 1.63 करोड़ टीकाकरण किए गए हैं। हरिद्वार जिले में अब तक 16.61 लाख एफएमडी, 2.3 लाख ब्रुसेलोसिस व 3.35 लाख एलएसडी टीकाकरण संपन्न हुए हैं।

राज्य में 60 मोबाइल पशु चिकित्सा इकाइयाँ, जिनमें हरिद्वार में 5 एमवीयू, ग्रामीण क्षेत्रों तक पशु स्वास्थ्य सेवाएं पहुँचा रही हैं।


हरिद्वार सांसद श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने केंद्र सरकार का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य में पशुपालन न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार है, बल्कि आत्मनिर्भरता और स्वरोजगार का भी सशक्त माध्यम है। केंद्र की योजनाएँ राज्य में डेयरी क्रांति लाने में अहम भूमिका निभा रही हैं। हम इन प्रयासों को ग्राम स्तर तक प्रभावी रूप से लागू कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

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