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सनातनी भाइयों , बहिनों और साथियों, हम जानते है हम में से अनेक के घरों में विजयदशमी के अवसर पर शस्त्र पूजन का विधान है। कुछ के यहां तो केवल कथा ही बनकर रह गया है शस्त्र पूजन क्योंकि आधुनिक लबादे  में शस्त्र पूजन को महत्ता नहींदेते है। परंतु आप को बता दे कि शस्त्र पूजन  का क्या महत्व है---





दशहरा पर क्षत्रियों द्वारा शस्त्रपूजन की परम्परा कई युगों से चलती आ रही है, ये पूजा सत्य की विजयी और धर्म को न्याय दिलाने के लिए होती है, इसलिए आज के दिन सभी क्षत्रियों को शस्त्रपूजन अवश्य करना चाहिए, और इस सनातनी क्षत्रिय परम्परा को सदैव निरन्तर आगे बढ़ाना चाहिए, ताकि सनातन धर्म की हमेशा रक्षा हो सके..ये परम्परा सिर्फ क्षत्रिय राजघरानो द्वारा ही नही बल्कि आम क्षत्रिय जनमानस द्वारा भी निभाई जाती है। ऐसा विद्वानों का कहना है।

विजयादशमी' विजय का पर्व है, और चूंकि 'विजय'उन्हें ही मिलती है जो युद्ध करते हैं। ये तो एक बात हुई। 

सनातन धर्म मे देवियों को शक्तिनक रूप माना गया है, इसलिए क्षत्रिय समाज शक्ति के रूप में अपनी कुलदेवी को पूजता है, हर क्षत्रिय वंश की अपनी कुलदेवी हैं.. हमे देवी शक्ति को समझने के लिए दुर्गा-सप्तशती को पढ़ना चाहिए, और जानना चाहिये की दुर्गा मां ने कैसे रक्तबीज 'महिषासुर' का संहार किया। 

अब बात क्षत्रिय की- जब भी समाज में अत्याचार बढ़ जाये, तो क्षत्रिय का दायित्व क्या है?? वो चाहे दैविक,क्दैहिक, भौतिक, आर्थिक,यौनिक,धार्मिक या इन सबसे बढ़ कर ' विधिक-अत्याचार' हो,चाहे उसका स्वरूप लोकतांत्रिक ही क्यो न हो, एक 'क्षत्रिय' का क्या कर्तव्य बनता है?? 


यही की वो 'अत्याचार' के विरुद्ध खड़ा होकर ,सारी दुनिया को बता दे,हम  इसदुनिया को और बेहतर जगह बनाएंगे, जीने के लिए ! यही 'विजया-दशमी' है। 


क्षत्रिय समाज द्वारा दशहरा पर परंपरागत रुप से शस्त्र पूजन किये जाने का विशेष महत्व है। पुरातन काल से आयोजित किए जाने वाले शस्त्र पूजन का उद्देश्य जनता में सुरक्षा की भावना का एहसास कराना था और स्वयं को भी यह बोध कराना था कि जब भी जनता के ऊपर किसी तरह की विपत्ति आएगी|तो क्षत्रिय समाज जनता के प्राणों की रक्षा हेतु, शस्त्र उठाने से कभी पीछे नहीं हटेगा। 


दशहरा पर क्षत्रिय समाज द्वारा ,शस्त्र पूजन की परंपरा ,एक तरह से जनता की सुरक्षा के लिए लिया गया संकल्प भी था| क्योंकि पूर्व में जनता की रक्षा करने का दायित्व, हजारों वर्षों तक, क्षत्रिय समाज के हाथों में ही था |क्षत्रिय समाज द्वारा , लोगों की रक्षा के इस दायित्व को ,इसी संकल्प के साथ भली भाति निभाया है। 


हजारों वर्षों तक, जनता की रक्षा के संकल्प को निभाने के लिए क्षत्रियों ने अपने प्राणों की कभी भी चिंता नहीं की, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा आततायी रावण का वधकर आम जन को रावण के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी |इसी उपलक्ष में दशहरा (विजयदशमी )पर्व मनाया जाता है। 


विजयदशमी को ही आततायियों पर विजय का प्रतीक मानकर, क्षत्रियों द्वारा प्रतिवर्ष, विजयदशमी को ही शस्त्र पूजन करने की परंपरा चली आ रही है | विजयदशमी पर शस्त्र पूजन इसलिए भी किया जाता है कि बिना शस्त्रों के ,ना तो आततायियों का वध किया जा सकता है और ना ही उन्हें भयभीत किया जा सकता है|


मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम ने आततायी रावण का वध कर लंका का राज्य विभीषण को सौंपकर और बाली का वधकर, किस्किंधा का राज्य, बाली के छोटे भाई सुग्रीव को सौंपकर ,प्रभु श्रीराम ने संदेश दिया कि रावण और बाली को मारने का उद्देश , रावण और बाली के राज्य को हड़पना नहीं था | बल्कि रावण और बाली के आतंक से मुक्ति दिलाकर, आम जन के मध्य व्याप्त भय की समाप्ति और न्यायप्रिय शासन की स्थापना करना प्रमुख उद्देश्य था|


विजयदशमी पर परंपरागत शस्त्र पूजन का उद्देश भी ,जनता को भयभीत करने के लिए नहीं ,बल्कि जनता में सुरक्षा की भावना जगाने के लिए किया जाता था |

वर्तमान में राष्ट्र की सुरक्षा सेना के हाथों में है| अत: प्रतीकात्मक रुप से ,वर्तमान में क्षत्रिय समाज द्वारा दशहरा ( विजयदशमी )पर्व पर , शस्त्र पूजन का आयोजन, बुराई पर अच्छाई की विजय के उपलक्ष्य में आयोजित किया जाता है |

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