बृहस्पतिवार को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही छठ पर्व का विधिवत समापन हो गया। लगातार 36 घंटे से निर्जला रहकर व्रत रखने वाली महिलाओं ने जल ग्रहण कर व्रत का पारण किया.
पर्व की छटा निराली नजर आयी धर्मनगरी हरिद्वार, ऋषी नगरी ऋषिकेश,द्रोणनगरी देहरादून मे। ऋषिकेश मे भी त्रिवेणी घात सहित अन्य गंगा तटों पर छठ पर्व की धूम रही।
हरकी पैड़ी ,त्रिवेणी घाट,ब्रहमपुरी घाट समेत अधिकतर गंगा घाट पूर्वांचल की संस्कृति के रंग में ढले नजर आये ।
इस वर्ष भी पूर्वांचल उत्तर प्रदेश व बिहार के निवासियों ने लोक आस्था एवं सूर्य आराधना का छठ पर्व श्रद्धा एवं उल्लास से मनाया।
पंचपुरी हरिद्वार, कनखल, ज्वालापुर, बहादराबाद के समस्त घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी। बृहस्पतिवार को भगवान सूर्यनारायण के उदय होने के पूर्व ही छठ व्रती महिलाएं गंगा घाटों पर पहुंच गई।
गंगाजल में खड़े होकर भगवान सूर्यनारायण के उदय होने का इंतजार किया। सूर्य नारायण के दर्शन होते ही उनको अर्घ्य दिया। पूर्वांचल उत्थान संस्था के कार्यकारी अध्यक्ष आशुतोष पांडेय, शशि भूषण पांडे, डॉ. नारायण पंडित, डॉ. निरंजन मिश्रा, डॉ. एसके झा, प्राचार्य सुमन झा, आचार्य सागर झा, पंडित उधव मिश्र, पंडित विनय मिश्रा, पंडित भोगेद्र झा, नरेश झा, अनिल झा, भगवान झा, रणजीत झा संतोष झा, विनोद कुमार त्रिपाठी आदि ने छठ पर्व पर श्रद्धालुओं की व्यवस्था की थी।
गुरुवार तड़के चार बजे से ही विभिन्न घाटों पर श्रद्धालुओं ने आना शुरू कर दिया था। दीयों की रोशनी में घाट जगमग हो गए और इस दौरान जमकर आतिशबाजी भी की गई। सूर्य की पहली किरण के साथ व्रतियों ने सूर्य को अघ्र्य अॢपत करना प्रारंभ किया। टपकेश्वर स्थित तमसा नदी, प्रेमनगर स्थित टोंस नदी, मालदेवता में सौंग नदी, रिस्पना, रायपुर व बह्मपुरी छठ पार्क घाट समेत कई घाटों पर पानी में खड़े होकर श्रद्धालुओं ने अघ्र्य दिया। कई श्रद्धालुओं ने कोरोना की गाइडलाइन का पालन करते हुए अपने घरों की छत पर टब व बड़े बर्तन में पानी भरकर उसे ही तालाब मानते हुए सूर्यदेव को अघ्र्य दिया। 36 घंटे का निर्जला उपवास रखकर व्रतियों ने छठ मैया के साथ पितरों को भोग लगाकर पूजा-अर्चना की व उसके बाद व्रत खोला। व्रतियों ने सुहागिनों को सिंदूर और पुरुषों को तिलक लगाकर उनके सुख और शांतिमय जीवन की कामना की।
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