मसूरी के जॉर्ज एवरेस्ट से जौलीग्रांट एयरपोर्ट के लिए हेलीकॉप्टर प्रतिदिन दोपहर तीन बजे उड़ान भरेगा।
जबकि जौलीग्रांट से मसूरी के लिए साढ़े तीन बजे का समय तय किया गया है। *एक तरफ प्रति यात्री किराया 2578 रुपये होगा*।
जबकि जौलीग्रांट से मसूरी के लिए टैक्सी का किराया करीब 2200 से 2400 रुपये पड़ता है।उत्तराखंड नागरिक उड्डयन विकास प्राधिकरण (यूकाडा) के एसीईओ दयानंद सरस्वती ने बताया कि राजस एयर सर्विसेस का पांच सीटर हेलीकॉप्टर अपनी सेवाएं देगा।
वहीं दूसरी और पर्यावरण भी दो एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं सहित स्थानीय लोगों मैं चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि
जॉर्ज एवरेस्ट, मसूरी की पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में फ्लाइंग सफारी से पारिस्थितिकीय क्षति होने की पूरी संभावना है।इस पर उन्होंने गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा है किहम जॉर्ज एवरेस्ट हाउस, मसूरी के पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र मेंउत्तराखंड पर्यटन विभाग के सहयोग से संचालित *फ्लाइंग सफारी* गतिविधि को लेकर इस हेली सेवा का विरोध करते हैं हैं।
क्योंकि जॉर्ज एवरेस्ट एस्टेट, बेनोग वन्यजीव अभयारण्य (मसूरी वन प्रभाग) के अंतर्गत या समीपवर्ती क्षेत्र में स्थित है, जो जैव विविधता से भरपूर एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र है। यह क्षेत्र तेंदुआ, हिमालयी बकरी और कई प्रवासी व स्थानिक पक्षी प्रजातियों का आवास है (स्रोत: मसूरी वन्यजीव अभयारण्य – उत्तराखंड वन विभाग)।
हालांकि, फ्लाइंग सफारी जैसी मोटरयुक्त हवाई गतिविधियाँ निम्नलिखित समस्याएं उत्पन्न कर रही हैं:
-ध्वनि प्रदूषण जो वन्यजीवों के स्वाभाविक व्यवहार को बाधित करता है
-संरक्षण नियमों का उल्लंघन, जो संरक्षित क्षेत्रों में वाणिज्यिक गतिविधियों पर रोक लगाते है
ये गतिविधियाँ पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अंतर्गत जारी ईको-सेंसिटिव ज़ोन अधिसूचना** का सीधा उल्लंघन कर सकती हैं, जो संरक्षित वनों के आस-पास यंत्रीकृत और वाणिज्यिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाती है। *“Impacts of Tourism Development on the Physical Environment of Mussoorie”* नामक 2018 के एक अध्ययन (स्रोत: ResearchGate) में भी इस क्षेत्र में अव्यवस्थित पर्यटन के कारण बढ़ते पारिस्थितिकीय तनाव को चिन्हित किया गया है।
इस स्थिति को देखते हुए, हम संबंधित अधिकारियों से निम्नलिखित अनुरोध करते हैं:
- **फ्लाइंग सफारी और ऐसी अन्य उच्च-प्रभाव वाली गतिविधियों का पर्यावरणीय मूल्यांकन तुरंत दोबारा किया जाए
-इन गतिविधियों को वन्यजीव क्षेत्रों से दूर स्थानांतरित या निलंबित किया जाए
-उत्तराखंड ईको-टूरिज्म नीति और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अनुरूप कम प्रभाव वाली, पारिस्थितिकी-संवेदनशील पर्यटन को बढ़ावा दिया जाए
जॉर्ज एवरेस्ट और आसपास के पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों की जैविक पवित्रता को अल्पकालिक वाणिज्यिक लाभ के लिए बलिदान नहीं किया जाना चाहिए।
उत्तराखंड पर्यटन विभाग, वन विभाग, और सभी संबंधित निकायों से उनका अनुरोध है कि वे इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी सुरक्षा और सतत पर्यटन को प्राथमिकता दें।
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