शारदीय नवरात्र 15 अक्तूबर,2023 से 23 अक्टूबर तक रहेंगे । 22 अक्तूबर,2022 को दुर्गा अष्टमी, 22 अक्तूबर,2022 को महानवमी होगी। जिस दिन से नवरात्र का प्रारंभ होता है उसी दिन के अनुसार, माता अपने वाहन पर सवार होकर आती हैं। इस साल मां दुर्गा हाथी की सवारी पर पृथ्वी लोक में पधारेंगी।
माता के इस मंत्र को जाप करना चाहिए।
ऊं दुं दुर्गायै नम
घटस्थापना मुहूर्त
● शुभ समय सुबह 6:21 से 10:12 तक (शुभ चौघड़िया)
● अभिजीत मुहूर्त सुबह 11: 44 बजे से दोपहर 12:30 तक ( स्थिर लग्न, वृश्चिक, सर्वश्रेष्ठ समय)।
नवरात्रि में कलश स्थापना-
● कलश दाहिने तरफ स्थापित करें,ईशानकोण में
● कलश पर स्वास्तिक बनाएं, पांच बार कलावा बांधे
● 5, 7 या 9 आम के पत्ते लगाएं
● रोली, चावल, सुपारी, लौंग, सिक्का अर्पित कर ईशानकोण में कलश स्थापित करें
अखण्ड ज्योति के नियम
● घी और तेल दोनों की अखण्ड ज्योति जला सकते हैं
वन्दे वंछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् | वृषारूढाम् शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ||
*नवरात्रि पर्व पर मुख्यमंत्री ने की प्रदेशवासियों के सुख समृद्धि की कामना।*
मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने शारदीय नवरात्रि के पावन पर्व पर प्रदेशवासियों की सुख-समृद्धि की कामना की है। नवरात्रि पर्व की पूर्व संध्या पर जारी अपने संदेश में मुख्यमंत्री ने कहा कि देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना का यह पर्व हमें मातृशक्ति की उपासना तथा सम्मान की प्रेरणा देता है। समाज में नारी के महत्व को प्रदर्शित करने वाला यह पर्व भारतीय संस्कृति की महान परम्परा का भी प्रतीक है।
शैलपुत्री देवीदुर्गाके नौ रूप में पहले स्वरूप में जानी जाती हैं।
ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को 'मूलाधार' चक्र में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना का प्रारंभ होता है।
'शैलपुत्री' देवी का विवाह भी शंकरजी से ही हुआ। पूर्वजन्म की भाँति इस जन्म में भी वे शिवजी की ही अर्द्धांगिनी बनीं। नवदुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियाँ अनंत हैं।
एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। इसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया, किन्तु शंकरजी को उन्होंने इस यज्ञ में निमंत्रित नहीं किया। सती ने जब सुना कि उनके पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहाँ जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा।
अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकरजी को बताई। सारी बातों पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा- प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं। अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है। उनके यज्ञ-भाग भी उन्हें समर्पित किए हैं, किन्तु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है। कोई सूचना तक नहीं भेजी है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहाँ जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा।'
शंकरजी के इस उपदेश से सती का प्रबोध नहीं हुआ। पिता का यज्ञ देखने, वहाँ जाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता किसी प्रकार भी कम न हो सकी। उनका प्रबल आग्रह देखकर भगवान शंकरजी ने उन्हें वहाँ जाने की अनुमति दे दी।
सती ने पिता के घर पहुँचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा है। सारे लोग मुँह फेरे हुए हैं। केवल उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव भरे हुए थे।
परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत क्लेश पहुँचा। उन्होंने यह भी देखा कि वहाँ चतुर्दिक भगवान शंकरजी के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है। दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा। उन्होंने सोचा भगवान शंकरजी की बात न मान, यहाँ आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है।
वे अपने पति भगवान शंकर के इस अपमान को सह न सकीं। उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षण वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। वज्रपात के समान इस दारुण-दुःखद घटना को सुनकर शंकरजी ने क्रुद्ध होअपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया।
सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वे 'शैलपुत्री' नाम से विख्यात हुर्ईं। पार्वती, हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। उपनिषद् की एक कथा के अनुसार इन्हीं ने हैमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था।
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