कार्तिक अमावस्या तिथि प्रारंभ- 31 अक्तूबर को दोपहर 03:52 मिनट से।
कार्तिक अमावस्या तिथि समाप्त- 01 नवंबर को शाम 06:16 मिनट तक।
दीपावली 2024- प्रदोषकाल मुहूर्त
दिवाली पर देवी लक्ष्मी का पूजन प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त) और स्थिर लग्न में किया जाना चाहिए। अमूमन हर वर्ष दिवाली पर स्थिर लग्न जरूर मिलता है। दिवाली पर जब वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुंभ राशियां लग्न में उदित हों तब माता लक्ष्मी का पूजन किया जाना चाहिए। क्योंकि ये चारों राशि स्थिर स्वभाव की होती हैं। स्थिर लग्न के समय माता लक्ष्मी की पूजा करने से माता लक्ष्मी अंश रूप में घर में ठहरती हैं। प्रदोष काल का समय हर दिन सूर्यास्त होने से 2 घड़ी यानी 48 मिनट तक रहता है। दिल्ली के समय अनुसार 31 अक्तूबर को शाम 5 बजकर 36 मिनट पर सूर्यास्त होगा। 31 अक्तूबर को दोपहर 3 बजकर 52 मिनट से अमावस्या प्रारंभ हो चुकी होगी और प्रदोष काल अमावस्या तिथि पर रहेगी। ऐसे में 31 अक्तूबर को शाम 5 बजकर 36 मिनट के बाद दिवाली लक्ष्मी पूजन आरंभ कर दें।
वहीं दूसरी तरफ 01 नवंबर को शाम 06 बजकर 16 मिनट तक अमावस्या तिथि व्याप्त रहेगी और सूर्यास्त 05 बजकर 36 मिनट होगा। इस तरह से 01 नवंबर को भी प्रदोष काल और अमावस्या तिथि व्याप्त रहेगी। यानी 01 नवंबर को शाम 05 बजकर 36 मिनट से लेकर अमावस्या तिथि के समापन 06 बजकर 16 मिनट तक लक्ष्मी पूजन के लिए करीब 40 मिनट का ही शुभ मुहूर्त मिलेगा। इसके बाद प्रतिपदा लग जाएगी।
धनतेरस से पांच दिवसीय दीपोत्सव पर्व की शुरुआत हो चुकी है। दिवाली का पर्व पांच दिवसीय होता है, लेकिन इस पर्व 6 दिनों तक उत्सव मनाया जाएगा। 29 अक्टूबर को धनतेरस था। 31 अक्टूबर को छोटी दिवाली है। पंचांग भेद के कारण दिवाली 31 अक्टूबर और 1 नवंबर को दो दिन दिवाली मनाई जा रही है।। वहीं,गोवर्धन पूजा 2 नवंबर को मनाया जाएगा। इसके बाद 3 नवंबर को भाई दूज के साथ होगा ।
दीपावली का महत्व
यह त्योहार कार्तिक माह कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्रभु श्रीराम ने 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या नगरी में वापस लौटे थे। इस खुशियों में भगवान राम के स्वागत के लिए समस्त अयोध्यावासियों ने दीप जलाए थे। हर साल बड़े धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ दिवाली मनाई जाती है। इस साल पंचांग भेद के कारण कई जगहों पर 31 अक्टूबर को दिवाली मनाया जा रहा है।वहीं,कुछ जगहों पर 1 नवंबर को दिवाली मनाई जाएगी। दिवाली के दिन घर की साफ-सफाई का खास ध्यान रखा जाता है। साथ ही मां लक्ष्मी के स्वागत के लिए घर को रंगोली, दिये और फूलों से सजाया जाता है.
