बैसाखी नाम वैशाख से बना है। पंजाब और हरियाणा के किसान सर्दियों की फसल काट लेने के बाद नए साल की खुशियाँ मनाते हैं।
*बैसाखी हर्ष और उल्लास के साथ उत्साह व भाईचारे का भी है पर्व - मुख्यमंत्री*
मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेशवासियों को ‘बैसाखी’ पर्व की बधाई व शुभकामनाएं दी है। इस अवसर पर जारी अपने संदेश में मुख्यमंत्री ने कहा कि बैसाखी हर्ष और उल्लास के साथ उत्साह व भाईचारे का भी पर्व है। उन्होंने कहा कि नई फसल के कटने से जुड़ा यह पर्व हमारी समृद्ध सांस्कृतिक परम्पराओं तथा किसान व कृषि संस्कृति का भी परिचायक है। यह लोक आस्था एवं समृद्धि का भी प्रतीक है। यह पावन पर्व प्रदेशवासियों के जीवन में सुख, शान्ति व समृद्धि लाए इसकी भी मुख्यमंत्री ने कामना की है।
इसीलिए बैसाखी पंजाब और आसपास के प्रदेशों का सबसे बड़ा त्योहार है। यह रबी की फसल के पकने की खुशी का प्रतीक है। इसी दिन, 13 अप्रैल 1699 को दसवें गुरु गोविंद सिंह खालसा ने पंथ की स्थापना की थी। सिख इस त्योहार को सामूहिक जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं।
दिनांक
बैसाखी पारंपरिक रूप से हर साल 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है। त्योहार सिख और हिंदुओं दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। त्योहार अन्य नए साल के त्यौहारों के साथ मेल खाता है, जो भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य क्षेत्रों में, जैसे पोहेला बोशाख, बोहाग बिहू, विशु, पुथंडु और अन्य क्षेत्रों में वैशाख के पहले दिन मनाए जाते हैं।
दिन के प्रमुख कृत्य
- इस दिन पंजाब का परंपरागत नृत्य भांगड़ा और गिद्दा किया जाता है।
- शाम को आग के आसपास इकट्ठे होकर लोग नई फसल की खुशियाँ मनाते हैं।
- पूरे देश में श्रद्धालु गुरुद्वारों में अरदास के लिए इकट्ठे होते हैं। मुख्य समारोह आनंदपुर साहिब में होता है, जहाँ पंथ की नींव रखी गई थी।
- सुबह 4 बजे गुरु ग्रंथ साहिब को समारोहपूर्वक कक्ष से बाहर लाया जाता है।
- दूध और जल से प्रतीकात्मक स्नान करवाने के बाद गुरु ग्रंथ साहिब को तख्त पर बैठाया जाता है। इसके बाद पंच प्यारे 'पंचबानी' गाते हैं।
- दिन में अरदास के बाद गुरु को कड़ा प्रसाद का भोग लगाया जाता है।
- प्रसाद लेने के बाद सब लोग 'गुरु के लंगर' में शामिल होते हैं।
- श्रद्धालु इस दिन कारसेवा करते हैं।
- दिनभर गुरु गोविंदसिंह और पंच प्यारों के सम्मान में शबद् और कीर्तन गाए जाते हैं।
इतिहास
प्रकृति का एक नियम है कि जब भी किसी जुल्म, अन्याय, अत्याचार की पराकाष्ठा होती है, तो उसे हल करने अथवा उसके उपाय के लिए कोई कारण भी बन जाता है। इसी नियमाधीन जब मुगल शासक औरंगजेब द्वारा जुल्म, अन्याय व अत्याचार की हर सीमा लाँघ, श्री गुरु तेग बहादुरजी को दिल्ली में चाँदनी चौक पर शहीद कर दिया गया, तभी गुरु गोविंदसिंहजी ने अपने अनुयायियों को संगठित कर खालसा पंथ की स्थापना की जिसका लक्ष्य था धर्म व नेकी (भलाई) के आदर्श के लिए सदैव तत्पर रहना।
पुराने रीति-रिवाजों से ग्रसित निर्बल, कमजोर व साहसहीन हो चुके लोग, सदियों की राजनीतिक व मानसिक गुलामी के कारण कायर हो चुके थे। निम्न जाति के समझे जाने वाले लोगों को जिन्हें समाज तुच्छ समझता था, दशमेश पिता ने अमृत छकाकर सिंह बना दिया। इस तरह 13 अप्रैल,1699 को श्री केसगढ़ साहिब आनंदपुर में दसवें गुरु गोविंदसिंहजी ने खालसा पंथ की स्थापना कर अत्याचार को समाप्त किया।
उन्होंने सभी जातियों के लोगों को एक ही अमृत पात्र (बाटे) से अमृत छका पाँच प्यारे सजाए। ये पाँच प्यारे किसी एक जाति या स्थान के नहीं थे, वरन् अलग-अलग जाति, कुल व स्थानों के थे, जिन्हें खंडे बाटे का अमृत छकाकर इनके नाम के साथ सिंह शब्द लगा। अज्ञानी ही घमंडी नहीं होते, 'ज्ञानी' को भी अक्सर घमंड हो जाता है। जो परिग्रह (संचय) करते हैं उन्हें ही घमंड हो ऐसा नहीं है, अपरिग्रहियों को भी कभी-कभी अपने 'त्याग' का घमंड हो जाता है।
अहंकारी अत्यंत सूक्ष्म अहंकार के शिकार हो जाते हैं। ज्ञानी, ध्यानी, गुरु, त्यागी या संन्यासी होने का अहंकार कहीं ज्यादा प्रबल हो जाता है। यह बात गुरु गोविंदसिंहजी जानते थे। इसलिए उन्होंने न केवल अपने गुरुत्व को त्याग गुरु गद्दी गुरुग्रंथ साहिब को सौंपी बल्कि व्यक्ति पूजा ही निषिद्ध कर दी।
फसल कटाई का त्योहार
वैसाखी पंजाब के लोगों के लिए फसल कटाई का त्योहार है। पंजाब में, वैसाखी रबी फसल के पकने का प्रतीक है।
इस दिन किसानों द्वारा एक धन्यवाद दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिससे किसान, प्रचुर मात्रा में उपजी फसल के लिए ईश्वर का धन्यवाद करते हैं और भविष्य की समृद्धि के लिए भी प्रार्थना करते हैं। सिखों और पंजाबी हिंदुओं द्वारा फसल त्योहार मनाया जाता है। 20 वीं शताब्दी के शुरुवात में वैसाखी सिखों और हिंदुओं के लिए एक पवित्र दिन था और पंजाब के सभी सभी मुस्लिमों और गैर-मुस्लिमों,ईसाइयों सहित, के लिए एक धर्मनिरपेक्ष त्योहार था। आधुनिक समय में भी ईसाई, सिखों और हिंदुओं के साथ-साथ वैसाखी समारोह में भाग लेते हैं।
नगर कीर्तन
सिख समुदाय नगर कीर्तन (शाब्दिक रूप से "शहर भजन गायन") नामक जुलूस का आयोजन करते हैं। पांच खल्सा इसका नेतृत्व करते हैं, जो पंज-प्यारे के पहनावे में होते है सतवीर और सड़कों पर जुलूस निकालते है।
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