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 इस शताब्दी के महाकुंभ की आलोचना करना भारतीय  परंपरा एवं लोकतंत्र के अनुसार   ठीक नहीं है

 सर्वोत्तम व्यवस्था के लिए यह कुंभ आगामी अनेक वर्षों तक याद किया जाएगा 



भगवान श्री कृष्ण ने गीता के तीसरे अध्याय के 20 श्लोक में कहा है कि किसी भी शासन  को या सन्यासी को निष्काम भाव से महाराजा जनक की तरह कार्य करना चाहिए

 कुंभ स्नान पर्यटक दृष्टि से नहीं एक सम्यक दृष्टि से मनसा वाचा कर्मणा से करना चाहिए

महाकुंभ मेले की कवरेज प्रिंट मीडिया इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एवं सोशल मीडिया बेहतर ढंग से कर रही है इसकी सराहना की जानी चाहिए

 डॉक्टर मुरलीधर शास्त्री 

पूर्व उपनिदेशक सूचना (कुंभ मेला 2019)

कुंभ नगर प्रयागराज 

19 जनवरी 20 25

  सन्यासी एवं बैरागी अखाड़ों के में नए लोगों का चयन जगतगुरु शंकराचार्य रामानंदाचार्य जगतगुरु रामानंदाचार्य की परंपरा /सिद्धांतों के अनुसार होना चाहिए

 भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अपने प्रिय सखा अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था यह उपदेश महाभारत / जय संहिता के भीष्म पर्व में विशेष रूप से उल्लेखित है श्रीमद् भागवत गीता में  ईश्वर को प्राप्ति के लिए चार मार्ग बताए गए हैं जिसमें कर्म योग /ज्ञान योग /भक्ति योग सांख्य योग शामिल है तथा चार वर्ण आश्रम भी बताए गए हैं ब्रह्मचर्य आश्रम/ गृहस्थ आश्रम/ वानप्रस्थाश्रम/ एवं सन्यास आश्रम चारों की पुराणों में उल्लेखित सिद्धांतों का पालन होना चाहिए

भारतीय संस्कारों से महाकुंभ मेला 2025  चल रहा है इसका प्रथम शाही स्नान शाही/ अमृत स्नान 14 जनवरी को संपन्न हो

 चुका है 

तथा अगला शाही स्नान मौनी अमावस्या के दिन 29 जनवरी को होगा तथा तीसरा शाही स्नान बसंत पंचमी 2 फरवरी को संपादित किया जाएगा

 सरकार द्वारा पूर्ववर्ती सरकारों की अपेक्षा बहुत बेहतर व्यवस्था की गई है लेकिन कुछ प्रतिपक्ष के नेताओं द्वारा अपने कार्यकाल का विचार ना करते हुए सरकार के कार्यों की आलोचना की जा रही है  निश्चित रूप से भारतीय संस्कृति को अपमानित करने वाला

 जहां तक श्रद्धालु के गणना का सवाल है इसका अभी तक कोई वैज्ञानिक यंत्र न केवल अनुमान के आधार पर ही भीड़ के प्रति वर्ग मीटर की औसत को देखकर आकलन किया जाता है और जब गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड में रिकॉर्ड दर्ज करना होता है तो उसके अलग पैमाने होते हैं कुंभ हमारा प्रत्येक 12 वर्ष पर आता है 

परंतु अर्धवार्षिक कुंभ 6 वर्ष पर भी आता है जिसमें सरकार द्वारा तमाम तैयारियां की जाती हैं 

