लोहड़ी का त्यौहार हिन्दू कैलेंडर के अनुसार पौष माह की आखिरी रात में मनाया जाता है।
लोहड़ी के बाद से ही दिन बड़े होने लगते हैं, यानी माघ मास शुरू हो जाता है। यह त्योहार पूरे विश्व में मनाया जाता है। हालांकि पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में ये त्योहार बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है।
हांलाकि कोरोना के कारण कई राज्यों में प्रतिबंधों के कारण संक्षिप्त कार्यक्रम होंगे, परंतु उत्साह बरकरार है। इसी प्रकार ,इस वर्ष कोविड के कारण मकर सक्रांति स्नान पर भी स्नान पर रोक लग रही है।
लोहड़ी पौष के अंतिम दिन, सूर्यास्त के बाद (माघ संक्रांति से पहली रात) यह पर्व मनाया जाता है। यह प्राय: 12 या 13 जनवरी को पड़ता है। यह मुख्यत: पंजाब का पर्व है.बालक एवं बालिकाएँ 'लोहड़ी' के लोकगीत गाकर लकड़ी और उपले इकट्ठे करते हैं। संचित सामग्री से चौराहे या मुहल्ले के किसी खुले स्थान पर आग जलाई जाती है।
मुहल्ले या गाँव भर के लोग अग्नि के चारों ओर आसन जमा लेते हैं। घर और व्यवसाय के कामकाज से निपटकर प्रत्येक परिवार अग्नि की परिक्रमा करता है। रेवड़ी (और कहीं कहीं मक्की के भुने दाने) अग्नि की भेंट किए जाते हैं तथा ये ही चीजें प्रसाद के रूप में सभी उपस्थित लोगों को बाँटी जाती हैं। घर लौटते समय 'लोहड़ी' में से दो चार दहकते कोयले, प्रसाद के रूप में, घर पर लाने की प्रथा भी है।
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