धनतेरस से पांच दिवसीय पर्व दिपोत्सव की शुरुआत हो चुकी है। हिंदू धर्म में दीपावली का पर्व प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह त्योहार कार्तिक माह कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्रभु श्रीराम ने 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या नगरी में वापस लौटे थे। इस खुशियों में भगवान राम के स्वागत के लिए समस्त अयोध्यावासियों ने दीप जलाए थे। हर साल बड़े धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ दिवाली मनाई जाती है। इस साल पंचांग भेद के कारण कई जगहों पर 31 अक्टूबर को दिवाली मनाया जा रहा है।वहीं,कुछ जगहों पर 1 नवंबर को दिवाली मनाई जाएगी। दिवाली के दिन घर की साफ-सफाई का खास ध्यान रखा जाता है। साथ ही मां लक्ष्मी के स्वागत के लिए घर को रंगोली, दिये और फूलों से सजाया जाता है। आइए जानते हैं दिवाली की सही
दीपावली पूजा मुहूर्त :
31 अक्टूबर को दोपहर 03 बजकर 52 मिनट पर अमावस्या तिथि शुरू हो रही है और 01 नवंबर को शाम 06 बजकर 16 मिनट पर समाप्त हो रही है। 31 अक्टूबर को लक्ष्मीपूजा का शुभ मुहूर्त शाम 05 बजकर 36 मिनट से लेकर शाम 06 बजकर 16 मिनट तक है। इसके अलावा शाम 06 बजकर 27 मिनट से लेकर रात 08 बजकर 32 मिनट तक दिवाली पूजा का शुभ मुहूरत है। दिवाली के दिन निशिता काल में भी पूजा की जाती है। इस दिन रात 11 बजकर 39 मिनट से लेकर 12 बजकर 31 मिनट तक निशिता काल पूजा का शुभ मुहूर्त बन रहा है।
पूजाविधि :
दिवाली के दिन शाम को शुभ मुहूर्त में पूजा आरंभ करें। इससे मंदिर की साफ-सफाई कर लें। ईशान कोण देवी-देवताओं का स्थान माना जाता है। इसलिए इस दिशा में सफाई का खास ध्यान रखें। लकड़ी की एक छोटी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं। इस लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति स्थापित करें।
लक्ष्मी-गणेश ,कुबेर देवता के साथ पंचदेव सूर्यदेव, विष्णुजी, शिव-गौरी और श्रीगणेश को स्थापित करें। इसके बाद सभी देवी-देवताओं के समक्ष धूप-दीप जलाएं। मूर्ति और तस्वीरों पर गंगाजल छिड़कें। इसके बाद आसन पर बैठकर महालक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करें।
पूजा चौकी पर गणेशजी के सामने दाहिनी ओर नवग्रह स्थापित करें और पास में जल से भरा कलश रख दें। कलश में कौड़ियां, सिक्के, सुपारी और गंगाजल डालें। कलश पर रोली से स्वास्तिक का निशान बांधे और मोली लपेट दें। फिर आम के पत्ते लगाकर मिट्टी के बड़े दिये से कलश ढककर रख दें। दिया में चावल हो और उसपर लाल कपड़े में जटा नारियल लपेटकर दिये पर रख दें।
अब मां लक्ष्मी के समक्ष लाल कपड़े की थैली में 5 कौड़ी, 5 गोमती चक्र,हल्दी की गांठ और बाद रखें। दिवाली पूजन के बाद इसे तिजोरी या लॉकर में रख लें। मां लक्ष्मी और गणेशजी को फल,फूल,घी,कमल का फूल, खील-बताशे, पंचमेवा अर्पित करें। धनतेरस में लाए गए सामान की भी पूजा करें।
इसके बाद गणेशजी,मां लक्ष्मी और कुबेर देवता के सामने घी का 5 या 11 दीपक प्रज्ज्वलित करें। इसके बाद घर को सजाने के लिए जरुरत के अनुसार सरसों के तेल का दीपक जलाएं। इन दियों को घर के सभी कोनों में रख दें।
इसके विधिवत लक्ष्मी-गणेश पूजन करें। मंत्रों का जाप करें। गणेश अथर्वशीर्ष और मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए श्री सूक्तम का पाठ करें। कुबेर जी की पूजा करें।
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