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सत्यवाणी न्यूज परिवार की और नव संवत्सर एवम नवरात्रि की  हार्दिक शुभकामनाएं


चैत्र की प्रतिपदा को हिंदू नव वर्ष शुरू होता है जिसे हम नव संवत्सर भी कहते हैं आज से नव संवत्सर 2081 की शुरुआत हो रही है.

 
first chaitr navratri shailputri,09 april,2024

 
हिंदू नव वर्ष की शुरुआत चैत्र महीने से होती है. नए साल 2024 में हिंदू नववर्ष , विक्रम संवत 2081  होगा, 


 हिन्दू कैलेंडर में 12 महीने होते हैं जिसका आरंभ चैत्र माह की  नवरात्रि से होता है. फाल्गुन वर्ष का आखिरी महीना कहा जाता है। चैत्र माह का विशेष महत्व इसलिये भी है कि भगवान श्री राम जन्म, विवाहादि इसी माह में हुए थे। माँ दुर्गा ने अपनी शक्तियों को इसी माह राक्षसों एवम बुरी शक्तियों के खिलाफ इस्तेमाल किया था।

 भारत मे हिंदू नववर्ष को विक्रम संवत्, संवत्सर, गुड़ी पडवा, युगादि के नाम से भी जाना जाता है.हिंदू नववर्ष 9 अप्रैल 2024 से शुरू हो रहा है. हिंदू नव वर्ष के दिन सिंधि समाज के लोग चेती चंड का पर्व, महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा, कर्नाटक में युगादि और आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में उगादी, गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय के लोग संवत्सर पड़वो कश्मीर में नवरेह, मणिपुर में सजिबु नोंगमा पानबा का पर्व मनाते हैं.
2081 नव संवत्सर को 'क्रोधी' नाम से जाना जाएगा. इस साल संवत के राजा मंगल और मंत्री शनि होंगे. ज्योतिष गणना के अनुसार, हिन्दू नव वर्ष का पहला दिन जिस भी दिवस पर पड़ता है पूरा साल उस ग्रह का स्वामित्व माना जाता है.जानकारों के अनुसार विक्रम संवत 2081 के राज मंगल, शनि के मंत्री होने से यह साल उथल-पुथल वाला रहेगा. 

राहु, मंगल, सूर्य और शनि के कारण प्राकृति प्रकोप बढ़ सकता है, तूफान, भूकंप और बाढ़ से जानमाल के नुकसान की ज्यादा आशंका है.  

इसी तिथि पर ब्रह्माजी ने सृष्टि का आरम्भ किया था,
इसलिए चैत्र हिंदू नववर्ष का पहला महीना बना.हिंदू नववर्ष के पहले दिन मां दुर्गा की पूजा, घर में शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना करना बहुत शुभ फलदायी होता है

हिंदू नववर्ष में नवरात्रि का आरम्भ होता है,नौ दिनों तक माँ दुर्गा की शक्ति की आराधना की जाती है। पहले दिन कलश स्थापना के साथ माँ शैलपुत्री की स्थापना से नवरात्रि त्योहार प्रारम्भ होता है जो पूरे नौ दिनों तक मनाया जाता है।



चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि शुरू  8 अप्रैल 2024, रात 11.50 से प्रारम्भ हो गयी है।


चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि समाप्त  9 अप्रैल 2024, रात 08.30

चैत्र नवरात्रि घटस्थापना मुहूर्त   

 सुबह 06.02 -  सुबह 10.16

कलश स्थापना अभिजित मुहूर्त 

   सुबह 11.57 - दोपहर 12.48




ऐसे करें पूजन-अर्चन

शास्त्रौ के अनुसार, नवरात्रि का पर्व आरंभ करने के लिए मिट्टी की वेदी बनाकर उसमें जौ और गेंहू मिलाकर बोएं। उस पर विधि पूर्वक कलश स्थापित करें। कलश पर देवी जी मूर्ति (धातु या मिट्टी) अथवा चित्रपट स्थापित करें। नित्यकर्म समाप्त कर पूजा सामग्री एकत्रित कर पवित्र आसन पर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठें तथा आचमन, प्राणायाम, आसन शुद्धि करके शांति मंत्र का पाठ कर संकल्प करें। रक्षादीपक जला लें।

गणेश-अंबिका, कलश (वरुण), मातृका पूजन, नवग्रहों तथा लेखपालों का पूजन करें। प्रधान देवता-महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती-स्वरूपिणी भगवती दुर्गा का प्रतिष्ठापूर्वक ध्यान, आह्वान, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, गन्ध, अक्षत, पुष्प, पत्र, सौभाग्य द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, ऋतुफल, ताम्बूल, निराजन, पुष्पांजलि, प्रदक्षिणा आदि षोडशोपचार से विधिपूर्वक श्रद्धा भाव से एकाग्रचित होकर पूजन करें।





वन्दे वंछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् | 

वृषारूढाम् शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ||



वृषभ-स्थिता इन माता के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। अपने पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं, तब इनका नाम 'सती' था। इनका विवाह भगवान शंकरजी से हुआ था।


एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। इसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया, किन्तु शंकरजी को उन्होंने इस यज्ञ में निमंत्रित नहीं किया। सती ने जब सुना कि उनके पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहाँ जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा।

अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकरजी को बताई। सारी बातों पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा- प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं। अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है। उनके यज्ञ-भाग भी उन्हें समर्पित किए हैं, किन्तु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है। कोई सूचना तक नहीं भेजी है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहाँ जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा।'

शंकरजी के इस उपदेश से सती का प्रबोध नहीं हुआ। पिता का यज्ञ देखने, वहाँ जाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता किसी प्रकार भी कम न हो सकी। उनका प्रबल आग्रह देखकर भगवान शंकरजी ने उन्हें वहाँ जाने की अनुमति दे दी।

सती ने पिता के घर पहुँचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा है। सारे लोग मुँह फेरे हुए हैं। केवल उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव भरे हुए थे।

परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत क्लेश पहुँचा। उन्होंने यह भी देखा कि वहाँ चतुर्दिक भगवान शंकरजी के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है। दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा। उन्होंने सोचा भगवान शंकरजी की बात न मान, यहाँ आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है।

वे अपने पति भगवान शंकर के इस अपमान को सह न सकीं। उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षण वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। वज्रपात के समान इस दारुण-दुःखद घटना को सुनकर शंकरजी ने क्रुद्ध होअपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया।

सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वे 'शैलपुत्री' नाम से विख्यात हुर्ईं। पार्वती, हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। उपनिषद् की एक कथा के अनुसार इन्हीं ने हैमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था।


'शैलपुत्री' देवी का विवाह भी शंकरजी से ही हुआ। पूर्वजन्म की भाँति इस जन्म में भी वे शिवजी की ही अर्द्धांगिनी बनीं। नवदुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियाँ अनंत हैं।





 

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