एनएचएम कर्मियों का बहिष्कार राज्य स्थापना दिवस से पूर्व ही अंगड़ाई लेने लगा है। उनका कहना है कि एक तरफ जहां 9 नवम्बर राज्य स्थापना दिवस पर एक सप्ताह तक धूम धाम से जश्न मनाने का निर्णय लिया है ,वहीं दूसरी तरफ राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं की नींव के पत्थर कहे जाने वाले एन एच एम कर्मी राज्य स्थापना दिवस और उसकी पूर्व संध्या में कार्य बहिष्कार का एलान कर चुके हैं।
पलायन से जूझते उत्तराखण्ड में विगत 17 वर्षों से नाम मात्र के मानदेय पर काम कर रहे 5000 से ज्यादा युवा, सरकार के सौतेले व्यवहार और निरंकुश नौकरशाही के दो पाटों के बीच पिस रहे हैं इसीलिए 8 नवम्बर को सुदूर स्वास्थ्य इकाईयों से राज्य के कर्मचारी सचिवालय पहुंचकर अपनी आवाज बुलंद करंगे।
इनका यह भी कहना है कि कोविड काल में प्रयाप्त सुरक्षा संसाधनों के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन संविदा कर्मियों ने जान हथेली पर रखकर 18 से 20 घण्टे प्रतिदिन काम किया,जिन स्थानों पर ज्यादा जोखिम था।
वहाँ ड्यूटी भी इन अस्थायी कर्मियों की लगाई गयी जवकि इन को ना कोई अनुग्रह,ना कोई बोनस,ना कोई सम्मान सरकार की और से दिया गया है।
टेस्टिंग से लेकर होम्बेस्ड केयर तक यत्र तत्र सर्वत्र स्वास्थ्य विभाग की मौजूदगी NHM के संविदा कर्मियों के रूप में दिखी, तब भी इन कर्मियों के कल्याण का प्रश्न उठा तो सरकार ने मुंह फेर लिया है।
सरकारें राज्य नहीं होती राज्य स्थायी है औऱ सरकार उसे चलाने वाली अस्थायी एजेंसी मात्र ,उत्तराखण्ड में संविदा स्वास्थ्य कर्मियों के प्रति गूंगी बहरी हो चुकी सरकार के मुंह में उसकी आत्ममुग्धता के राज्य स्थापना समारोह के बीच 5000 कर्मियों का कार्य बहिष्कार एक जोरदार तमाचा है।
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