और 10 संन्यासी अखाड़ों के और तीन बैरागी अखाड़ों के संत महात्मा भाग लेते हैं तथा अपने-अपने अखाड़े के लिए नए-नए सन्यासियों बैरागियों का एवं गृहस्तों को दीक्षा देते हैं यह परंपरा सदियों से चली आ रही है पर देखने में आता है की कुछ लोग सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए जिस जीवन काल में उनको अध्ययन करना चाहिए ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए वह बाबा बन जाते हैं वह मुख्य रूप से पलायणवादी होते हैं   ना अच्छे गृहस्थ जीवन के लिए होते हैं ना अच्छे संत समाज के लिए होते हैं  भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद् भागवत गीता में भक्ति के मुख्य चार मार्ग बताएं पहले कर्म योग  दूसरा ज्ञान योग तीसरा भक्ति योग और चौथा  सांख्य  योग या हठयोगी या क्रिया योग के मूल रूप से जीवन के परिमार्जन के तथा आत्मक साक्षात्कार के मार्ग हैं योग मार्ग हैं जिनमें अपने लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है लेकिन व्यक्ति के लिए भी चार मार्ग/ आश्रम है ब्रह्मचर्य आश्रम/ गृहस्थ आश्रम  वानप्रस्थ एवं सन्यास  कुछ लोग जीवन के सभी आश्रमों को एक कर दिए हैं  जन्म से सभी आदमी अशुद्ध होता है तथा अपने संस्कारों से शुद्धता को दिव्यता को प्राप्त कर जाता है जो संसार में मार्गदर्शन करता है जिसको जिसको गुरु दिव्यता का संदेश देने वाला अंधकार का नष्ट करने वाला प्रकाशमान  गुरुदेव कहा जाता है मेला सदियों से चला रहा है इसका कोई किसी के पास प्रमाणिक आधार नहीं केवल अनुमानित आधार पर इसकी गणनायक की जाती है क्योंकि वास्तव रूप में देखा जाए तो आजकल की घटनाओं का यदि वैज्ञानिक आधार का प्रमाणिक उल्लेख मिलता है तो भगवान श्री कृष्ण का जन्म महाभारत का युद्ध पांडवों का राज्य पांडवों के राज्य के 36 वर्ष के  बाद 32 वर्ष तक राजा परीक्षित का राज तदोपरांत कलयुग का आगमन  तथा गणना या घटनाएं लगभग 5200 वर्ष पूर्व की आंकलित की गई है जो एक वैज्ञानिक कसौटी पर है मैं आज कुछ कुछ लोगों का  उल्लेख करूंगा जो अपने माता-पिता को अंधेरे में रखकर बाबा बन गए तथा अनेक बाबा बनने वाले पर उनको वास्तव में न मंत्र  का ज्ञान है  भक्ति का ज्ञान है न कर्म ज्ञान है और सस्ती लोकप्रियता  बनाने के लिए बाबा /सन्यासी / योगिनी / सन्यासिनी बन गई है मीडिया ने सभी का पोल खोल दिया है आगे भी लोगों का पोल खोलते रहेगा ऐसे बाबा कम ही बचे हैं जिनका आत्म साक्षात्कार है जो  सप्तर्षियों महर्षियों के परंपरा को बहन करते हैं अर्थात अपने-अपने कार्यों में व्यवसायिकता को प्रवेश कर दिए हैं तथा 80 परसेंट संस्थाएं पारिवारिक बाबो एवं न्यायिक विवादों में गिरी हुई है भारतीय संस्कृति को बचाना है तो हमें जगतगुरु शंकराचार्य जगतगुरु रामानंदाचार्य द्वारा स्थापित परंपरा को शुद्ध परंपरा को उनके द्वारा स्थापित  संस्कारों के अनुसार बढ़ाना होगा अन्यथा संत परंपरा पर भी गृहस्ट लोगों का लोगों की श्रद्धा कम हो जाएगी एवं समाज में संस्कारों का प्रसार रुक जाएगा

नोट : dr मुरलीधर सिंह शास्त्री पूर्व उप सूचना निदेशक( कुंभ 2019 )एवं वर्तमान अधिवक्ता / विधि अधिकारी

मा उच्च न्यायालय इलाहाबाद एवं लखनऊ पीठ एवं  अध्यक्ष श्री अयोध्या जी सेवा न्यास


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